सर्दी में ठिठुर रहे मवेशी,सूखे पुआल से भर रहे पेट
कानपुर देहात। संवाददाता जिले में अन्ना मवेशियों के संरक्षण के लिए
कानपुर देहात। संवाददाता
जिले में अन्ना मवेशियों के संरक्षण के लिए संचालित पशु आश्रय गृह बदहाली व अव्यवस्था के शिकार हैं। अधिकांश गौ आश्रय गृहों में सर्दी से बचाव के इंतजाम नहीं हैं। इससे सर्दी की चपेट में आकर मवेशी बीमार हो रहे हैं। डाक्टरों के न पहुंचने से मवेशियों का इलाज तो दूर ठीक से देखभाल तक नहीं हो पा रही है। कई जगह हरा चारा व भूसा तो दूर सूखे पुआल से मवेशियों का पेट भर रहा है।
जिले में गोवंश के संरक्षण के लिए संचालित 38 आश्रय गृह संचालित हैं। इनमें 9 नगरीय क्षेत्रों में व 29 ग्रामीण क्षेत्र में हैं। इन आश्रय गृहों में करीब 3500 गोवंश रखे गए हैं। इनको सर्दी से बचाने के इंतजाम अभी कागजों में ही सीमित हैं। गौ आश्रय गृहों में अलाव जलवाने के निर्देश अभी जहां मूर्त रूप नहीं ले सके हैं। वहीं काऊ कोट बनाने के लिए सिर्फ खाना पूरी हो रही है। इससे मवेशी बदहाली का दंश झेल रहे हैं। कई पशु आश्रय स्थलों में भूसे का संकट होने से पुआल आदि से गोवंश का पेट भरा जा रहा है। कुछ स्थानों पर पुराने तिरपालों से सर्दी से बचाने की कवायद जरूर की गई है,लेकिन फटे पुराने कम संख्या में लगे तिरपालों से सर्दी से बचाव नहीं हो पा रहा है।
सिल्हौला गोआश्रय गृह में दिखी बदहाली
राजपुर ब्लॉक के सिल्हौला खुर्द में बनी गौशाला में 36 मवेशी संरक्षित मिले। यहां मवेशियों के लिए भूसे तक का इंतजाम न होने से पुआल से मवेशियों का पेट भरे जाने की बात सामने आई। वहीं पानी की टंकी में गंदा पानी भरा मिला। गौशाला के पास ही गोबर का ढेर लगा हुआ थ। पशु विकित्सक सरवन कुमार ने बताया कि गौशाला में 34 मवेशी संरक्षित हैं। इनकी नियमित देख्भाल हो रही है।
बुधेड़ा गौशाला में आधा दर्जन गोवंश बीमार
बुधेड़ा के गो आश्रय गृह में 34 गौवंश संरक्षित हैं। इनमे से करीब आधा दर्जन गौवंश बीमार हैं। यहां भी हरा चारा दूर बाजरे व पुआल से गोवंश का पेट भरा जा रहा है। यहां अलाव तक ही व्यवस्था नहीं है। सचिव संदीप निषाद ने बताया कि गौवंशों को सर्दी से बचाने के इंतजाम किए जा रहे हैं।
बोले जिम्मेदार
जिला पशु चिकित्साधिकारी देवकी नंदन लवानियां का कहना है कि जिले में 38 पशु आश्रय गृहों में करीब साढे़ तीन हजार गोवंश हैं। इनको सर्दी से बचाने के लिए सभी जगह तिरपाल उपलब्ध कराए गए हैं। काऊ कोट बनाने के लिए सात आश्रय गृहों में बोरों की व्यवस्था कराई जा चुकी है। जबकि अलाव के लिए 15 स्थलों पर लकड़ी भेजी जा चुकी है। जल्द ही सभी व्यवस्थाएं चाक चौबंद कराने का प्रयास हो रहा है।
