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ट्रांसगंगा के ग्रीन बेल्ट में होगा गोल्फ कोर्स ग्राउंड

गंगा बैराज के पास उन्नाव की सीमा में विकसित की जा रही ट्रांसगंगा हाईटेक सिटी के ग्रीन बेल्ट में अब गोल्फ कोर्स ग्राउंड भी बनाया...

ट्रांसगंगा के ग्रीन बेल्ट में होगा गोल्फ कोर्स ग्राउंड
हिन्दुस्तान टीम,कानपुरFri, 22 Oct 2021 11:05 AM
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कानपुर। प्रमुख संवाददाता

गंगा बैराज के पास उन्नाव की सीमा में विकसित की जा रही ट्रांसगंगा हाईटेक सिटी के ग्रीन बेल्ट में अब गोल्फ कोर्स ग्राउंड भी बनाया जाएगा। इस परियोजना में बसने वाले लोगों और उद्योगपतियों के लिए यह ग्राउंड आकर्षण का केंद्र बनेगा। ग्रीन बेल्ट में लोगों के बैठने के लिए बेंच बनाई जाएगी। वॉकिंग ट्रैक बनेगा। इसके अलावा मनोरंजन के अन्य संसाधन भी उपलब्ध होंगे। यूपीसीडा के सीईओ मयूर माहेश्वरी ने इसका निर्देश दिया है।

विकसित किए जाएंगे छोटे-छोटे जंगल

ट्रांसगंगा हाईटेक सिटी समेत सूबे के 100 से ज्यादा औद्योगिक क्षेत्रों में अब छोटे-छोटे जंगल विकसित किए जाएंगे। इसके लिए नगर निगम कानपुर की तरह ही यूपीसीडा भी जापान की मियावाकी पद्धति का इस्तेमाल करेगा। अपर मुख्य सचिव वन ने इसी तर्ज पर हरियाली विकसित करने का निर्देश दिया है।

ग्रीन बेल्ट की डिजाइन में होगा संशोधन

ट्रांसगंगा हाईटेक सिटी में 350 एकड़ जमीन पर ग्रीन बेल्ट विकसित करने की योजना थी। अब इसमें कुछ संशोधन किया जाएगा। चिह्नित की गई जमीन पर कई टुकड़ों में छोटे-छोटे जंगल विकसित होंगे। यही प्रयोग प्रयागराज की सरस्वती हाईटेक सिटी और गाजियाबाद की ट्रोनिका सिटी में होगा। इसी तरह जैनपुर, चकेरी, रनिया, औरैया प्लास्टिक सिटी और कानपुर में प्रस्तावित मेगा लेदर क्लस्टर में भी जापान की मियावाकी पद्धति अपनाई जाएगी। अपर मुख्य सचिव ने सुझाव दिया है कि 500 से 1000 वर्ग मीटर के खाली भूखंडों में भी ऐसे जंगल विकसित हो सकते हैं।

क्या है मियावाकी पद्धति

मियावाकी वनीकरण की एक जापानी पद्धति है। इस पद्धति के प्रणेता जापानी वनस्पति वैज्ञानिक अकीरा मियावाकी हैं। इस पद्धति में जमीन को वाटर रिटेनर, परफोरेटेड व ऑर्गेनिक समेत चार सतहों में तैयार किया जाता है। इसके बाद दो-दो मीटर के दायरे में पौधों की 50 किस्मों को लगाया जाता है। इस पद्धति से पौधों की वृद्धि अन्य की अपेक्षा 10 गुना अधिक होती है। पौधारोपण का स्थान अधिक छायादार होता है। सिंचाई की जरूरत बाद में नहीं पड़ती। घने पौधों से ऐसी सतह तैयार हो जाती है कि नमी बनी रहती है। इस पद्धति से जंगलों को 20 से 30 साल में ही तैयार कर दिया जाता है।

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