ट्रेंडिंग न्यूज़

Hindi News उत्तर प्रदेश लखनऊ जनता दल की लहर के कहर से 10 चुनाव बाद भी नहीं उभर सकी कांग्रेस

जनता दल की लहर के कहर से 10 चुनाव बाद भी नहीं उभर सकी कांग्रेस

आजादी के बाद से सदा सत्ता के शीर्ष पर रहने वाली कांग्रेस के पराभव का आगाज नब्बे के दशक में शुरू हुआ था। 1989 के जनता दल के लहर में बही कांग्रेस विरोधी हवा ने देश की सबसे बड़ी और पुरानी पार्टी को अर्श...

 जनता दल की लहर के कहर से 10 चुनाव बाद भी नहीं उभर सकी कांग्रेस
हिन्दुस्तान टीम,लखनऊMon, 22 Apr 2019 06:32 PM
ऐप पर पढ़ें

आजादी के बाद से सदा सत्ता के शीर्ष पर रहने वाली कांग्रेस के पराभव का आगाज नब्बे के दशक में शुरू हुआ था। 1989 के जनता दल के लहर में बही कांग्रेस विरोधी हवा ने देश की सबसे बड़ी और पुरानी पार्टी को अर्श से फर्श पर पहुंचा दिया। यह जनता दल की लहर का ही असर रहा कि कांग्रेस का तब से शुरू हुआ राजनीतिक वनवास आज तक खत्म नहीं हो सका है।

सन 1984 के बाद कांग्रेस पहले के अकबरपुर सुरक्षित और आज की अम्बेडकरनगर संसदीय सीट पर जीत को तरस रही है। कांग्रेस के अंतिम सांसद रामपियारे सुमन 1984 में निर्वाचित हुए थे। 1989 में जनता दल की लहर में कांगेस के टिकट पर चुनाव लड़े सिटिंग सांसद रामपियारे सुमन रहे तो दूसरे ही स्थान, पर मगर उन्हें 1,30,972 मत यानि 25.91 फीसदी ही वोट मिला। इसके बाद चुनाव दर चुनाव कांग्रेस के मतों का ग्राफ गिरता ही रहा। आलम यह हुआ कि 1991 में कांग्रेस पांचवें स्थान पर पहुंच गई। इस चुनाव में कांग्रेस के उम्मीदवार रहे रामलोचन को महज 43,846 मत यानि 8.91 फीसदी वोट मिला था। 1996 में कांग्रेस छठे स्थान पर पहुंच गई। इस चुनाव में कांग्रेस ने जनता पार्टी से तीन बार सांसद रह चुके रामअवध को पार्टी में शामिल कर चुनाव में उतारा था। कांग्रेस का यह प्रयोग भी निराशाजनक ही रहा। कांग्रेस के मतों का ग्राफ और गिर गया। रामअवध को महज 5690 यानि 0.91 फीसदी मत ही मिला। कांग्रेस छठे स्थान पर पहुंच गई।

सन 1998 के चुनाव में कांग्रेस फिर पांच नंबर पर पहुंच गई मगर वोट और कम हो गया। अपना दल से भी पीछे रही कांग्रेस को केवल 4451 यानि 0.59 फीसदी मत ही मिला। 1999 में तो नाम बड़े दर्शन छोटे वाली कहावत कांग्रेस के बड़े नेता माता प्रसाद ने चरितार्थ कर दी। पांचवें स्थान पर रही कांग्रेस के बड़े नाम वाले माता प्रसाद को 19,522 यानि 2.64 फीसदी मत ही मिला था। 2004 में कांग्रेस फिर पांचवें स्थान पर ही रही। जैसराज गौतम को 28,312 यानि 3.82 फीसदी मत मिला। 2009 के चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी ही नहीं उतर सकी। 2014 में एक अंक की छलांग लगा कर कांग्रेस चौथे स्थान पर तो पहुंची मगर 2004 से भी कम मत बटोर सकी। इस चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी अशोक सिंह को 22,775 यानि 1.33 फीसदी मत ही मिला।

नाम बड़े दर्शन छोटे :

कांग्रेस ने इस संसदीय सीट पर तीन बार नामचीन को उम्मीदवार बनाया मगर बात नहीं बनी। पहली बार बड़े नाम वाले माता प्रसाद 1999 के आम चुनाव में प्रत्याशी बने थे। दो अन्य नामचीन राज बहादुर 2002 के उप चुनाव में और उमेद निषाद 2004 के उप चुनाव में प्रत्याशी बने। इन दोनों को भी हार नसीब हुई। हालांकि दोनों ही दूसरे स्थान पर रहे। राज बहादुर को 16,111 यानि 3.25 फीसदी मत और उमेद निषाद को 1,20,638 यानि 15.10 फीसदी मत मिला था।

हर प्रयोग हुआ विफल :

कांगेस ने अम्बेडकरनगर संसदीय सीट पर अपनी खोई प्रतिष्ठा को वापस पाने के लिए कई प्रयोग किए। दल-बदल कराया। हर चुनाव में प्रत्याशी बदला। कांग्रेस की सियासत के शिखर पर रहे नेताओं को मैदान पर उतारा। राज्यपाल रह चुके दिग्गज पर भी दांव लगाया। बाबजूद इसके कांग्रेस को कामयाबी मिलना तो दूर सम्मानजनक हार भी नहीं मिली।

एक चेहरे पर फिर नहीं लगाया दांव :

चुनाव दर चुनाव हार से बौखलाई कांग्रेस ने हर चुनाव में प्रत्याशी बदला। एक चेहरे को दूसरी बार टिकट नहीं दिया। आम चुनाव क्रमश: 1991 में राम लोचन को, 1996 में राम अवध को, 1998 में कृष्ण कुमार को, 1999 में माता प्रसाद को, 2004 में जैसराज गौतम को, 2014 में अशोक सिंह को तो उप चुनाव में क्रमश: 2002 में राज बहादुर को और 2004 में उमेद निषाद को कांगेस ने प्रत्याशी बनाया था।

हिन्दुस्तान का वॉट्सऐप चैनल फॉलो करें