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जीवन शैली व सामाजिक व्यवहार में भी बदलाव लाएगा कोरोना संकट

कोरोना संकट से जूझ रहे लोगों में अब बहस इस बात को लेकर भी शुरू हो गई है कि हालात सामान्य होने के बाद देश और समाज की परिस्थितियों में कैसा बदलावा...

जीवन शैली व सामाजिक व्यवहार में भी बदलाव लाएगा कोरोना संकट
Newswrapहिन्दुस्तान टीम,लखनऊWed, 01 Apr 2020 07:07 PM
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बुद्धजीवी तबके के चिंतन-मनन का विषय बना कोरोना प्रमुख संवाददाता-राज्य मुख्यालयकोरोना संकट से जूझ रहे लोगों में अब बहस इस बात को लेकर भी शुरू हो गई है कि हालात सामान्य होने के बाद देश और समाज की परिस्थितियों में कैसा बदलावा आएगा? यह सवाल वैसे तो हर नागरिक के जेहन में है लेकिन समाजशास्त्रियों और साहित्यकारों ने तो इसे चिंतन-मनन का विषय ही बना रखा है। उनका मानना है कि इस संकट से जीवन शैली और सामाजिक व्यवहार में काफी बदलाव आएगा। दूर होगी नगरीय समाज की व्यक्तिवादितासमाजशास्त्री डॉ. मनोज छापड़िया का कहना है कि इस महामारी ने परिवार नाम की संस्था को एक नई संजीवनी दी है। संकट की इस घड़ी में विदेशों में कार्यरत भारतीय पासपोर्ट धारकों को मनोवैज्ञानिक और भावनात्मक सुरक्षा के लिए अपने परिवार के पास स्वदेश लौटना पड़ा। छोटे और मछले शहरों में जिन पड़ोसियों के बीच वर्षों से बोलचाल बंद थी, वहां कड़वाहट कमजोर हुई है। इसी तरह नगरीय समाज की व्यक्तिवादिता, सामुदायिक संवेदनशीतला और मानवीय बोध से युक्त होती दिख रही है। अनौपचारिक संबंधों में जिस औपचारिकता, संवेदनहीनता और भावनात्मक तटस्थता ने कब्जा कर रखा था, उसमें कोरोना संकट के कारण सकारात्मक परिवर्तन आएगा। जनता की इम्यूनिटी से मजबूत होगा देशसाहित्यकार डॉ. सत्येन्द्र कुमार दुबे यह मानने को तैयार नहीं हैं कि यह कोरोना संकट किसी एक तिथि को समाप्त हो जाएगा और लोगों की पिछली जीवन शैली फिर से लौट आएगी। वह कहते हैं कि यदि इसकी दवा आ भी जाती है तो सबसे पहले पैनिक ख़त्म हो जाएगा लेकिन कोरोना का छोटा सा डर लोगों के भीतर बना रहेगा। सबसे बड़ा क्रांतिकारी परिवर्तन तो यह होगा कि खांसने-छींकने को अब हमेशा गम्भीरता से लिया जाने लगेगा और ऐसी दशाओं में लोग स्वास्थ्य के प्रति सचेत रहने लगेंगे। हाथ मिलाने और गले मिलने का चलन कम होगा। घटेगा। भवनों की वास्तु संरचना में ‘अटैच्ड बाथरूम का चलन भी समाप्त हो सकता है। चाइनीज और पश्चिमी भोजन प्रति जो लगाव बढ़ा था, उसमें भी गिरावट आ सकती है। खाने-पकाने के मामले में स्वावलम्बन बढ़ेगा और मांसाहार में भी भारी गिरावट आ सकती है। डॉ. दुबे मानते हैं कि इस संकट से स्वच्छ भारत अभियान को स्वत: बल मिलेगा। जिस देश की जनता की इम्यूनिटी जितनी अधिक होगी, वह उतना ही मजबूत माना जाएगा।

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