ट्रेंडिंग न्यूज़

Hindi News उत्तर प्रदेश लखनऊपसका मेले से पूर्व साधुओं का कल्पवास शुरू

पसका मेले से पूर्व साधुओं का कल्पवास शुरू

ऐतिहासिक एवं पौराणिक सूकरखेत पसका में लगने वाला संगम मेला पर्व व मुख्य स्नान सम्पन्न होने में मात्र एक पखवारे का ही समय शेष बचा है। यहां कल्पवास कर रहे साधु-संतों का मुख्य शाही स्नान दो जनवरी मंगलवार...

पसका मेले से पूर्व साधुओं का कल्पवास शुरू
सुरेश गुप्ता ,परसपुर (गोंडा)Mon, 18 Dec 2017 05:44 PM
ऐप पर पढ़ें

ऐतिहासिक एवं पौराणिक सूकरखेत पसका में लगने वाला संगम मेला पर्व व मुख्य स्नान सम्पन्न होने में मात्र एक पखवारे का ही समय शेष बचा है। यहां कल्पवास कर रहे साधु-संतों का मुख्य शाही स्नान दो जनवरी मंगलवार को आठ बजे सूर्योदय से पूर्व सम्पन्न होगा।
यहां स्नान के पूर्व सोमवार देर शाम तीन दिवसीय रामायण मेले का उद्घाटन डीएम जेबी सिंह व एसपी उमेश कुमार सिंह करेंगे। पसका विकास मंच के अध्यक्ष सुरेश चंद्र त्रिपाठी ने बताया कि मंच की एक संयुक्त बैठक में तीन दिवसीय मेले की रूपरेखा पर अंतिम प्रस्ताव पारित किया गया।
विगत वर्ष की भांति इस रामायण मेले में होने वाले कवि सम्मेलन व सांस्कृतिक कार्यक्रमों में सहभागिता करने वाले प्रबुद्धजनों को दूरभाष व पत्राचार से सूचना दी गयी है।
बताते हैं कि पौराणिक ग्रंथों में अवध के चौरासी कोसी परिक्रमा मार्ग में स्थित पसका सूकरखेत के उल्लेखों से इसका विशेष महत्व माना जाता है। इतना ही नहीं यहां त्रिमुहानी घाट के समीप एक आश्रम में रामायण के रचनाकार महाकवि तुलसी दास के गुरु नरहरिदास ने रह कर तपस्या की थी। बाल्यावस्था में गोस्वामी तुलसी दास इसी आश्रम में अपने गुरु नरहरिदास से शिक्षा दीक्षा ग्रहण कर एक महान कवि बने। इसके अलावा भगवान वाराहदेव ने सूकर का रूप धारण कर पृथ्वी के उद्धार के लिए एक राक्षस का वध किया। ऐसे तमाम पौराणिक महत्व के चलते यहां पर्व व स्नान की परम्परा प्राचीनकाल से चली आ रही है।
 यहां एक तरफ जहां संगम तट पर साधु-संतों का कल्पवास हो रहा है, वहीं दूसरी ओर मेला परिसर में दूरदराज से दुकानें व मनोरंजन के साधन आने शुरू हो गए हैं। मेलार्थियों को कोई असुविधा न हो, इसके लिए अस्थाई मेला कोतवाली का निर्माण किया जा रहा है।
प्रत्येक वर्ष पौष पूर्णिमा को लगने वाले विशाल मेला को संगम मेला के नाम से जाना जाता है। मेला में प्रदेश के दूरदराज के जनपदों से होटल, सर्कस, झूला समेत अन्य मनोरंजन के साधन आते हैं। मेला एक किमी. क्षेत्र में लगता है। इसे दो खंडों में बांटा जाता है। वाराह मंदिर व स्नान घाट, कल्पवास स्थल को पुराना मेला व मनोरंजन के साधन लगने वाले क्षेत्र को नया मेला के नाम से जाना जाता है। पुराने मेला में जहां कल्पवासी फूस की झोपड़ी डालकर भजन कीर्तन कर रहे हैं। वहीं यहीं पर फूस के छप्पर रख कर मेला कोतवाली बनाई जा रही है। नए मेले में मेलार्थियों की सुविधा  इसके साथ ही झूला आदि मनोरंजन की दुकान मेला परिसर में लगने लगी हैं, जिससे मेला परिसर की रौनक बढ़ने लगी है।

 

 

हिन्दुस्तान का वॉट्सऐप चैनल फॉलो करें