बोले कुशीनगर: अभिभावकों पर बढ़ता जा रहा बोझ, मनमानी फीस पर अंकुश लगे
Kushinagar News - कुशीनगर में शिक्षा के व्यवसायीकरण के कारण अभिभावकों पर आर्थिक बोझ बढ़ रहा है। निजी स्कूल मनमानी फीस, महंगी किताबें और अन्य शुल्क के माध्यम से लाभ कमा रहे हैं। सरकारी नियमों का सही क्रियान्वयन न होने...
Kushinagar News: देश में शिक्षा का व्यवसायीकरण तेजी से बढ़ रहा है। इससे अभिभावकों पर आर्थिक बोझ बढ़ता जा रहा है। अभिभावकों का मानना है कि निजी स्कूल और शैक्षणिक संस्थान शिक्षा को सेवा की बजाय मुनाफे का जरिया बना रहे हैं। मनमानी फीस, महंगी किताबें, अनिवार्य ड्रेस कोड और अतिरिक्त शुल्क के कारण आम परिवारों के लिए गुणवत्तापूर्ण शिक्षा का सपना अब महंगा होता जा रहा है। सरकार की ओर से नियम तो बनाए गए हैं, लेकिन उनका सही ढंग से क्रियान्वयन नहीं हो रहा है। यही वजह है कि निजी स्कूलों की मनमानी बढ़ गई है। 'हिन्दुस्तान' से बातचीत के दौरान निजी स्कूलों में बच्चों को पढ़ाने वाले अभिभावकों ने अपनी समस्याएं-शिकायतें साझा कीं।
कुशीनगर जिले में 1884 निजी स्कूल संचालित हो रहे हैं। इसमें 284 माध्यमिक और 1600 बेसिक विद्यालय शामिल हैं। इन स्कूलों में तकरीबन पांच लाख से अधिक छात्र शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं। हाल के वर्षों में निजी स्कूलों की फीस में भारी वृद्धि देखने को मिल रही है। कई प्रतिष्ठित स्कूल हर साल ट्यूशन फीस के अलावा अन्य चार्ज जैसे विकास शुल्क, कम्प्यूटर शुल्क, स्मार्ट क्लास शुल्क, खेल शुल्क और वार्षिक चार्ज के नाम पर अभिभावकों से अतिरिक्त रुपये ले रहे हैं। पडरौना शहर के आवास विकास कॉलोनी में 'हिन्दुस्तान' से बातचीत करते हुए अभिभावकों ने कहा कि, यह सही है कि पहले और अब के शिक्षा के स्तर में बड़ा बदलाव हुआ है। साक्षरता का दर भी साल दर साल बढ़ता जा रहा है। लेकिन, निजी स्कूलों की मनमानी नहीं रुक रही है। इस पर अंकुश लगाने की जरूरत है।
अभिभावकों का कहना है कि उनकी आय का बड़ा हिस्सा बच्चों की महंगी फीस, कॉपी-किताब और अन्य शुल्क देने में खर्च हो रहा है। स्कूल से ही कॉपी-किताब बच्चों को महंगे दर पर चुनिंदा दुकानों से उपलब्ध कराई जाती है, जो नियमविरुद्ध है। जो किताब स्कूल द्वारा खास दुकान से ऊंचे दाम पर मुहैया कराई जाती है, वही दूसरी दुकानों पर अपेक्षाकृत सस्ती होती है, लेकिन निजी स्कूल संचालकों के दबाव के कारण ही अभिभावक मजबूर होते हैं। यही नहीं, कुछ स्कूलों द्वारा हर साल यूनिफॉर्म भी बदल दी जाती है। इसका सीधा असर अभिभावकों की जेब पर पड़ता है। अभिभावकों का कहना है कि सरकार द्वारा शिक्षा के व्यवसायीकरण को रोकने के लिए कानून तो बनाए गए हैं, लेकिन इनका सही ढंग से क्रियान्वयन नहीं हो रहा है। कई राज्यों में निजी स्कूलों