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कायस्थ समाज से देश की प्रगति में अहम भागीदारी निभाने का आह्वान

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कायस्थ समाज से देश की प्रगति में अहम भागीदारी निभाने का आह्वान
हिन्दुस्तान टीम,लखनऊSun, 23 Sep 2018 08:54 PM
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- दस देशों के प्रतिनिधियों ने लिया हिस्सा

लखनऊ। कायस्थ वाहिनी अंतर्राष्ट्रीय उप्र इकाई की ओर से रविवार को अंतर्राष्ट्रीय बौद्ध संस्थान में कायस्थ महाकुंभ-2018 के आयोजन किया गया। जिसमें देश व प्रदेश की प्रगति में महत्वपूर्ण योगदान करने वाली कायस्थ समाज की विभूतियों को भास्कर सम्मान से सम्मानित किया गया है। न्यायमूर्ति सुधीर कुमार सक्सेना, पूर्व मुख्य सचिव आलोक रंजन, डा. एके श्रीवास्तव, पूर्व सूचना आयुक्त वीरेंद्र सक्सेना, बलदाऊ जी श्रीवास्तव, कौशल कुमार श्रीवास्तव, समाजसेविका, ज्योति खरे व शिक्षाविद् व सेवानिवृत्त प्राचार्य भगवती प्रसाद खरे समेत 11 हस्तियों को प्रशस्ति-पत्र व अंगवस्त्र देकर सम्मानित किया गया।

प्रशासनिक सेवा में समाज की भागीदारी बढ़ाएं

समारोह को संबोधित करते हुए जस्टिस सुधीर कुमार सक्सेना ने कायस्थ समाज से देश व समाज की प्रगति में अहम योगदान निभाने का आह्वान किया। साथ ही युवाओं से उच्च शिक्षा प्राप्त कर न्याय के क्षेत्र में बढ़-चढ़कर भागीदारी करने के लिए प्रेरित किया। पूर्व मुख्य सचिव आलोक रंजन ने कहा कि प्रशासनिक सेवा के क्षेत्र में समाज के लोगों की संख्या में कमी देखने को मिल रही है। उन्होंने समाज के परिवारों से अपने बच्चों को प्रशासनिक सेवा के क्षेत्र में कीर्तिमान स्थापित करने का आह्वान किया। डा. एके श्रीवास्तव, वीरेंद्र सक्सेना, वरिष्ठ पदाधिकारी पंकज भैया समेत अन्य पदाधिकारियों च अन्य देशों के प्रतिनिधियों ने भी अपने विचार रखे।

कार्यक्रम संयोजक दिनेश चंद्र खरे ने बताया कि कायस्थ महाकुंभ में प्रदेश की विभूतियों के साथ दस देशों के कायस्थ वंशजों के प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया। उन्होंने बताया कि महाकुंभ का उद्देश्य भारत सरकार व प्रदेश सरकार की जनकल्याणकारी योजनाओं व कार्यक्रमों की जानकारी पात्र लोगों तक पहुंचाकर उन्हें लाभान्वित कराने में समाज की भागीदारी सुनिश्चित कराना है। साथ ही कायस्थ समाज के बिखरे हुये लोगों को एकत्र कर समाज व देश की प्रगति में उनकी भागीदारी सुनिश्चित कराना कायस्थ वाहिनी अन्तर्राष्ट्रीय उप्र इकाई के मुख्य उद्देश्यों में शामिल है। कायस्थ समाज के वंशज भगवान श्री चित्रगुप्त के ब्रह्मलोक में आम लोगों का लेखा-जोखा रखकर अपने दायित्वों का निर्वहन बेहतर ढंग से संपादित किये जाने का उल्लेख वेदों में किया गया है।

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