Hindi Newsउत्तर प्रदेश न्यूज़लखनऊImportance of water of Chandra Sarovar of Lucknow in Pind Daan of Gaya

पितृपक्ष विशेष- लखनऊ के चन्द्र सरोवर के जल का गया के पिंडदान में महत्व

लखनऊ के मोहनलालगंज मे एक ऐसा ताल है जिसके बारे में मान्यता है कि पिंडदान केलिए गया से पहले यहां स्नान करना चाहिए

Gyan Prakash हिन्दुस्तान, मोहनलालगंज। विजय जायसवालSat, 21 Sep 2024 05:52 AM
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मोहनलालगंज में अहिनवार धाम का उल्लेख धर्म ग्रन्थों में भी है। यहां के चन्द्र सरोवर का महत्व इतना है कि दूसरे जिलों से लोग आते हैं। इस धाम में नरक चर्तुदशी व कार्तिक पूर्णिमा को मेला लगता है। यहीं पर सर्प योनि से राजा नहुष का उद्धार हुआ था।

यहां आने वाले लोगों की इसी वजह से चन्द्र सरोवर से आस्था जुड़ी हुई है। राजा नहुष की तरह उद्धार पाने केलिए आज भी हजारों श्रद्धालु इस चन्द्र सरोवर में स्नान करने के लिए जुटते हैं। कहते है पितृरो का श्राद्ध करने गया जाने वाले लोगों को सबसे पहले इसी सरोवर में स्नान करना पड़ता है। रायबरेली हाइवे के निगोहां कस्बे से पांच किलोमीटर की दूरी पर छोटा सा गांव अहिनवार है। यहां राजा नहुष का मंदिर होने के साथ चन्द्र सरोवर बना है। मान्यता है कि इसी सरोवर पर राजा नहुष का सर्पयोनि से उद्धार हुआ था। इसलिए तब से इस गांव को अहिनवार के नाम से जाना जाता है। मंदिर की देखरेख करने वाले पुजारी लखनानन्द सरस्वती महाराज बताते है कि इस धाम पर प्रत्येक साल नरक चर्तुदशी व कार्तिक पूर्णिमा को विशाल मेला लगता है। इसमें आस-पास के कई जिलो के हजारों लोग इस धाम में आते है। मंदिर के समीप बने चन्द्र सरोवर में लोग स्नान कर मंदिर में सर्प रुप में बने राजा नहुष के दर्शन करते है।

मंदिर से जुड़ी कहानी

ग्रामीणों ने बताया कि राजा नहुष प्रसिद्ध चंद्रवंशी राजा पुरुवा के पौत्र थे। वृत्तासुर का वध करने के कारण इन्द्र को ब्रह्महत्या का दोष लगा था। इसलिए इन्द्र को स्वर्ग छोड़ना पड़ा था। देवताओ ने पृथ्वी के राजा नहुष को इन्द्र के पद पर आसीन कर दिया था, लेकिन ऋषियों के श्राप से वह सर्प बन गए थे। जब पांडव अज्ञात वास के दौरान प्यास लगने पर इस सरोवर पर पहुंचे तो सर्प बने राजा नहुष ने पहचान के लिए पांडवों से प्रश्न पूछे जिनका उत्तर सिर्फ युधिष्ठिर ने दिया था। बताते है कि जानकारी होने पर युधिष्ठिर ने सर्प योनि से उद्धार करने के लिए इसी जगह पर यज्ञ किया था।

पिंड दान करने गया जाने वाले लोग करते है स्नान

लोगो ने बताया कि जो लोग गया करने के लिए जाते है। वह पहला स्नान यही आकर चन्द्र सरोवर में करते है। जो लोग स्नान यहां नही कर पाते उन लोगों के लिए गया में बने तालाब में यहां का जल रखा गया है जिसमें स्नान करना पड़ता है।

एक साल तक दूध सुरक्षित रहता है

मंदिर परिसर में शिव लिंग के आकार का एक सीमेंट का बना हुआ है। इसमें गोवर्धन पूजा के दिन बर्तन में दूध रखकर बंद कर दिया जाता है। इस दूध को एक साल बाद धनतेरस के दिन खोद कर निकाला जाता है। कहते है कि दूध सुरक्षित निकलता है। इस दूध को मिलाकर खीर बनाई जाती है। जो नरक चतुर्दशी को लगने वाले मेले में प्रसाद के रुप में वितरित की जाती है।

आज भी विकास से अछूता है धाम

मोहनलालगंज बार एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष श्रवण यादव ने बताया कि तीर्थ की महत्ता को देखते हुए पर्यटन विभाग से लेकर कई बार प्रदेश की सरकारों को इस धाम के विकास के लिए लिखा गया। ग्रामीणों के प्रयास के बाद भी इस धाम का विकास आज तक नही कराया गया। उन्होने मांग करते हुए कहा कि जिस चंद्र सरोवर में हजारो भक्त आस्था की डुबकी लगाते है कम से कम उसका जीर्णोधार सरकार को करवा चाहिए। ग्रामीणों ने कहा कि प्रदेश सरकार ने मोहनलालगंज के अतरौली में श्रीलाल शुक्ल की जन्म स्थली व कनकहा में ओपन जिम के रूप में तालाब का सौंदर्यीकरण कराया। उसी तरह इस चंद्र सरोवर का भी सौंदर्यीकरण किया जाना चाहिए। कुछ लोग इस तालाब पर अतिक्रमण कर रखा है। तालाब में चारो तरफ गंदगी व्याप्त है।

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