की फीस नियंत्रण के लिए समितियां गठित की गई हैं, लेकिन कुशीनगर जिले में समितियां गठित हैं या नहीं, इसकी किसी को जानकारी नहीं है। सरकारी स्कूलों में शिक्षा की गुणवत्ता में गिरावट होने के कारण अभिभावक मजबूरी में बच्चों को निजी स्कूलों में अपने बच्चों का दाखिला कराते हैं और इसी मजबूरी का निजी स्कूल फायदा उठाते हैं। अभिभावकों का कहना है कि शिक्षा एक मौलिक अधिकार है और इसे व्यवसाय नहीं बनने देना चाहिए। वे चाहते हैं कि सरकार निजी स्कूलों पर सख्त निगरानी रखे और सभी के लिए शिक्षा सुलभ बनाए। सरकारी स्कूलों की गुणवत्ता बढ़ाए और निजी स्कूलों पर मनमानी फीस वसूली के खिलाफ ठोस कदम उठाया जाए।
शिक्षक-अभिभावक बैठक भी सिर्फ औपचारिकता :
अभिभावकों का कहना है कि स्कूलों द्वारा प्रत्येक महीने शिक्षक-अभिभावक बैठक का आयोजन किया जाता है। इसमें सिर्फ औपचारिकताएं पूरी की जाती हैं। बैठक में यदि किसी अभिभावक ने फीस, महंगी कॉपी-किताब आदि समस्याओं का मुद्दा उठाया तो स्कूल प्रबंधन द्वारा अगले दिन से ही बच्चे की शिकायतें करनी शुरू कर दी जाती हैं। यहां तक कि उन्हें डांट-फटकार भी लगाई जाती है। अभिभावकों का कहना है कि स्कूलों द्वारा बकाया फीस की वसूली के लिए हर माह पीटीएम का आयोजन किया जाता है। इसमें एडवांस फीस देने का दबाव बनाया जाता है।
कान्वेंट स्कूलों की तर्ज पर संचालित हों सरकारी स्कूल :
अभिभावकों ने कहा कि मध्यमवर्गीय परिवारों के ज्यादातर बच्चे कान्वेंट स्कूलों में ही पढ़ते हैं। अधिक फीस होने के कारण अभिभावकों को परेशानियां भी उठानी पड़ती हैं। अगर कान्वेंट स्कूलों की तर्ज पर सरकारी स्कूलों का संचालन किया जाए तो लोगों को काफी लाभ होगा। कम खर्चे में वे अपने बच्चों को पढ़ा-लिखाकर किसी लायक बना सकते हैं। कुछ सरकारी स्कूलों में पिछले पांच वर्षों के भीतर बदलाव भी हुआ है। स्मार्ट क्लासेज भी चल रही हैं। अन्य स्कूलों की तरफ भी सरकार को ध्यान देना चाहिए।
आरटीई को लेकर अभिभावकों में जागरूकता की कमी, वंचित हो रहे नौनिहाल
पडरौना। शिक्षा हर बच्चे का मौलिक अधिकार है। शिक्षा का अधिकार (आरटीई) अधिनियम 2009 के तहत छह से 14 वर्ष की आयु के सभी बच्चों को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा देने का प्रावधान है। लेकिन जागरूकता की कमी के कारण कुशीनगर जिले में ज्यादातर अभिभावकों को इसकी जानकारी नहीं हैं। इससे नौनिहाल अधिकार से वंचित हो रहे हैं।
ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले गरीब और वंचित परिवारों को आरटीई अधिनियम के तहत मिलने वाली सुविधाओं की जानकारी ही नहीं है। गरीब मजदूर परिवार, आदिवासी समुदाय और झुग्गी-झोपड़ियों में रहने वाले लोग यह नहीं जानते कि उनके बच्चों के लिए निजी स्कूलों में 25 फीसदी सीटें आरक्षित होती हैं, जहां वे मुफ्त में पढ़ाई कर सकते हैं। पडरौना की बिंदु प्रजापति का कहना है कि उन्हें इसके बारे में जानकारी नहीं है। इसकी जानकारी होती तो वह भी अच्छे स्कूल में बेटी का दाखिला कराकर पढ़ाई करा सकती थी। इसी तरह सूर्यप्रकाश शर्मा, मोहित श्रीवास्तव और संजय यादव भी आरटीई से अनजान हैं। उनका कहना है कि हर परिवार तक इसकी सही जानकारी पहुंचनी चाहिए, ताकि शिक्षा का उजाला हर घर तक पहुंच सके।
शिकायतें :
1. निजी स्कूल हर साल ट्यूशन फीस और अन्य शुल्कों में मनमाने ढंग से वृद्धि कर रहे हैं। इसके कारण अभिभावकों पर आर्थिक बोझ बढ़ रहा है।
2. स्कूल प्रशासन महंगी किताबें और यूनिफॉर्म खरीदने के लिए अभिभावकों को बाध्य करता है, जो केवल कुछ चुनिंदा दुकानों पर ही मिलती हैं।
3. विकास शुल्क, स्मार्ट क्लास शुल्क, वार्षिक शुल्क, परीक्षा शुल्क आदि कई तरह की अतिरिक्त फीस ली जाती है, जिसका हिसाब नहीं मिलता।
4. सरकार द्वारा निजी स्कूलों की फीस नियंत्रण के लिए बनाए गए नियमों का पालन शायद ही कभी होता है, जिससे स्कूलों की मनमानी जारी रहती है।
5. सरकारी स्कूलों में शिक्षा की गुणवत्ता में गिरावट होने के कारण अभिभावक मजबूरी के चलते ही निजी स्कूलों में अपने बच्चों का दाखिला कराते हैं।
सुझाव :
1. सरकार को निजी स्कूलों की फीस वृद्धि को नियंत्रित करने के लिए सख्त नियम लागू कर अनुपालन सुनिश्चित कराना चाहिए।
2. सरकारी स्कूलों में आधुनिक सुविधाएं बढ़ाने पर जोर दिया जाए और शिक्षा का स्तर बेहतर किया जाए ताकि लोग निजी स्कूलों पर निर्भर न रहें।
3. अभिभावकों को अपने बच्चों की किताबें और यूनिफॉर्म किसी भी दुकान से खरीदने की छूट मिलनी चाहिए ताकि महंगे पैकेज की मजबूरी खत्म हो।
4. निजी स्कूलों की मनमानी रोकने के लिए एक प्रभावी शिकायत प्रणाली होनी चाहिए, जहां अभिभावक आसानी से अपनी शिकायत दर्ज करा सकें।
5. शिक्षा को लाभ कमाने का जरिया बनाने की बजाय इसे सामाजिक सेवा के रूप में देखा जाना चाहिए ताकि हर वर्ग के बच्चों को समान अवसर मिले।
यह दर्द गहरा है
शिक्षा का उद्देश्य ज्ञान और संस्कार देना है, लेकिन निजी स्कूल इसे एक व्यापार की तरह चला रहे हैं। इससे शिक्षा का मूल उद्देश्य प्रभावित हो रहा है तो आर्थिक बोझ भी बढ़ रहा है।
-सर्वेश दुबे
निजी स्कूलों में फीस बहुत ज्यादा है और हर साल बढ़ा दी जाती है। अगर फीस न भर पाएं तो छात्रों को निकालने की धमकी दी जाती है, जो गलत है। इस पर रोक लगानी होगी।
-हरिकेश राय
हर साल स्कूल फीस और अन्य खर्चे बढ़ जाते हैं। यूनिफॉर्म, किताबें और स्कूल बस का किराया भी बढ़ा दिया जाता है। इससे अभिभावकों की परेशानी और बढ़ जाती है।
-शैलेंद्र राय
सरकारी स्कूलों में संसाधनों की कमी है। इसके कारण अभिभावक अपने बच्चों का वहां नामांकन कराने से बचते हैं। कान्वेंट की तर्ज पर ही सरकारी स्कूल संचालित हों तो बात बने।
