Aathwaphera samwad : आठवें फेरे से गढ़ सकते हैं एक नई इबारत 

सात वचन सात फेरे...जब हाथों में हाथ डाल फेरे लेते हैं और हर सुख-दु:ख में साथ निभाने का वचन लेते हैं तो फिर साल दो साल बाद महिलाओं के पल्लू में क्यों केवल जिम्मेदारी बांध दी जाती है? उसके हिस्से के...

Aathwaphera samwad : आठवें फेरे से गढ़ सकते हैं एक नई इबारत 
Deep Pandey निज संवाददाता, लखनऊTue, 15 Oct 2019 06:03 AM
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सात वचन सात फेरे...जब हाथों में हाथ डाल फेरे लेते हैं और हर सुख-दु:ख में साथ निभाने का वचन लेते हैं तो फिर साल दो साल बाद महिलाओं के पल्लू में क्यों केवल जिम्मेदारी बांध दी जाती है? उसके हिस्से के अधिकारों की बात क्यों समाज नहीं करता। महिलाओं को असल में आजादी और हक तब मिलेगा जब जिम्मेदारी संग महिलाओं को उनके अधिकारों का बोध कराया जाए। दुख संग सुख, प्रश्न पूछने का हक मिले, किचन की जिम्मेदारी संग ऑफिस की जिम्मेदारी, घर की बॉस संग बाहर नेतृत्व करने के लिए महिलाओं के कदमों को परवाज दी जाएगी।

पुरानी रीतियों को बदलते परिवेश संग जब बदला जाएगा तब सात फेरे संग महिलाओं के हित में लिया गया आठवां वचन समाज में एक नई आशा की किरण बन खिलेगा। हिन्दुस्तान की ओर से शुरू की गई नई पहल आठवां फेरा संवाद कार्यक्रम का आयोजन गोमतीनगर स्थित हिन्दुस्तान परिसर में किया गया। विभिन्न क्षेत्रों संग समाजसेविका के रूप में काम कर रही महिलाओं संग पुरूषों ने अपने विचारों को साझा किया। उन्होंने कहा कि महिलाओं की तरक्की के लिए एक नए नजरिए की जरूरत है, जो इस मुहिम से साकार होगा। 

समस्याएं

  • महिलाओं व बेटियों के खिलाफ हो रही हिंसा
  • बेटा-बेटी भेदभाव
  • बालविवाह
  • पूर्ण रूप से अधिकारों का न मिलना
  • आंशिक स्वतंत्रता
  • विचारों का भेदभाव
  • रूढ़िवादी सोच
  • ग्रामीण महिलाओं में शिक्षा का अभाव
  • दहेज प्रथा

सुझाव

  • सातों वचनों को समय संग बदलने की जरूरत है।
  • महिलाओं को बराबरी का हक मिले इसके लिए पतियों को आगे आना होगा।
  • विवाह के सात बंधन तो सही है पर असल जिन्दगी में महिलाओं को उनकी उड़ान उनके अनुसार तय करने दें।
  • बचपन से बेटे और बेटी को एक जैसी परवरिश दें।
  • महिलाओं को केवल जवाब देना ही नहीं प्रश्न पूछने का अवसर दें।
  • जिम्मेदारियों संग कानूनी अधिकारों का बोध कराएं।
  • रूढ़िवादी सोच को बदलने के लिए समाज के सभी वर्गों को आगे आना होगा
  • आठवें वचन को धर्म से न जोड़कर महिलाओं के उत्थान के लिए सब धर्मों को आगे आना होगा।
  • ग्रामीण महिलाओं को शिक्षा की मुख्यधारा से जोड़े।
  • आथिर्क रूप से महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए उनको प्रेरित करें।
  • लिंग भेदभाव न करके अच्छी परवरिश दें।

समाज से कुरीतियों को दूर करने के लिए लें आठवें फेरे का संकल्पआठवां फेरा संवाद कार्यक्रम में आई महिलाओं ने एक स्वर में कहा कि महिलाओं के अधिकारों को धर्म और जात-पात की बेड़ियों से ऊपर रख समाज को सोचना होगा। यह आठवां वचन केवल किसी एक वर्ग की महिलाओं के लिए नहीं ब्लकि उन तमाम महिलाओं के लिए हितकारी होगा जो आज कहीं न कहीं अपने अधिकारों की लड़ाई लड़ रही हैं और केवल दुखों को सह रही हैं। समाज की सोच और आज मौजूद विसंगतियों को दूर करने के लिए इस आठवें फेरे को सकंल्प के तौर पर लेकर एक नई इबारत गढ़ने का समय आ चुका है। 

मेरे लिए आज के समय में आठवां फेरा बराबरी का अधिकार महिलाओं को मिले ये है। केवल महिलाओं को दायित्वों से न बांधा जाए उनको उनके अधिकारों का बोध कराया जाए।
अर्चना सिंह, इंचार्ज, आशा ज्योति केंद्र

सभी धर्मो के लिए हो आठवां फेरा। हजारों साल पुरानी रीतियों को बलने कि जरूरत है। महिलाओं को मौखिक रूप से नहीं बल्कि लिखित तौर पर उनके अधिकारों और स्वतंत्रता के बारे में उल्लेख हो। मेरा मानना है कि वास्तविक बराबरी अवसरों में मिले जिसके परिणाम दिखे। 
रेनू मिश्रा, वकील व एक्जिक्यूटिव निदेशक आली

शिक्षा में बराबर अवसर मिलें। महिला पुरूष आपसी सामंजस्य से अपने हित में आठवें फेरे का निर्णय करें जिससे उनके बच्चों को एक अच्छी परवरिश मिल सके और वो आगे जाकर समाज को एक नई दिशा दे सकें।
वर्षा वर्मा, चेयरपर्सन, एक कोशिश ऐसी भी

मेरा मानना है कि आठवां फेरा महिलाओं को आर्थिक तौर पर मजबूत बनाने का हो जिससे जिंदगी के सफर में पत्नी और पति एक दूसरे पर भार न हों, वो एक-दूसरे का सहारा बनें। 
सीमा मोदी, समाजसेविका

सातों वचनों को पूरी शिद्दत से निभाएं। महिलाओं की इच्छाओं को दबाएं नहीं उनको आगे बढ़ाने में उनका साथ दें।
शबीना सिद्दीकी, समाजसेविका 

आठवां फेरा यह हो कि रूढ़िवादी सोच को बदला जाए। महिलाओं को अधिकारों का बोध कराया जाए।
वर्षा श्रीवास्तव, अध्यक्ष, इंपावर स्किल फाउंडेशन

लिंग भेदभाव नहीं करेंगे। किसी मासूम को यूहीं सड़क किनारे और थैले में नहीं फेकेंगे। नन्ही जिन्दगी को शिक्षा, सेहत और अच्छी परवरिश देंगे।
सुमन सिंह रावत, सामाजिक कार्यकर्ता

महिलाओं को प्रश्न पूछना और खुद के हित में आवाज बुलंद करना सिखाए। देह की परिधी से परे होकर बेटियों को बेटों जैसी तालिम दें। 
आशीष मौर्या, सामाजिक कार्यकर्ता

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