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अंतरराष्ट्रीय नर्सेज डे  : मरीजों की सेवा के साथ पर्यावरण और अनाथ बच्चों का ख्याल रखती हैं ये नर्सें

नर्सिंग सेवा बिना किसी भेदभाव के मरीजों को दी जाती है। नर्सें मरीज की जाति और धर्म देखकर इलाज नहीं करती हैं। इनके हाथ किसी भी गरीब की सेवा करने में पीछे नहीं हटते। मरीज गरीब हो या अमीर, इनके लिए सब...

अंतरराष्ट्रीय नर्सेज डे  : मरीजों की सेवा के साथ पर्यावरण और अनाथ बच्चों का ख्याल रखती हैं ये नर्सें
निज संवाददाता ,लखनऊ Sun, 12 May 2019 12:32 PM
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नर्सिंग सेवा बिना किसी भेदभाव के मरीजों को दी जाती है। नर्सें मरीज की जाति और धर्म देखकर इलाज नहीं करती हैं। इनके हाथ किसी भी गरीब की सेवा करने में पीछे नहीं हटते। मरीज गरीब हो या अमीर, इनके लिए सब समान हैं। सेवा को ही अपना धर्म मानकर नर्सें अस्पताल और मरीज के बीच अपना जीवन गुजार देतीं हैं। इसलिए कहा जाता है कि नर्सिंग सेवा से बेहतर कोई और सेवा नहीं है। इसी सेवा के चलते नाइटेंगिल दुनिया में चर्चित हुईं और उनका नाम आज भी चिरस्मरणीय है। अंतरराष्ट्रीय नर्सेज डे पर ‘हिन्दुस्तान’ ने राजधानी के अस्पतालों में तैनात कुछ नर्सों से बात की, जिन्होंने सेवा को ही महत्व दिया। 

सेवा के साथ पर्यावरण का ख्याल 
प्रियदर्शिनी कॉलोनी निवासी बिंदेश्वरी देवी वीरांगना अवंती बाई महिला अस्पताल (डफरिन) में ओटी इंचार्ज हैं। जल्द ही इनका रिटायरमेंट है। अस्पताल की निदेशक, सीएमएस ने बिंदेश्वरी का नाम राष्ट्रपति पुरस्कार के लिए भेजा है। बिंदेश्वरी ने मरीजों की सेवा में अपनी जिंदगी लगा दी। पति, बच्चे कितनी बार बीमार हुए, लेकिन समय से पहले ड्यूटी नहीं छोड़ी। ड्यूटी से छूटने के बाद वह पौधरोपण और रक्तदान के लिए लोगों को जागरुक करने निकल जाती हैं। घर के पास ही उन्होंने अपने रुपयों से एक पार्क को संवारा। उसमें सीमेंटेड सीट बनवाईं, पौधे लगवाए। पति पंजाब एंड सिंध बैंक से रिटायर हैं, बेटी आईआईएम अहमदाबाद से एमबीए, बेटा एमएससी किया है। इलाहाबाद में वह नर्सिंग सेवा के लिए सम्मानित हो चुकी हैं। 

33 साल की नौकरी में नहीं हुई शिकायत

आईआईएम भिठौली निवासी बीना पाठक बलरामपुर अस्पताल में डायलिसिस यूनिट इंचार्ज हैं। उन्हें नौकरी करते करीब 33 साल बीत गए। अब वह रिटायर होने वाली हैं। वर्ष 1990 में उन्होंने बीएससी नर्सिंग भी किया था। डफरिन में 22 साल तक नौकरी की। पति रिटायर हैं। बेटा मर्चेंट नेवी और बहू मिलिट्री में है। एक बेटी पढ़ाई कर रही है। परिस्थितियां कुछ भी हो, लेकिन ड्यूटी इमानदारी से निभाया। कई ऐसे मौके आए जब परिवार में पति, बच्चे बीमार हुए। लेकिन समय से पहले ड्यूटी नहीं छोड़ी, छुट्टी नहीं ली। वह इतनी सरल, सौम्य रहीं कि आज तक उनकी किसी मरीज, डॉक्टर या स्टाफ ने कोई शिकायत नहीं की। उन्हें एक बात का अफसोस है कि नौकरी के दौरान ही उन्होंने बीएससी किया, सरकार ने खुद रुपए दिए पर, एजूकेशन लाभ उन्हें नहीं मिला। 

अनाथ बच्चों को देती हैं समय  

डॉक्टर राम मनोहर लोहिया आयुर्विज्ञान संस्थान के रेडियोथेरेपी विभाग में तैनात एएनएस रंजीता नर्सिंग प्रोफेशन में आकर मरीजों की सेवा को तो प्राथमिकता देती ही हैं। साथ ही वह अपना ज्यादातर समय अनाथ बच्चों और मलिन बस्तियों में रहने वाले बच्चों को देती हैं। बच्चों की हर संभव मदद के साथ ही समय निकालकर उन्हें पढ़ाने में रंजीता की रुचि रहती है। उन्हें करीब 20 साल नौकरी करते हो गए हैं। अपने बच्चों को भी पूरा समय देती हैं। उनकी भी पढ़ाई आदि का पूरा ख्याल रखती हैं। अनाथ और मलिन बच्चों की जन्मदिन पर उनके पास पहुंचकर केक काटना, उनको उपहार देना नहीं भूलती हैं। रंजीता कहती हैं कि खुद के बच्चों के साथ इन बच्चों के बीच समय बिताकर बहुत खुशी मिलती है। इनके लिए जीवन भर काम करना चाहती हूं। 

35 साल से सेवा में, शादी तक नहीं की

केजीएमयू के प्लास्टिक सर्जरी विभाग में इंचार्ज के पद पर तैनात शशि सिंह और यहीं के ईएनटी विभाग की इंचार्ज संतोष वर्मा ने एक साथ 35 साल पहले नर्सिंग सेवा में शुरुआत की। दोनों ही नर्स टीजी हॉस्टल में रह रही हैं। इन दोनों ने ही शादी नहीं की। मरीजों की सेवा करने में इनका कोई सानी नहीं है। समय पर नौकरी करना तो इनकी प्राथमिकता रही है। मरीजों की सेवा को ही इन्होंने हमेशा अपना धर्म माना। कई गरीब मरीजों के इलाज का खर्च तक इन दोनों ने खुद वहन किया। वार्ड में सहयोगियों और सीनियर-जूनियर डॉक्टरों से बेहतर सामन्जस्य हमेशा रहा। हाल में ही शशि सिंह के घर पर जीवन भर की कमाई चोरी होगई। लाखों के जेवरात और एक लाख रुपए कैश अलमारी से चोरी हुआ। मगर केजीएमयू प्रशासन ने रुचि नहीं दिखाई।  

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