बिजली दरों में बढ़ोत्तरी के प्रस्ताव को नियामक आयोग में दी चुनौती
Lucknow News - उत्तर प्रदेश विद्युत उपभोक्ता परिषद ने बिजली कंपनियों द्वारा 12800 करोड़ के घाटे के वार्षिक राजस्व आवश्यक्ता को नियम विरुद्ध बताया है। परिषद ने अपील की है कि जब उपभोक्ताओं का 33122 करोड़ रुपये बिजली...

- विरोध प्रस्ताव के माध्यम से बिजली दरों में कमी का प्रस्ताव मांगने की अपील - 15-20 फीसदी तक दरें बढ़वाने की कोशिश में बिजली कंपनियां
- 33122 करोड़ रुपये उपभोक्ताओं का निकल रहा बिजली कंपनियों पर
लखनऊ, विशेष संवाददाता
उत्तर प्रदेश विद्युत नियामक आयोग में बिजली कंपनियों द्वारा दाखिल 12800 करोड़ के घाटे के वार्षिक राजस्व आवश्यक्ता (एआरआर) को राज्य विद्युत उपभोक्ता परिषद ने नियम विरुद्ध बताया है। मंगलवार को नियामक आयोग में विरोध प्रस्ताव दाखिल करते हुए आयोग से अपील की गई है कि वह बिजली कंपनियों से संशोधित प्रस्ताव मंगवाए। बिजली कंपनियों पर जब उपभोक्ताओं का 33122 करोड़ रुपये निकल रहा है तो ऐसे में बिजली दरों में कमी का प्रस्ताव दाखिल किया जाना चाहिए।
पावर कारपोरेशन कहा रहा विद्युत अनिधियम का उल्लंघन
राज्य विद्युत उपभोक्ता परिषद के अध्यक्ष अवधेश कुमार वर्मा ने मंगलवार को नियामक आयोग के अध्यक्ष अरविंद कुमार और सदस्य संजय कुमार से सिंह से मुलाकात कर इस मुद्दे पर चर्चा की साथ ही विरोध प्रस्ताव दाखिल किया। प्रस्ताव में लिखा है कि उत्तर प्रदेश पावर कारपोरेशन विद्युत अधिनियम-2003 की धारा-19 (3) का खुला उल्लंघन कर रहा है। वर्ष 2025-26 के लिए जिस कंपनी की एआरआर का प्रस्ताव नियामक आयोग में दाखिल कर दी गई है, उन कंपनियों का निजीकरण इसी वित्तीय वर्ष में नहीं किया जा सकता है। उन्होंने बताया है कि आयोग में दायर किए गए प्रस्ताव के माध्यम से उन्होंने विद्युत नियामक आयोग से मांग की है कि वह दक्षिणांचल व पूर्वांचल विद्युत वितरण निगम को पीपीपी माडल पर निजी हाथों में दिए जाने पर रोक लगाये साथ ही इन दोनों कंपनियों के बोर्ड आफ डायरेक्टर को तत्काल बर्खास्त कर प्रशासक नियुक्त करे।
गैप के माध्यम से 20 फीसदी तक दरें बढ़वाना चाहती हैं कंपनियां
प्रस्ताव में लिखा है कि प्रदेश की विद्युत वितरण कंपनियों की तरफ से 12800 करोड़ रुपये घाटे (गैप) का एआरआर दाखिल किया गया है। बिजली दरों का जिक्र किए बगैर घाटे के माध्यम से चोर दरवाजे से 15 से 20 फीसदी तक दरों में बढ़ोत्तरी कराने की कोशिश है। प्रस्ताव में लिखा है कि बिजली कंपनियों द्वारा दाखिल एआरआर प्रस्ताव कानूनन सही नहीं है। जब प्रदेश के उपभोक्ताओं का बिजली कंपनियों पर 33122 करोड़ रुपये सरप्लस निकल रहा है, ऐसे में बिजली दरों में कमी का प्रस्ताव दाखिल होना चाहिए था।
एआरआर दाखिल होने से पूर्वांचल व दक्षिणांचल के निजीकरण में फंसा पेंच
अवधेश वर्मा ने कहा है कि पूर्वांचल व दक्षिणांचल के लिए भी एआरआर दाखिल हो जाने से इन दोनों कंपनियों के निजीकरण में भी पेंच फंस गया है। पीपीपी माडल पर 51 फीसदी हिस्सेदारी निजी कंपनियों को दिया जाना आसान नहीं होगा। नियामक आयोग में जब इन दोनों कंपनियों के नाम से प्रस्ताव दाखिल है कि 2025-26 के वित्तीय वर्ष में इन दोनों कंपनियों के कार्यक्षेत्र में कोई भी बदलाव नहीं किया जा सकता है।
पूर्वांचल व दक्षिणांचल को यदि पीपीपी मॉडल में दिया जाना था तो सबसे पहले कारण बताते हुए लाइसेंस निरस्त करने का आवेदन किया जाना चाहिए। विद्युत अधिनियम-2003 यह कहता है कि कम से कम तीन महीने की नोटिस के बाद ही लाइसेंस निरस्त किया जा सकेगा। अब इन दोनों कंपनियों के लिए लाइसेंस वापस करने के लिए आवेदन की इजाजत भी कानून नहीं देगा क्योंकि इन दोनों कंपनियों के एआरआर का प्रस्ताव 2025-26 के लिए दाखिल हो चुका है।
उपभोक्ताओं को विश्वास में लिए बगैर निजीकरण उचित नहीं
उन्होंने कहा है कि प्रदेश के विद्युत उपभोक्ताओं का एग्रीमेंट इन दोनों बिजली कंपनियों के साथ है, इन दोनों बिजली कंपनियों को उपभोक्ताओं को विश्वास में लिए बगैर किसी निजी कंपनी के बवाले किया जाना उचित नहीं है। इन दोनों कंपनियों पर भी करीब 2500 करोड़ रुपये से अधिक की धनराशि उपभोक्ताओं की सिक्योरिटी मनी के रूप में जमा है।
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