फांसी की सजा पाए युवक को हाईकोर्ट ने किया बरी
दुराचार व हत्या के आरोप में हुई थी मृत्यु की सजा लखनऊ। विधि संवाददाता

दुराचार व हत्या के आरोप में हुई थी मृत्यु की सजा
लखनऊ। विधि संवाददाता
हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने मृत्यु की सजा पाए एक युवक को बाइज्जत बरी कर दिया। नाबालिग लड़की के साथ दुराचार करने व बाद में उसकी गला घोंटकर हत्या करने के मामले में सात साल पूर्व युवक को दोषसिद्ध किया गया था। युवक की अपील को स्वीकार करते हुए न्यायालय ने कहा कि अभियोजन अपना केस संदेह से परे नहीं साबित कर पाया। न्यायालय ने साथ ही यह भी टिप्पणी की कि वह इस बात को ध्यान में रख रहे है कि इस मामले में एक 12 साल की नाबालिग के साथ घटना घटी लेकिन अभियोजन के साक्ष्यों से अपीलार्थी उक्र घटना कारित किये जाने की पुष्टि नहीं होती। युवक अप्रैल 2013 से जेल में है।
यह निर्णय न्यायमूर्ति रमेश सिन्हा व न्यायमूर्ति राजीव सिंह की खंडपीठ ने पारित किया। न्यायालय ने अपने फैसले में विवेचना में की गयी कई गलतियों को उजागर किया। ट्रायल कोर्ट के फैसले की भी न्यायालय ने आलोचना की।
बाराबंकी के देवां थाना क्षेत्र एक गांव में 12 साल की नाबालिग लड़की का शव गांव के ही बाग में मिला, जिसके बाद मृतका के पिता ने उसी दिन 30 मार्च 2013 को घटना की एफआईआर दर्ज कराई। बाद में गांव के ही तीन लोगों की गवाही पर अपीलार्थी उभान यादव उर्फ अभय कुमार यादव को आरोपित बनाकर पुलिस ने उसके खिलाफ आरोप पत्र दाखिल कर दिया। अपर सत्र न्यायाधीश प्रथम बाराबंकी ने 29 अगस्त 2014 को युवक को फांसी की सजा सुनाई। जिसके खिलाफ उसने हाईकोर्ट में अपील की।
युवक केा संदेह का लाभ देते हुए न्यायालय ने अपने फैसले में कहा कि अभियोजन ने जिन तीन परिस्थितिजन्य साक्ष्यों को पेश किया, जिनके अनुसार उन्होंने युवक को बाग से आते हुए देखा था उन सभी के बयानों में विरोधाभाष है। साथ ही एफएसएल रिपेार्ट को अभियोजन ने साबित नहीं कराया क्योंकि वह रिपेार्ट युवक के निर्दोषता को बल दे रही थी। विवेचक डीएनए जांच करानी चाहिए थी लेकिन उसने ऐसा न करके बड़ी गलती की। साथ ही जिस नोटबुक को घटना स्थल से आरोपित के संस्वीकृत बयान के आधार पर बरामद होना बताया जा रहा है उसके लेख की एफएसएल जांच भी नहीं कराई गई। वहीं विचारण अदालत ने सीआरपीसी की धारा 313 के तहत आरोपित को स्पष्ट नही किया कि उसके खिलाफ क्या क्या साक्ष्य हैं जिन पर अभियेाजन भरोसा कर रहा है।
