लखीमपुर खीरी।
बाघ को लेकर चलने वाले रेस्क्यू अभियान वन विभाग पर ही भारी पड़ रहे हैं। तीन सालों में चले अभियान में वन विभाग को करोड़ों रुपए खर्च करने के बाद भी अभियान के अनुसार सफलता नहीं मिली है। आलम यह है कि बाघों की तलाश में हाथियों से चलने वाली रेस्क्यू ऑपरेशन एक भी सफल नहीं हुआ है। वहीं दूसरी तरफ वन विभाग को इस ऑपरेशन में हाथियों को लगाने में लाखों रुपए खर्च करने पड़े हैं।
मौजूदा समय में दुधवा टाइगर रिजर्व के किशनपुर सेंचुरी में एक बाघ को रेस्क्यू करने के लिए 17 से 25 दिसंबर तक लगातार हाथियों से कांबिंग की गई। इसके बाद भी बाघ का रेस्क्यू ऑपरेशन पूरा नहीं हो सका है। इसी तरह से तिकुनिया वन क्षेत्र में भी करीब 1 माह तक हाथियों को रेस्क्यू ऑपरेशन करा कर अभियान चलाया गया। वहीं दक्षिण खीरी वन प्रभाग के मोहम्मदी रेंज के महेशपुर राती में बाघ का रेस्क्यू करने के लिए करीब डेढ़ माह दुधवा टाइगर रिजर्व की गंगाकली को यहां पर रखा गया था। इसके बाद भी बाघ को रेस्क्यू करने में सफलता नहीं मिल सकी थी। तिकोनिया में बाघ रेस्क्यू ऑपरेशन के लिए कर्तनिया घाट, पीलीभीत से हाथियों को लाया गया। अब तक इस अभियान में भी वन विभाग को किसी तरह की सफलता नहीं मिल सकी थी।
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रेस्क्यू अभियान में इस तरह से होता है खर्च
बाघ को लेकर चलाए जाने वाले रेस्क्यू अभियान के लिए अलग से बजट नहीं दिया जाता है। रेस्क्यू ऑपरेशन सफल होने के बाद ही बजट मिलता है। एक रेस्क्यू ऑपरेशन के 4 दिन चलने में करीब 8000 का खर्च वन विभाग को होता है। वहीं एक हाथी पर रोजाना करीब 1000 से अधिक खर्च किया जाता है। महेशपुर इलाके में चले अभियान में कई डेढ़ माह तक हाथी को वहीं पर रोका गया था। इस दौरान करीब 45000 रुपये का खर्च करना पड़ा था।
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एक दिन की हाथी की डाइट
5 किलो आटे की रोटी, 2 क्विंटल गन्ना, गुड़, चना और हरी पत्तियों का चारा दिया जाता है।
बाघ को लेकर चलने वाले रेस्क्यू अभियान के लिए अलग से बजट नहीं मिलता है। दुधवा नेशनल पार्क से आने वाले हाथियों के लिए हाथी को खिलाने के लिए तय बजट और अलग से व्यवस्था की जाती है।
डॉ अनिल पटेल, डीडी बफर जोन