BOLE KANPUR : बेहतरीन है नई शिक्षा नीति मगर संसाधन भी तो दीजिए
Kanpur News - कानपुर के महाविद्यालयों में शिक्षकों की कमी से छात्रों को पढ़ाई में कठिनाई हो रही है। नई शिक्षा नीति लागू होने के बावजूद संसाधनों की कमी और पारिश्रमिक में बदलाव न होने से शिक्षक परेशान हैं। कॉलेजों...
कानपुर। शहर के महाविद्यालयों का इतिहास शिक्षा के साथ आजादी और क्रांति से भी जुड़ा है। कानपुर विश्वविद्यालय की स्थापना 59 साल पहले 1966 में हुई थी। मगर यहां डीएवी कॉलेज, क्राइस्टचर्च कॉलेज, वीएसएसडी कॉलेज अपनी शताब्दी वर्ष मना चुके हैं। कूटा के अध्यक्ष डॉक्टर बीडी पांडेय ने बताया कि सभी महाविद्यालय शिक्षकों की कमी से जूझ रहे हैं। किसी पाठ्यक्रम में एक शिक्षक है तो किसी में दो। नतीजा, एक-एक शिक्षक को 100 बच्चों तक को पढ़ाना पढ़ रहा है। साथ ही कहते हैं कि नई शिक्षा नीति तो बेहतरीन है मगर हमें संसाधन भी तो मिलने चाहिए। प्रोफेसर मनोज अवस्थी बताते हैं कि विवि प्रशासन कुछ काम अच्छे कर रहा है लेकिन, उसमें अभी कई खामियां हैं। सेमिनार और रिसर्च को लेकर बढ़ावा दिया जा रहा है, लेकिन बजट मिलने में काफी विलंब होता है। सबसे अधिक समस्या पोर्टल पर छात्रों के डाटा को अपलोड करने में होती है। डॉ. राजीव कुमार ने कहा कि कॉलेजों के आसपास सुरक्षा के विशेष इंतजाम होने चाहिए।
पारिश्रमिक में लंबे समय से नहीं हुआ बदलाव :
कूटा के संरक्षक प्रोफेसर विवेक द्विवेदी कहते हैं कि परीक्षा, मूल्यांकन, वॉयवा समेत अन्य जरूरी कार्यों में शिक्षक अपनी अहम भूमिका निभाते हैं। इसके लिए विवि उन्हें प्राथमिकता के आधार पर पारिश्रमिक का भुगतान करता है। मगर समय के साथ रिव्यू जरूरी है। पारिश्रमिक को लेकर काफी समय से बदलाव नहीं हुआ है। विवि प्रशासन ने अब तक महाविद्यालयों के शिक्षकों की वरिष्ठता सूची अपग्रेड नहीं की है। शिक्षकों ने कहा कि विवि कैम्पस और महाविद्यालयों के शिक्षकों में भेदभाव नहीं करना चाहिए, क्योंकि दोनों शिक्षक योग्य हैं। इससे विवि की ओर से बनने वाली समितियों में शिक्षकों को बराबरी की जिम्मेदारी दी जानी चाहिए। वर्तमान में महाविद्यालयों में 25 फीसदी शिक्षकों की कमी है। वहीं, 50 फीसदी शिक्षणेत्तर कर्मचारी कम हैं, जिसका खामियाजा भी छात्रों को भुगतना पड़ रहा है।
नई शिक्षा नीति अच्छी लेकिन जरूरी संसाधन नहीं:
शिक्षकों ने बताया कि सरकार ने नई शिक्षा नीति लागू कर दी है, जिसमें सभी स्नातक और परास्नातक पाठ्यक्रम में सेमेस्टर प्रणाली लागू होने के साथ हुनरमंद बनाने के लिए वोकेशनल कोर्स अनिवार्य किए गए हैं। छात्रों को वोकेशनल कोर्स की पढ़ाई करनी है लेकिन अधिकतर कॉलेजों में इसके लिए उचित संसाधनों की कमी है। सेमेस्टर प्रणाली लागू होने से साल में दो बार परीक्षाएं कराई जा रही हैं, जिससे अधिकतर कॉलेज परीक्षा कराने में ही व्यस्त रहते हैं। नियमानुसार शिक्षकों को नियमित कक्षा करने का भी समय नहीं मिल रहा है। कॉलेजों में दाखिले की प्रक्रिया ही छह माह तक चलती रहती है।
बोले शिक्षक
शिक्षकों से जुड़ी सभी समस्याओं का प्राथमिकता पर समाधान किया जाएगा। सभी समस्याओं पर छात्रहित और शिक्षा की गुणवत्ता को ध्यान में रखकर निस्तारित की जाएगी। शिक्षकों के कई मुद्दे पहले भी बैठकों में आते रहे हैं, जिन्हें निस्तारित करने का प्रयास किया जा रहा है। कॉलेजों में छात्रों की संख्या बढ़ाने के लिए शिक्षकों को अपनी प्रतिभा के आधार पर विभिन्न प्रोजेक्ट लाने होंगे। जिससे शिक्षकों की रिसर्च का लाभ समाज को भी मिल सके।
- प्रो. विनय कुमार पाठक, कुलपति, सीएसजेएमयू
शिक्षकों को पारिश्रमिक का भुगतान का रिव्यू नहीं किया गया है। कक्ष निरीक्षक के पारिश्रमिक भुगतान में भी वृद्धि जरूरी है। विवि को सेमेस्टर परीक्षा का शेड्यूल तय कर देना चाहिए।
प्रो. विवेक द्विवेदी, संरक्षक-कूटा
एक ही डाटा को कई पोर्टल पर अपलोड करना पड़ रहा है। परीक्षाओं का समय निर्धारित करना होगा। तभी पढ़ाई के लिए कक्षाओं का समय और मानक के अनुसार शिक्षकों की छुट्टी तय हो सकेगी।
प्रो. बीडी पांडेय
नई शिक्षा नीति के तहत शिक्षा को अपग्रेड किया जा रहा है तो उससे जुड़ी सुविधाएं भी विवि को अपने स्तर पर अपग्रेड करनी चाहिए। पोर्टल पर डाटा अपलोड करने में सबसे अधिक दिक्कतें आ रही हैं।
प्रो. मनोज अवस्थी
खराब सर्वर की वजह से पोर्टल पर डाटा अपलोड करना शिक्षकों के लिए सबसे बड़ी चुनौती बन गया है। कई पोर्टल अलग-अलग बने हैं, जिसमें सूचनाएं लगभग एक जैसी भरनी होती है।
प्रो. नवनीत मिश्रा
कॉलेज के बाहर पार्किंग बनी है लेकिन बाहरी लोग वहां अपने वाहन खड़े कर चले जाते हैं, जिससे कॉलेज के शिक्षकों को अपने वाहन खड़े करने के लिए काफी मशक्कत करनी पड़ती है। इसमें राहत मिले।
डॉ.प्रीति सिंह
विवि को पूर्व निर्धारित शेड्यूल के अनुसार ही कक्षाएं और परीक्षाएं संचालित करनी चाहिए। लेट तक एडमिशन चलने से परीक्षाएं विलंब से होती है और पूरा सत्र लेट होता है। शिक्षकों की कक्षाएं भी प्रभावित होती हैं।
प्रो. रेनू रस्तोगी
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