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चिंताजनक: तीस की उम्र में ही आंखें बूढ़ी हो रहीं

युवाओं की आंखें 15 वर्ष पहले यानी 30 साल की उम्र में ही बूढ़ी हो रही हैं। आंखों को आराम न मिलने, तनाव और जंक फूड खाने से लेंस कठोर हो रहे हैं। इससे उनका लचीलापन खत्म हो रहा है। नतीजतन युवा तेजी से...

चिंताजनक: तीस की उम्र में ही आंखें बूढ़ी हो रहीं
नासिर जैदी,कानपुरFri, 23 Mar 2018 02:22 AM
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युवाओं की आंखें 15 वर्ष पहले यानी 30 साल की उम्र में ही बूढ़ी हो रही हैं। आंखों को आराम न मिलने, तनाव और जंक फूड खाने से लेंस कठोर हो रहे हैं। इससे उनका लचीलापन खत्म हो रहा है। नतीजतन युवा तेजी से निकट दृष्टि दोष (प्रेस बायोपिया बीमारी) की चपेट में आ रहे हैं। आम तौर पर यह बीमारी 45 से 55 वर्ष की आयु में बढ़ती है।
जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज के शोधकर्ताओं के मुताबिक आंखों का लेंस कठोर होने से मरीजों को अपने सामने किसी भी वस्तु के आकार को समझने में दिक्कत होती है। पढ़ने में कठिनाई के साथ ड्राइविंग के समय नजदीक की वस्तु को स्पष्ट देखने में असुविधा होती है। अगल-बगल देखने में चूक सड़क हादसों का कारण बन रही है।
डॉक्टरों ने समय से पहले होने वाली इस बीमारी के पीछे सबसे बड़ी वजह असंतुलित खान-पान, जंक फूड, तनाव, तेज रोशनी में अधिक समय तक काम करना और लगातार ड्राइविंग को बताया है। साथ ही मोबाइल और लैपटॉप के रेडिएशन को भी इसके लिए जिम्मेदार माना है। शोधकर्ताओं का दावा है कि यह बीमारी कम और मध्यम आय वर्ग के युवाओं में अधिक हो रही है।
क्या है निकट दृष्टि दोष
इस बीमारी में आंखें धीरे-धीरे चीजों को करीब से देखने की क्षमता खो देती हैं। दूर की वस्तुएं दिखाई तो पड़ती हैं, लेकिन धुंधली। उम्र के हिसाब से यह शारीरिक परिवर्तन है जो आमतौर पर 45 वर्ष के बाद धीरे-धीरे शुरू होता है और 60 वर्ष तक आते-आते स्थिर हो जाता है। इसके लिए प्लस-3 तक चश्मा लगाने की जरूरत पड़ती है।
13 सरकारी अस्पतालों की स्क्रीनिंग
जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज और राष्ट्रीय अंधता निवारण कार्यक्रम के तहत 13 सरकारी अस्पतालों में हुई स्क्रीनिंग में चौंकाने वाले तथ्य सामने आए हैं। रिसर्च में 15,500 लोगों को शामिल किया गया। इनमें 70 फीसदी में यह बीमारी 30 वर्ष की उम्र में पाई गई।
इसलिए आंखों को हो रहा नुकसान
डॉक्टरों के मुताबिक लेंस एक विशेष प्रकार की प्रोटीन से बने होते हैं। यह प्रोटीन लेंस को लचीला और फुर्तीला बनाए रखता है। आंखों को आराम न मिलने की वजह से यही प्रोटीन कमजोर हो रही है। इसके कारण लेंस में कड़ापन आ रहा है। एसे मरीजों को दिखने में दिक्कत आती है और सही आकार की अनुभूति नहीं हो पाती है। छोटी चीज बड़ी और बड़ी छोटी दिखने लगती है।
एंटीऑक्सीडेंट की कमी से प्रोटीन में बिखराव
जंक फूड में एंटी ऑक्सीडेंट नहीं होते हैं। उनमें पाए जाने वाले तत्व शरीर में बनने वाले प्राकृतिक एंटीऑक्सीडेंट को खत्म कर देते हैं। नतीजतन प्रोटीन असंतुलित होने लगता है। नई कोशिकाओं का जन्म रुक जाता है और पुरानी कोशिकाएं काम करना बंद कर देती हैं।
प्रोटीन टूटने के नुकसान
नजदीक से देखना मुश्किल होगा, गाड़ी चलाने में असुविधा, लिखन-पढ़ने में दिक्कत, वस्तु के आकार के आकलन में दिक्कत।
बचाव के उपाय
पपीता, तरबूज, खरबूजा, नीबू, हरी पत्तेदार सब्जियां, चोकर युक्त आटा, मछली जबरदस्त एंटीऑक्सीडेंट का स्रोत हैं। पपीता में कैरोटिनॉयड नाम का एंटीऑक्सीडेंट पाया जाता है जो कई बीमारियों से लड़ने की क्षमता प्रदान करता है। जांच कराने के तुरंत बाद चश्मा लगाएं, चश्मा न लगाने पर मरीजों में दिक्कत और भी गंभीर हो सकती है।
कड़ी चुनौती है शोध
जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज के नेत्र रोग विभाग के अध्यक्ष प्रो. आरसी गुप्ता के अनुसार, निकट दृष्टि दोष पर शोध करना कड़ी चुनौती है। अभी तक अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर इसके मानक और गाइड लाइन स्पष्ट नहीं है। युवाओं में इस बीमारी के वास्तविक आंकड़े जुटाए जा रहे हैं। ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में पुरुष और महिलाओं पर शोध जारी है। लोगों को जीवनशैली और खानपान बदलना होगा। तनाव दूर करें ताकि समय से पहले आंखों की बीमारी से बचा जा सके।

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