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बाढ पीड़ितों के पुनर्वास पर विचार कर हल निकालें मुख्य सचिव

हाईकोर्ट ने दिए आदेश, कहा भारत के हर नागरिक को गरिमापूर्ण जीवन जीने का...

बाढ पीड़ितों के पुनर्वास पर विचार कर हल निकालें मुख्य सचिव
हिन्दुस्तान टीम,लखनऊTue, 28 Nov 2017 08:36 PM
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हाईकोर्ट ने दिए आदेश, कहा भारत के हर नागरिक को गरिमापूर्ण जीवन जीने का अधिकार लखनऊ। विधि संवाददाता हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने शारदा नदी के बाढ़ से प्रभावित लोगों के पुनर्वास पर विचार कर हल निकालने का आदेश मुख्य सचिव को दिया है। हालांकि न्यायालय ने बाढ पीड़ितों की उस याचिका को खारिज कर दिया जिसमें उन्होंने एक निश्चित जमीन पर रहने की इजाजत मांगी थी। लेकिन न्यायालय ने याचियों की समस्या को देखते हुए, मुख्य सचिव को उनकी शिकायत पर विचार कर, हल निकालने का आदेश दिया है। यह आदेश न्यायमूर्ति शबीहुल हसनैन और एसके सिंह (प्रथम) की खंडपीठ भागीरथ व अन्य की याचिका पर दिया। याचियों का कहना था कि वे शारदा नदी के बाढ़ से प्रभावित हैं। बाढ में उनका घर-बार उजड़ गया है और फिलहाल वे खीरी जनपद के निघासन तहसील के मझगई गांव में अस्थाई तरीके से रह रहे हैं। याचियों का कहना था कि वहीं राजा युवराज दत्त सिंह की खेती की जमीन है जिसमें उन्होंने याचियों को खेती करने की इजाजत दी हुई है। इससे याचियों का गुजारा हो जाता है। लेकिन वन विभाग को याचियों के उक्त जमीन पर रहने में आपत्ति है और उन्हें निकालने के लिए पुलिस कार्रवाई भी की जा चुकी है व उनमें से कईयों को हिरासत में भी लिया जा चुका है। याचिका का राज्य सरकार की ओर से विरोध किया गया। मामले की सुनवाई के उपरांत न्यायालय ने पाया कि जमीन जंगल के लिए ही रिजर्व है और उसका इसके सिवा कोई अन्य उपयोग नहीं किया जा सकता। लिहाजा न्यायालय ने याचियों की उक्त जमीन को याचियों के पुनर्वास के लिए आवंटित करने से इंकार करते हुए, याचिका को खारिज कर दिया। लेकिन न्यायालय ने याचियों की समस्या पर गौर करते हुए कहा कि याचिका कानूनी आधार पर खारिज की गई है परंतु न्यायालय याचियों की परिस्थिति से आंख नहीं मूंद सकता। “याची भारत के नागरिक हैं और वे एक प्राकृतिक आपदा से पीड़ित हैं। भले ही एक निश्चित जमीन पर रहने का याचियों का दावा मजबूत नहीं है लेकिन उन्हें भी गरिमापूर्ण तरीके से जीवन जीने का मौलिक अधिकार है। भारत का संविधान अपने प्रस्तावना में ही सामाजिक और आर्थिक न्याय के लिए वचनबद्ध है लिहाजा राज्य सरकार याचियों के पुनर्वास की जिम्मेदारी से मुक्ति नहीं पा सकती। यदि न्यायालय राज्य सरकार को बाढ से बेघर हुए गरीब पीड़ितों के पुनर्वास जैसी योजना के लिए निर्देशित नहीं करता तो वह अपना दायित्व निभाने में असफल होगा। देश के नागरिक को सरकार से ऐसी उम्मीद करना पूरी तरह न्यायसंगत है।“

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