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आयात निर्यात पॉलिसी और जीएसटी दरों में हो बदलाव

जीएसटी की दरों को सीमित करना और आयात-निर्यात पॉलिसी में बदलाव जैसी मांगें अब जोर पकड़ रही हैं। आने वाले बजट को लेकर कारोबारियों के पास मांगों की एक लंबी सूची है। कारोबारी कहते हैं कि आयात-निर्यात...

आयात निर्यात पॉलिसी और जीएसटी दरों में हो बदलाव
हिन्दुस्तान टीम,लखनऊTue, 21 Jan 2020 09:29 PM
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जीएसटी की दरों को सीमित करना और आयात-निर्यात पॉलिसी में बदलाव जैसी मांगें अब जोर पकड़ रही हैं। आने वाले बजट को लेकर कारोबारियों के पास मांगों की एक लंबी सूची है। कारोबारी कहते हैं कि आयात-निर्यात पॉलिसी के कारण नेपाल में मटर 3500 रुपये कुंतल और देश में 5600 रुपये कुंतल के भाव में बिक रही है। हालात यह हैं कि तिलहन-दलहन की खेती के बारे में कोई ठोस योजना ही नहीं बनी। इसका असर यह हुआ कि देश में लगभग 90 फीसदी दाल बाहर से आयात की जा रही है और कृषि प्रधान देश होने के बावजूद हमारा रुपया दूसरे देशों को जा रहा है। अब समय आ गया है इन व्यवस्थाओं में बदलाव हो तो कारोबार और उद्योग जगत में तेजी आएगी तो जीडीपी बढ़ेगी और आर्थिक मंदी दूर होगी।

उड़द, मूंग, राजमा, अरहर समेत अन्य दालें रंगून, थाईलैंड,आस्ट्रेलिया और चीन से मंगाई जा रही हैं। आयात-निर्यात पॉलिसी अच्छी न होने के कारण बिचौलिए और दलाल इसका भरपूर फायदा उठा रहे हैं। इसका अच्छा उदाहरण यह है कि मटर नेपाल में 3500 रुपये और हमारे यहां 5600 रुपये कुंतल के भाव में बिक रही है। बाजार को मजबूती देने के लिए बजट में सरकार कुछ ऐसी योजनाओं पर काम करे जिससे देश और कारोबार दोनों मजबूत हो।

राजेन्द्र अग्रवाल, गल्ला कारोबारी

आयकर छूट की सीमा छह लाख रुपये होनी चाहिए। इसमें कोई अन्य छूट को शामिल न किया जाए। वहीं दस लाख की आय वालों से केवल दस फीसदी टैक्स लिया जाए। वहीं दूसरी तरफ टीडीएस केवल टैक्सपेयर से ही लिया जाए। जिसका आयकर ही नहीं बनता तो उससे टीडीएस काटना कहां का न्याय है। इन्हें बेवजह परेशान किया जा रहा है। यह फिर दौड़धूप करके अपना पैसा वापस पाने की तैयारी में लग जाता है।

बनवारीलाल कंछल, अध्यक्ष, उत्तर प्रदेश उद्योग व्यापार प्रतिनिधिमंडल

जीएसटी का स्लैब अब केवल 3 और 12 फीसदी ही रहना चाहिए। इससे ज्यादा की टैक्स व्यवस्था केवल कारोबारियों को परेशान ही कर रही है और सरकार को भी राजस्व कम मिल पा रहा है। यही हाल आयकर का भी है। इसकी छूट सीमा छह लाख करने के बाद टैक्स दरों में बदलाव करके ज्यादा से ज्यादा लोगों को जोड़ा जा सकता है। अर्थशास्त्र का नियम है कि जब टैक्स दर कम होगी तो टैक्सपेयर अपने आप बढ़ जाते हैं।

अमरनाथ मिश्र, वरिष्ठ महामंत्री, लखनऊ व्यापार मंडल

आयकर व्यवस्था को इतना आसान कर देना चाहिए कि यह आमजनता के लिए फायदेमंद हो जाए। जैसे कि अमेरिका, कनाडा समेत अन्य देशों में हो रहा है। यहां स्वास्थ्य और शिक्षा फ्री कर दी गई और आयकर टैक्स को इससे सीधे जोड़ दिया गया। जीएसटी को लागू पांच दरों में लागू कर दिया गया। कुछ ट्रेड तो ऐसे हैं जिनमें सभी टैक्स दरें लगा दी गईं। इन व्यवस्थाओं को बजट में बदलने की जरूरत है। इससे कारोबार बढ़ेगा और राजस्व भी।

सुहैल हैदर अल्वी, फर्नीचर कारोबारी

जीएसटी रिटर्न में देरी हो जाए तो ब्याज 15-18 फीसदी जुर्माना भरना होगा। लेकिन वहीं सरकार की बैंकों में पैसा फिक्स डिपाजिट करो तो ब्याज मात्र छह फीसदी। आखिर कारोबारियों को सरकार क्या दूसरे देश का समझती है जो उनसे इस तरह से जुर्माना वसूली की जा रही है। इस व्यवस्था को बदलना चाहिए। सरकार का पांच ट्रिलियन डालर वाली आर्थिक शक्ति बनने का सपना तभी पूरा होगा जब कारोबार बढ़ेगा। ऐसे में बजट में यह बदलाव होना चाहिए।

रामबाबू रस्तोगी, कारोबारी

आयकर की छूट को दस लाख रुपये कर देनी चाहिए। क्योंकि जब तक लोगों की जेब में कुछ पैसा बचेगा ही नहीं तो वह खर्च क्या करेगा, और जब तक कोई खर्च नहीं करेगा तो न बाजार की हालत सुधरेगी और न कारोबार चल पाएगा। पिछली बार बजट में सरकार ने पांच लाख आयकर छूट सीमा तय की लेकिन इसमें अन्य छूट को भी शामिल कर लिया। इस व्यवस्था से लोग केवल दांव-पेंच के चक्कर में फंसकर अपना पैसा बचाने में ही जुटे रहे।

अतुल शुक्ला, कारोबारी

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