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जीवन के लिए खतरा बन रही पालीथिन

प्लास्टिक व पालीथिन का बढ़ता उपयोग न सिर्फ मानव बल्कि प्रकृति में मौजूद हर जीव के लिए हानिकारक है। भूमि की उर्वरक क्षमता पर विपरीत प्रभाव रहा है। वाटर रिचार्जिंग चोक हो रही है। लोगों में जागरूकता व...

जीवन के लिए खतरा बन रही पालीथिन
हिन्दुस्तान टीम,लखनऊSat, 21 Apr 2018 08:42 PM
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प्लास्टिक व पालीथिन का बढ़ता उपयोग न सिर्फ मानव बल्कि प्रकृति में मौजूद हर जीव के लिए हानिकारक है। भूमि की उर्वरक क्षमता पर विपरीत प्रभाव रहा है। वाटर रिचार्जिंग चोक हो रही है। लोगों में जागरूकता व सरकार की सख्ती के बिना इसपर रोक संभव नहीं है लेकिन दोनों ही दिशा में कोई काम नहीं हो पा रहा है।

प्लास्टिक व पालीथिन के बढ़ते प्रयोग व उससे होने वाले नुकसान पर वरिष्ठ पर्यावरण वैज्ञानिक व स्कूल आफ मैनेजमेंट साइंसेज के महानिदेशक प्रो. भरत राज सिंह ने कई सवालों किए गए जिसका उन्होंने सटीक जवाब दिया।

सवाल-पालीथिन से किस तरह का नुकसान हो रहा है?

जवाब-पालीथिन या प्लास्टिक कभी नष्ट नहीं होती। इसको नष्ट करने का एक मात्र उपाय जलाना ही है। प्लास्टिक जलाने से कार्बनडाई आक्साइड व कार्बन मोनो आक्साइट गैस निकलती है जो न सिर्फ पर्यावरण बल्कि हर जीव-जन्तु व पेड़-पौधों को नुकसान पहुंचाती है। मनुष्यों में विभिन्न प्रकार की बीमारियां होने का खतरा बढ़ जाता है। पालीथिन में खाद्य सामग्री डालकर उसके सड़क पर लोग फेंक दिया जा रहा हैं जिसे खाकर जानवर मौत के मुहाने पर पहुंच रहे हैं।

सवाल-भूमि को कैसे नुकसान पहुंचा रही है?

जवाब-जानवर स्वत: नष्ट नहीं होती लिहाजा भूमि में पहुंचने पर वह कई वर्षों तक उसी अवस्था में पड़ी रहती है। सबसे बड़ा नुकसान वाटर रिचार्जिंग पर पड़ता है। जमीन के नीचे पानी पहुंचने ही नहीं पाता लिहाजा जमीन में मौजूद वैक्टीरिया मर रहे हैं। धीरे-धीरे जमीन बंजर होने की स्थिति में पहुंच रही है। इसके अलावा शहरों में पालीथिन का प्रयोग लगातार बढ़ता जा रहा है। लोग उसे बाहर फेंक देते हैं जो नालियों में पहुंचकर उसे चोक कर देते हैं। बार-बार सफाई के बाद भी जलभराव न नाला चोक की स्थिति बनी रहती है। सफाई की कोई भी व्यवस्था कामयाब नहीं हो सकती है।

सवाल-कैसे लगेगी रोक

जवाब- देश का सबसे बड़ा उत्तर प्रदेश है। देश की कुल आबादी का 18 प्रतिशत लोग प्रदेश में निवास कर रहे हैं। प्रदेश की लगभग 22 करोड़ आबादी में 50 लाख लोग लखनऊ में रह रहे हैं। लखनऊ में लगभग 15 लाख भवन हैं। औसतन एक पालीबैग हरदिन घरों में पहुंच रही है। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि शहर में पालीथिन का प्रयोग किस तरह बढ़ गया है। सरकार की सख्ती व लोगों में जागरूकता के बिना इसपर अंकुश नहीं लगाया जा सकता है। जूट, कागज या कपड़े के बैग कुछ दिनों में स्वत: नष्ट हो जाते हैं। लिहाजा इसके बढ़ावा देने की जरूरत है।

सवाल-मेडिकल वेस्ट कितना खतरनाक है?

जवाब-अस्पतालों का ज्यादातर कचरा प्लास्टिक फार्म में ही निकलता है। हालांकि वहां उसके निस्तारित करने के लिए प्लांट लगाने की सख्त निर्देश हैं लेकिन ज्यादातर अस्पताल उसे खुले में फेंक रहे हैं। उसमें तमाम तरह का संक्रमण होता है जो अन्य लोगों तक पहुंच सकता है।

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लोगों में बांट रहे जूट के बैग

लखनऊ। प्रमुख संवाददाता

पर्यावरण की सुरक्षा मे घातक साबित हो रही पालीथिन का प्रयोग रोकने के लिये प्रो. भरत राज सिंह पिछले दस वर्षो से जागरूकता अभियान चला रहे है। वह लोगों को जागरूक करने के साथ कपड़े, जूट व कागज के थैले बांट रहे हैं और उसके इस्तेमाल के लिये प्रोत्साहित भी कर रहे हैं।

उन्होंने बताया कि वर्ष 2004 से वह घर-घर जाकर जूट व कपडे के बैग बाटने लगे। उनके इस अभियान कई लोग शामिल हो गए हैं। लखनऊ की आबादी लगभग 50 लाख है। करीब 25-30 करोड़ बैग हर माह इस्तेमाल किया जा रहा है। इससे जमीन, पानीऔर हवा सब प्रदूषित हो रही है। इसका खामियाजा आने वाली पीढ़ी को उठाना पडेगा। उन्होंने कहा कि बायोडिग्रेडेबल (स्वाभाविक तरीके से नष्ट होने वाला) कपास या जूट बैग के इस्तेमाल से आधे से ज्यादा कूड़ा स्वत: नष्ट हो जाएगा।

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