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देशज भाषाओं में ज्ञान देने से लौटेगा भारत का स्वत्व

Lucknow News - भारतीय समाज का इतिहास विदेशी आक्रमणों से भरा है। प्रो. अभय कुमार दुबे ने लखनऊ विश्वविद्यालय में व्याख्यान देते हुए बताया कि 18वीं सदी से यूरोपीय उपनिवेशन ने भाषा, शिक्षा और ज्ञान के क्षेत्रों में गहरा...

Newswrap हिन्दुस्तान, लखनऊWed, 19 Feb 2025 12:07 AM
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देशज भाषाओं में ज्ञान देने से लौटेगा भारत का स्वत्व

भारतीय समाज का इतिहास विदेशी आक्रमणों और थोपी गई अधीनस्थताओं से भरा हुआ है। लेकिन 18वीं सदी से शुरू हुआ यूरोपीय उपनिवेशन पहले की सभी अधीनस्थताओं से अलग तरह का था। यह बातें डॉ. बीआर अम्बेडकर विश्वविद्यालय दिल्ली स्थित देशिक अभिलेख अनुसंधान केन्द्र के निदेशक प्रो. अभय कुमार दुबे ने कही। वह लखनऊ विश्वविद्यालय में कुमारस्वामी फाउंडेशन की ओर से आयोजित 19वें पण्डित भुवनेशचन्द्र मिश्र स्मृति व्याख्यान में मुख्य वक्ता रहे। प्रो. दुबे ने अपनी देशज भाषाओं में मौलिक ज्ञान सृजन के जरिए भारत के दोबारा अपने स्वत्व को प्राप्त करने का आह्वान किया। प्रोफेसर दुबे ने कहा कि भारत की राजनीतिक संप्रभुता हड़प कर उसके आर्थिक दोहन के अलावा उसके पास एक अत्यंत दूरगामी मकसद भी था। इसी के मुताबिक 190 वर्ष के अपने शासन में उपनिवेशकों ने सत्ता के दम पर भाषा, शिक्षा और ज्ञान के क्षेत्रों पर वर्चस्व स्थापित करने की दीर्घकालीन प्रक्रिया चलाई। समाज को भीतर से बाहर तक बदल कर उसे यूरोप की घटिया प्रतिलिपि बनाने के अभूतपूर्व प्रोजेक्ट को धीरे-धीरे धरती पर उतारा गया। उन्होंने कहा कि आज के भारतीय समाज पर एक सरसरी नजर डालते ही स्पष्ट हो जाता है कि उपनिवेशक अपने पीछे जो भारत छोड़ गए हैं, वह थोड़े-बहुत हेरफेर के साथ भाषा, शिक्षा और ज्ञान के क्षेत्रों में ठीक वैसा ही है, जैसा उन्होंने अपनी सांस्कृतिक-प्रौद्योगिकी के जरिए गढ़ा था। पिछले सत्तर साल से ज्यादा की राष्ट्रीय संप्रभुता भी इन क्षेत्रों में कोई ख़ास हस्तक्षेप नहीं कर पाई है। व्याख्यान की अध्यक्षता फाउंडेशन के अध्यक्ष प्रो. आरके मिश्र ने की। इस दौरान फाउंडेशन की वार्षिक पत्रिका तत्त्व-सिन्धु के दसवें अंक का विमोचन भी हुआ। कार्यक्रम में लखनऊ विश्वविद्यालय सहित अन्य विश्वविद्यालयों और महाविद्यालयों के वरिष्ठ शिक्षक, स्नातक, परास्नातक और शोध-छात्र तथा नगर के गणमान्य नागरिक बड़ी संख्या में उपस्थित रहे।

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