आंखों देखी : तटबंध निर्माण के नाम पर खेल, बाढ़ में सारे दावे फेल
भिखारीपुर सकरौर के टूटे हुए तटबंध पर बनाए जा रहे बैक रिंग बांध का प्रयोग अब पूरी तरह से असफल साबित हो रहा है। घाघरा के बढ़े जलस्तर ने बांस बल्लियों व मिट्टी भरी बोरियों के सहारे अब तक बनाए गए बांध को...
भिखारीपुर सकरौर के टूटे हुए तटबंध पर बनाए जा रहे बैक रिंग बांध का प्रयोग अब पूरी तरह से असफल साबित हो रहा है। घाघरा के बढ़े जलस्तर ने बांस बल्लियों व मिट्टी भरी बोरियों के सहारे अब तक बनाए गए बांध को निष्फल साबित कर दिया है। पानी अपनी पूरी रफ्तार से मजरों में भरता जा रहा है।
लोगों का कहना है कि तटबंध पर बीते पांच वर्षों के अंदर कार्य के नाम पर मोटी रकम खर्च की गयी है। मरम्मत के काम होते तो बांध टूटता ही नहीं है। बाढ़ के समय मरम्मत कराने से मेटेरियल भी बह जाता है। लेखा-जोखा बचा रहता है। इस समय भी सरयू के प्रवाह से सभी मजरे लबालब भरे हुए हैं तब इसके मरम्मत की क्या जरूरत है। केवल आवंटित बजट को खपाने का काम चल रहा है।
तटबंध कटने से 10 किलोमीटर बांध असुरक्षित: सरयू द्वारा कटान करने से जहां बच्ची माझा के समीप 200 मीटर बंधा धराशायी हो गया है। वही ऐली परसोली में उक्त बांध 20 मीटर ग्रामीणों ने पानी निकालने के लिए खुद काट डाला है जो अब धीरे-धीरे बढ़ता जा रहा है। इन दो जगह बांध के टूट जाने से बीच में लगभग 10 किलोमीटर बांध पूरी तरह असुरक्षित हो गया है। इस बीच बांध पर पहुंचने के सभी रास्ते बंद हो चुके हैं। बिशुनपुर ऐली परसोली पर घाघरा नदी बांध पर ठोकरे मार रही हैं। बांध को टूटने से बचाने के लिए वहां पर सामग्री का अकाल पड़ा है। क्योंकि वहां पर सामग्री पहुंचाने के लिए कोई भी रास्ता नहीं बचा। वहां पर कार्य करा रहे ठेकेदार ने बताया कि हम लोग नांव के सहारे झावा मंगाते हैं और फिर उसी को बोरियों में भर भर कर यहां डाल रहे हैं।अब घाघरा का जलस्तर बढ़ा तो बांध टूटने की पूरी उम्मीद है।
यहां डॉल्फिन मछलियों ने जमाया डेरा: भिखारीपुर सकरौर के टूटे हुए तटबंध पास डॉल्फिन मछलियों ने बसेरा जमा लिया है। दिन भर घाघरा नदी में अठखेलियां करती रहती है। उनकी लंबी छलांग देखने के लिए लोग घंटों जमे रहते हैं। लोग उन्हें उत्सुकता के साथ देखते हैं। इसे स्थानीय भाषा में छूंछ के नाम से जाना जाता है। इसके साथ ही घाघरा से जुड़ी सरयू में भी डॉल्फिन देखी जा रही हैं। उनकी लंबाई 3 फुट से 4 फुट तक है। यहां काम कर रहे मजदूरों ने बताया कि पिछले सप्ताह से यहां पर भारी संख्या में छूंछ दिखाई पड़ रही हैं। मछुआरे इनका शिकार नहीं करते बल्कि इन्हें देवी समान मानते हैं।