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चार दिन से पेड़ की छांव में ही खुद को क्वारंटीन किए चार युवक

मंगलपुर कस्बे में महाराष्ट्र से आए 4 लोगों ने अपने घर में अलग कमरा व शौचालय आदि की व्यवस्था ने होने के कारण खुद को खेतों में ही क्वारंटीन कर लिया। 45 डिग्री तापमान व लू के थपेड़ों में पेड़ों की छाया से...

चार दिन से पेड़ की छांव में ही खुद को क्वारंटीन किए चार युवक
हिन्दुस्तान टीम,कानपुरTue, 26 May 2020 09:08 PM
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मंगलपुर कस्बे में महाराष्ट्र से आए 4 लोगों ने अपने घर में अलग कमरा व शौचालय आदि की व्यवस्था ने होने के कारण खुद को खेतों में ही क्वारंटीन कर लिया। 45 डिग्री तापमान व लू के थपेड़ों में पेड़ों की छाया से राहत मिलती है। वहीं रात के वक्त खुले आसमान के नीचे रात कट जाती है। परिवार और गांव को सुरक्षित रखने के लिए उनका ये संकल्प अब सबको रास आ रहा है। वह मानते हैं कि लॉक डाउन के दौरान मुंबई में जो परेशानी हुई उसके आगे यहां तो कोई समस्या नहीं है।

मंगलपुर कस्बे में इदरीश अली, नौशाद अली, शराफत अली व अशरफ अली महाराष्ट्र के पालघर में बेकरी में कारीगरी करते थे। लॉकडाउन लगने से बेकरी बंद हो गई। इससे उनके सामने रोजी-रोटी की समस्या आ गई । करीब दो महीने तक वह वहां खाने पीने से लेकर कई तरह की समस्याओं से जूझते रहे। प्रवासियों को भेजने के लिए चलाई गई ट्रेन से 23 मई को किसी तरह घर आ गए। घर छोटा होने के कारण अलग टायलेट व बाथरुम के साथ क्वारंटीन करने के लिए कमरा भी नहीं था। इस पर उन्होंने गांव के बाहर एक आम के बगीचे में शरण ली । दूसरे दिन बगीचे के मालिक ने उन्हें बाग से अलग रहने को कह दिया। इस पर गांव के ही राम नागेश सिंह ने उनकी समस्या को देखते हुए अपने ट्यूबवेल की चाबी दे दी। पानी के लिए जब इच्छा होती है तो इंजन चलाकर प्यास बुझा लेते हैं। उनका मानना है कि अभी तक कोई समस्या शरीर में नहीं महसूस हुई है लेकिन घर व गांव को सुरक्षित रखने के लिए वह अपना समय खेतों व पेड़ की छाया में ही काट रहे हैं। चार दिन बीत गए हैं। युवकों का कहना था कि अब तक अपने गांव और अपनी मिट्टी में हैं। पालघर में लॉक डाउन के दौरान उनके सामने खाने से लेकर कई तरह की समस्याएं आईं। चार दिन पहले तक ये पता नहीं था कि किस तरह से घर पहुंचेंगे। अब तो घर से खाना आ रहा है। परिवार के लोग आंखों के सामने हैं। ये भी पता है कि अब सिर्फ 10 दिन ही यहां रहना है। इसलिए न तो लू लगती है और न ही धूप की तपिश महसूस होती है। जिन तकलीफों को बर्दाश्त करके लौटे है उसके आगे यहां की समस्या कुछ भी नहीं है।

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