साधु सबसे ऊंचा है, साधुता सबसे कठिन : मोरारी बापू
महेवाघाट के (रत्नावली धाम) में रामकथा के छठवें दिन संत मोरारी बापू ने जनकपुर नगर दर्शन और पुष्प वाटिका प्रसंग का विस्तार से उल्लेख किया। उन्होंने कहा कि साधु सबसे ऊंचा है और साधुता सबसे कठिन। गुरु को...
महेवाघाट के (रत्नावली धाम) में रामकथा के छठवें दिन संत मोरारी बापू ने जनकपुर नगर दर्शन और पुष्प वाटिका प्रसंग का विस्तार से उल्लेख किया। उन्होंने कहा कि साधु सबसे ऊंचा है और साधुता सबसे कठिन। गुरु को कभी त्यागना नहीं चाहिए। गुरुवार को रामकथा सुनने के लिए श्रद्धालुओं का रेला उमड़ा।
मोरारी बापू ने कथा सुनाते हुए कहा कि नारी तत्व सदैव श्रेष्ठ होती है। रत्नावली को स्त्री और तुलसी को पुरुष फ्रेम में नहीं बांधना चाहिए। पुरुष में जो शक्ति होती है वह स्त्री वाचक है। पुरुष की भक्ति, शक्ति, विद्या, क्षमा, करुणा, वीरता, धीरता आदि सब स्त्रीवाचक है। कथा का यहां होना अपने आप में सिद्ध करता है कि रत्नावली विशेष है, क्योंकि विशेष में अपना एक आकर्षण होता है। विशेष ही विशेष को खींचता है। जिसमें विशेष प्रकार की बातें होती है वो चारों ओर से आकर्षित करती है। मां रत्नावली इसी प्रकार का एक व्यक्तित्व है। जनकपुर नगर दर्शन तथा पुष्प वाटिका प्रसंग को सुनाते हुए बापू ने कहा कि साधु सबसे ऊंचा है और साधुता सबसे कठिन। साधु नाम भी नहीं है और विशेषण भी नहीं है, बल्कि वो एक स्वभाव है। भगवान से यदि कुछ मांगों तो साधु संत मांगो।
कौन छोटा, कौन बड़ा, ये कहना अपराध
बापू ने कथा सुनाते हुए श्रद्धालुओं से कहा कि श्रेष्ठ व अश्रेष्ठ करने का निर्णय करने वाले हम कौन होते हैं। कौन छोटा है और कौन बड़ा, यह कहना एक अपराध समान है। यह द्वंद यदि जगत से निकल जाए तो उसी क्षण साधुता प्रकट हो जाएगी। संदेह का बड़ा होने पर आदमी शांति से नहीं रह पाता है।
पति ही पत्नी का सच्चा शृंगार
श्रेष्ठ और निम्न की चर्चा में मातृ शरीर श्रेष्ठ है। श्रेष्ठ वो है जो श्रेष्ठ नहीं है, उसको भी अपने से ज्यादा श्रेष्ठ बना दे। रत्नावली ने यह काम किया है। रत्नावली के नकार ने तुलसीदास को राम नाम के रकार तक पहुंचा दिया। स्त्री के लिए सच्चा शृंगार उसका पति ही है, क्योंकि पति के बिना सब शृंगार सारहीन है। अच्छी नारी के लिए पति कैसा भी हो, लेकिन वो देव समान होता है।
स्नेह संबंध अमर है
बापू ने कहा कि विवेक की प्राप्ति और वर्धन साधु संग से ही होता है। बुद्ध पुरुष और परमात्मा का किसी से देह संबंध नहीं, बल्कि स्नेह संबंध होता है। स्नेह संबंध अमर है और देह संबंध जग से जाएगा। बुद्ध पुरुष को कहीं से भी पुकारो वह आपकी पुकार सुनेगा।
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