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बाहरी नहीं, भीतरी घुसपैठ से जूझ रहा दुधवा

हाई कोर्ट की टिप्पणी से सकते में दुधवा हाई कोर्ट की टिप्पणी से सकते में दुधवा प्रशासन -हाई कोर्ट ने दुधवा में बीएसएफ लगाने की कह दी बात -दुधवा में घुसपैठ का मामला अदालत तक पहुंचा फोटो-22 व 23--दुधवा...

बाहरी नहीं, भीतरी घुसपैठ से जूझ रहा दुधवा
हिन्दुस्तान टीम,लखीमपुरखीरीWed, 21 Nov 2018 01:21 AM
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दुधवा नेशनल पार्क में अतिक्रमण को लेकर हाईकोर्ट की टिप्पणी से अफसर सकते में हैं। एक दिन पहले अदालत ने पूछा था कि क्यों न दुधवा में बीएसएफ लगा दी जाए। अदालत का यह सख्त रुख दुधवा में घुसपैठ को लेकर है। पर दुधवा घुसपैठ से ज्यादा आंतरिक दबाव झेल रहा है। बाघों की सल्तनत में इंसानी घुसपैठ टेंशन में डाले है।

दुधवा टाइगर रिजर्व के जंगलों के करीब में गांव बसे हैं। इन गांवों के लोगों की जिंदगी दुधवा पर ही टिकी है। शायद यही वजह है कि गांव वालों को जंगल में दाखिल होने से रोका भी नहीं जा सकता। टाइगर रिजर्व के कोर जोन में बसा है सूरमा गांव। न यहां आजतक बिजली पहुंची है और न गांव पक्की सड़क से जुड़ा है। इन्हीं रास्तों पर बाघ व अन्य जानवर भी गुजरते हैं। पर इंसानी दखललन्दाजी बाघों पर अब भारी पड़ने लगी। बाघों की रिहायश परेशान होने लगी है। पिछले दिनों टाइगर रिजर्व के कोर जोन में बसे चल्तुआ गांव में बाघ की जान ले ली गई। सूरमा के आलावा दर्जनभर गांव दुधवा टाइगर रिजर्व के किशनपुर और कर्तनियाघाट सेन्चुरी में बसे हैं और अब जंगल विभाग बाघों की रिहायश में हो रहे खलल को लेकर संजीदा हो गया है। इसलिए अब इन गांवों को टाइगर रिजर्व से बाहर करने और कोर जोन को नो डिस्टर्बेंस जोन बनाने पर काम शुरू हुआ है।बाक्सकार्ययोजना बनाने में जुटा विभाग-गांवों को खाली कराने के लिए एनटीसीए और यूपी का वाइल्ड लाइफ विभाग ठोस कार्ययोजना तैयार कर रहा है। जल्द ही बाघों की सल्तनत अब इंसान के दखलअंदाजी से खाली होगी। इसके लिए गांव वालों में प्रति वयस्क सदस्य दस लाख रुपए देने की योजना है। बाक्स12 गांव हैं जंगल की गोद में-जंगल की गोद में बसे करीब 12 गांव किशनपुर दुधवा टाइगर रिजर्व और कतर्नियाघाट में ऐसे चिन्हित हुए हैं जो बाघों की रिहायश के लिए चुनौती हैं। बाघों की निर्बाध प्रजनन और वृद्धि के लिए उन्हें एकांत देना बहुत जरूरी है। गांव वालों को समझा बुझाकर उन्हें जंगलों से बाहर बसाया जाएगा। इसमें दुधवा में थारू गांव, सूरमा, गोलबोझी, चलतुआ,महराजनगर, टांडा, किशनपुर, ग्रंट नम्बर एक और कांप किशनपुर सेन्चुरी में, कर्तनियाघाट वन्यजीव विहार में भवानीपुर, टेढिया, ढकिया और भरतापुर शामिल हैं।

गांव छोड़ने को तैयार नहीं लोग: वन विभाग गांव खाली कराने की प्लानिंग में है, लेकिन गांव वालों का मूड कुछ और है। गांव वालों कहना है कि गांव छोड़ने का मतलब है जैसे किसी को नोंच के उजाड़ देना। ऐसे में वन विभाग की शुरुआती कार्ययोजना को पलीता लगता नजर आ रहा है। हालत यह है कि इन गांवों में पैर रखने से पहले वन विभाग के अफसर दस बार सोचते हैं।बाक्सयह सच है कि कई गांव कोर जोन में बसे हैं। इन हालातों में इंसान और वन्यजीवों दोनों पर खतरा है। मामला मुख्यमंत्री तक पहुंच चुका है। हम लोग कार्ययोजना पर काम कर रहे हैं। जल्द ही गांव वालों के विस्थापन का हल निकाला जाएगा।रमेश कुमार पांडे, फील्ड डायरेक्टर दुधवा टाइगर रिजर्व

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