आकाशवाणी स्थापना समारोह
सुरों से सजी स्थापना दिवस की शाम
-आकाशवाणी लखनऊ के 80वें स्थापना दिवस समारोह में हुई विचार गोष्ठी, सजी सुरों की महफिल
लखनऊ। वरिष्ठ संवाददाता
आकाशवाणी लखनऊ का 80वां स्थापना दिवस समारोह सोमवार को मनाया गया। इस अवसर पर आकाशवाणी केन्द्र पर एक विचार गोष्ठी और उसके बाद 'सुर संध्या' कार्यक्रम का आयोजन किया गया, जिसमें पहले गजलों की खूबसूरत महफिल सजी, उसके बाद लोकगीतों की बयार बही।
समारोह की शुरुआत लखनऊ के प्रख्यात शहनाई वादक साहबेआलम की शहनाई की धुनों से हुई। उसके बाद विचार गोष्ठी हुई, जिसका विषय था, 'आकाशवाणी: वर्तमान चुनौतियां'। गोष्ठी से पूर्व, केन्द्राध्यक्ष पृथ्वीराज चौहान ने आकाशवाणी के 8 दशकों की उपलब्धियां बताईं, साथ ही यहां के वर्तमान कार्यक्रमों पर प्रकाश डाला। गोष्ठी की वक्ता के रूप में आईं लखनऊ विवि की प्रो. श्रुति श्रीवास्तव ने कहा कि हिन्दी भाषा के प्रचार-प्रसार व उसकी गरिमा बनाए रखने में आकाशवाणी ने रचनात्मक व महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। दूरदर्शन के पूर्व महानिदेशक डॉ. सतीश ग्रोवर ने आकाशवाणी के अनुभव साझा किए और यह भी कहा कि आकाशवाणी को समय के साथ चलते हुए खुद को अपडेट करने की जरूरत है।
गोष्ठी के बाद आयोजित सुर-संध्या की शुरुआत आकाशवाणी आगरा से आए कलाकार सुधीर नारायण ने की और कई गजलें पेश कीं। उनकी पहली गजल थी आदा हस्र की लिखी हुई 'तू ऐ मैकदा न जाते तो कुछ और बात होती...'। दूसरी गजल उन्होंने ताहिर फराज की सुनाई, जो कुछ यूं थी कि, 'मिला उससे गुजारा न हुआ, जो हमारा था हमारा न हुआ...'। उनकी आखिरी पेशकश थी अमीर खुसरो का सूफियाना कलाम, 'छाप तिलक सब छीनी रे...'। सांस्कृतिक कार्यक्रमों की श्रृंखला में आकाशवाणी लखनऊ की लोक गायिका रंजना अग्रहरि ने 'सैंया निकसि गए, मैं ना लड़ी थी...', 'तोरी लट चुएला...', 'चम-चम चमके झूमर...', 'होने न पाई सखी संझा, बलम रसिया बन के आए गए...', 'सैंया मोरे गइले...' जैसे कई बेहतरीन अवधी और भोजपुरी लोकगीत सुनाए। सांस्कृतिक प्रस्तुतियों में संगत के लिए तबले पर ठाकुर प्रसाद सिंह व सुभाष चंद्र शर्मा, गिटार पर राकेश आर्या, कीबोर्ड पर रिंकू कुमार, ऑक्टोपैड पर अतुल श्रीवास्तव, बांसुरी पर मोहनलाल कुंवर व हारमोनियम पर सतीश चंद्र मौजूद थे। कार्यक्रम का संचालन शिवा राकेश ने किया।