-जयराम राय
स्कूल प्रशासन महंगी किताबें और यूनिफॉर्म खरीदने के लिए अभिभावकों पर दबाव बनाता है। किताबें और यूनिफॉर्म कुछ चुनिंदा दुकानों पर ही मिलती हैं। अन्य दुकानों से महंगी होती हैं।
-सुरेश प्रताप सिंह
---
शिक्षक-अभिभावक बैठक का उद्देश्य आपसी सामंजस्य बनाए रखना है, लेकिन स्कूल प्रबंधक इसमें भी सिर्फ औपचारिकता पूरी करता है। फीस जमा करने तक की ही बैठक सीमित है।
-रामप्रताप यादव
सरकारी स्कूलों में शिक्षा की गुणवत्ता में कमी के कारण अभिभावक निजी स्कूलों का रुख करते हैं। सरकारी स्कूलों में गुणवत्ता बढ़े तो नामांकन कराने से परहेज नहीं करेंगे।
-सौरभ राय
---
विकास शुल्क, स्मार्ट क्लास शुल्क, वार्षिक शुल्क आदि कई अतिरिक्त शुल्क स्कूल द्वारा थोप दिए जाते हैं। जब अभिभावक इसका हिसाब मांगते हैं तो प्रबंधन नहीं देता है।
-राहुल जायसवाल
अभिभावकों को अपने बच्चों की किताबें और यूनिफॉर्म किसी भी दुकान से खरीदने की छूट मिलनी चाहिए। इससे महंगे पैकेज की मजबूरी भी खत्म होगी और बचत हो सकेगी।
-रामाश्रय यादव
कई सरकारी स्कूलों में व्यवस्थाएं बदली हैं। सरकार को चाहिए कि अन्य सरकारी स्कूलों में भी बेहतर व्यवस्थाएं करें ताकि अभिभावक अपने बच्चों को वहीं पढ़ा सकें।
-मोहित श्रीवास्तव
---
कई राज्यों में निजी स्कूलों की फीस नियंत्रण के लिए समितियां गठित की गई हैं। यहां समितियां हैं या नहीं, इसकी जानकारी नहीं है। समिति की सक्रियता रहती तो फीस नियंत्रित होती।
-रविकांत यादव
शिक्षा को लाभ का जरिया बनाने की बजाय सामाजिक सेवा के रूप में देखा जाना चाहिए ताकि हर वर्ग के बच्चों को समान अवसर मिले और वे भी कामयाब हों।
-संजय यादव
बोले जिम्मेदार :
कॉपी-किताब, यूनिफॉर्म को निजी स्कूल द्वारा अभिभावकों को दिए जाने की सख्त मनाही है। शासन स्तर से ही यह निर्देश है कि कोई भी निजी स्कूल विद्यालय के काउंटर से कॉपी-किताब को मुहैया नहीं कराएंगे। अगर इसके बाद भी स्कूल द्वारा कॉपी-किताब व यूनिफॉर्म आदि की बिक्री की जा रही है तो इसके बारे में जानकारी जुटाई जाएगी। जांच कर संबंधित के खिलाफ विभागीय कार्रवाई भी की जाएगी। निजी स्कूलों में अब गरीब परिवारों के बच्चे भी दाखिला करा सकते हैं। आरटीई के तहत गरीब व मध्यमवर्गीय परिवारों के बच्चों का दाखिला निजी स्कूल में हो जाएगा। कई अभिभावक अपने पाल्यों का नामांकन भी कराए हैं। आरटीई को लेकर विभाग द्वारा प्रचार-प्रसार किया जाता है। फीस वृद्धि पर रोक लगाने का मामला शासन स्तर का है। स्थानीय स्तर से इसमें कोई भी बदलाव संभव नहीं है।
-डॉ. रामजियावन मौर्य, बीएसए-कुशीनगर
लेटेस्ट Hindi News , बॉलीवुड न्यूज, बिजनेस न्यूज, टेक , ऑटो, करियर , और राशिफल, पढ़ने के लिए Live Hindustan App डाउनलोड करें।