नाबालिग दुष्कर्म पीड़िता के बच्चे का कराएं डीएनए परीक्षण, दें सामाजिक सुरक्षा
Kushinagar News - कुशीनगर में एक नाबालिग लड़की से दुष्कर्म के मामले में पुलिस की लापरवाही उजागर हुई है। पीड़िता गर्भवती थी और अब बच्चे की मां बन चुकी है, लेकिन पुलिस ने बच्चे का डीएनए परीक्षण नहीं कराया। अदालत ने एडीजी...
कुशीनगर, वरिष्ठ संवाददाता नाबालिग लड़की से दुष्कर्म के मुकदमे के ट्रायल के दौरान पुलिस की लापरवाही सामने आयी है। तरया सुजान थाने से जुड़े इस मुकदमे में नाबालिग लड़की से जब दुष्कर्म का केस दर्ज कराया गया तब लड़की गर्भवती थी। अब वह बच्चे की मां बन चुकी है मगर पुलिस ने बच्चे का डीएनए परीक्षण नहीं कराया है। विशेष न्यायाधीश पाक्सो एक्ट दिनेश कुमार की अदालत ने एडीजी गोरखपुर को निर्देश दिया है कि पुलिस बच्चे का डीएनए परीक्षण कराए। डीएम व एसपी कुशीनगर को आदेश दिया है कि यदि शासन के द्वारा अविवाहित अल्पव्यस्क पीड़िता व उससे उत्पन्न बालक की सामाजिक सुरक्षा के लिए कोई योजना या अनुदान हों तो अपने स्तर से हस्तक्षेप करते हुए पीड़िता को उपलब्ध कराया जाये।
तरयासुजान थाने में इससे सबंधित मुकदमा वर्ष 2024 में दर्ज हुआ था। विवेचक उपनिरीक्षक श्यामलाल निषाद ने अभियुक्त व्यास सिंह के खिलाफ दुष्कर्म व पॉक्सो एक्ट आदि के अपराध में और सुबाष सिंह, प्रभा देवी व सुमन सिंह के खिलाफ गंभीर चोट पहुंचाने, जलाकर मारने की धमकी आदि देने के अपराध में चार्जशीट दाखिल की गयी है। विशेष न्यायाधीश पाक्सो एक्ट दिनेश कुमार की अदालत में 17 अप्रैल 2025 से विचारण प्रारंभ हुआ। विचारण के दौरान बीते 3 व 8 सितंबर को पीड़िता का साक्ष्य अंकित कराया गया। पीड़िता ने अपने साक्ष्य में आरोपित अपराधीगण के विरूद्ध कोई साक्ष्य प्रस्तुत नहीं किया है। अदालत ने पीड़िता के परीक्षण में पाया कि वह अविवाहित व अल्पव्यस्क है। उसके गर्भ से बालक पैदा हुआ है। जिसे वह अपने पास रखकर पालन पोषण कर रही है। न्यायालय ने उससे पूछा कि यह बालक किसके सम्पर्क से पैदा हुआ है तो पीड़िता ने कोई स्पष्ट उत्तर नहीं दिया। डीएनए परीक्षण कराने से भी इन्कार किया। जबकि चार्जशीट में विवेचक ने जिला अस्पताल पडरौना का साक्ष्य अंकित किया है, जिससे स्पष्ट है कि विवेचक को इस तथ्य की जानकारी थी कि डॉक्टर का साक्ष्य अंकित करते समय पीड़िता 26 सप्ताह की गर्भवती थी। विवेचक ने इस पत्रावली में कोई डीएनए परीक्षण नहीं कराया। प्रकरण में वैज्ञानिक रिपोर्ट का अभाव है। विवेचक का कर्तव्य मात्र अभियोग में आरोपपत्र प्रेषित करना नहीं होता है। बल्कि यह कर्तव्य होता है कि वह अभियोजन के आरोप के प्रत्येक बिन्दुओं तक न्याय की मंशा के अनुरूप साक्ष्य संकलित करें। न्यायालय के दृष्टिकोण में इस प्रकरण में सत्य तक पहुंचने के लिए पीड़िता से उत्पन्न बालक व अभियुक्त का डीएनए परीक्षण कराना अत्यन्त आवश्यक है। अन्यथा पॉक्सो अधिनियम में शासन की मंशा व उद्देश्य दोनों विफल हो जायेंगे। अदालत ने एडीजी गोरखपुर से कहा है कि सम्बन्धित पुलिस को अपने स्तर से आदेशित करें कि इस प्रकरण में पीड़िता से उत्पन्न बालक व अभियुक्त व्यास सिंह का प्राथमिकता के आधार पर डीएनए परीक्षण कराया जाये। कृत कार्यवाही से न्यायालय को अवगत कराएं। पीडिता व उससे उत्पन्न बालक के सामाजिक सुरक्षा का दायित्व भी जनपद कुशीनगर की पुलिस को सौंपी जाये। अदालत ने डीएम कुशीनगर को निर्देश दिया है कि यदि शासन के द्वारा अविवाहित अल्पव्यस्क पीड़िता व उससे उत्पन्न बालक की सामाजिक सुरक्षा के लिए कोई योजना या अनुदान हों तो अपने स्तर से हस्तक्षेप करते हुए पीड़िता को उपलब्ध कराया जाये। इस आदेश की प्रति एसपी कुशीनगर व डीएम कुशीनगर को भी भेजी गयी है। प्रकरण में अदालत ने की गंभीर टिप्पणी अदालत ने टिप्पणी की है कि पीड़िता की गरीबी की परिस्थिति इस लोकतांत्रिक देश में इतना असहाय न हो जाये कि वह अविवाहिता रहते हुए अपने गर्भ से उत्पन्न बालक का अकेले जीवन यापन करे। आज पीड़िता अल्पव्यस्क है। लेकिन कल जब बड़ी होगी तो उसके कोख से उत्पन्न बालक पर सामाजिक टीका टिप्पणी से इन्कार नहीं किया जा सकता। विचारण के दौरान अभियुक्त बिना वैज्ञानिक रिपोर्ट प्राप्त हुए यदि दोषमुक्त हो जाये, इससे भी पीड़िता को न्याय नहीं दिया जा सकता है।
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