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छिबरामऊ की स्मृतियों में बसे थे वरिष्ठ साहित्यकार ‘विराम

देश के मूर्धन्य साहित्यकार ‘विराम का शहर की सरजमीं से साहित्यक नाता थे। वह छिबरामऊ की हर गतिविधि में अपनी उपस्थिति दर्जा करा लोगों को प्रेरणा देते थे। बुधवार को उनका नश्वर शरीर पंच तत्व में विलीन हो...

छिबरामऊ की स्मृतियों में बसे थे वरिष्ठ साहित्यकार ‘विराम
हिन्दुस्तान टीम,कन्नौजWed, 26 Feb 2020 11:17 PM
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देश के मूर्धन्य साहित्यकार ‘विराम का शहर की सरजमीं से साहित्यक नाता थे। वह छिबरामऊ की हर गतिविधि में अपनी उपस्थिति दर्जा करा लोगों को प्रेरणा देते थे। बुधवार को उनका नश्वर शरीर पंच तत्व में विलीन हो गया। इस हृदय विदारक घटना से शहर के साहित्यकारों के साथ बुद्धजीवियों में शोक की लहर दौड़ गई। यहां उनके चाहने वालाें ने कहा कि प्रो. रमेश चन्द्र तिवारी ‘विराम ने प्रदेश में ही नहीं देश के कई राज्यों में हिन्दी साहित्य की अलख जगाने का काम किया था। उन्होंने जीवन भर हिन्दी की विभिन्य विधाओं में काम करके हिन्दी के शब्दकोष को बढ़ाने के लिए अपनी वाणी को प्रयोगशाला बना डाला था। उनके कंठ से निकले स्वर आज शब्द का रूप लेकर आम बोलचाल की भाषा बन गए। बुधवार को उनके निधन की खबर मिलने से शहर की कई शिक्षण संस्थाओं में शोकसभा के आयोजन हुए। यहां दिवंगत आत्मा की शांति के लिए श्रद्धांजलि दी गई।

14 साल पहले छिबरामऊ में रखी थी नाट्य कार्यशाला की नींव:प्रदीप प्रधान

छिबरामऊ। जून 2006 में सिटी चिल्ड्रन्स एकेडमी में राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय (एनएसडी)के नेतृत्य में एक कार्यशाला का आयोजन हुआ था। इस कार्यशाला में देश के प्रमुख रंगकर्मी एवं निदेशक रहे सरदार आत्मजीत सिंह ने शहर के बच्चों को अभिनय के गुर सिखाए थे। सीसीए के निदेशक प्रदीप प्रधान ने बताया कि जब इस आयोजन के नींव रखने की बारी तो उस साहित्यकारों ने प्रो.रमेश तिवारी ‘ विराम का नाम सुझाया था लेकिन वह अनभिज्ञ होने के चलते इससे सहमति नहीं थे। अंतोगत्वा जब आयोजन में बतौर मुख्य अतिथि पधारे और इस कार्यक्रम की नींव को रखने के दौरान नाट्यशास्त्र पर अपने सम्बोधन से सभी मुरीद हो गए थे। वह प्रकांड बुद्धिजीवी व सौम्यता की प्रतिमूर्ति के तौर पर हमेशा याद रहेंगे।

कनउजी बोली के शब्दकोष में था अहम योगदान

साहित्यकार ‘ विराम का कनउजी बोली के शब्दकोष में बड़ा योगदान था। शहर के वरिष्ठ कवि ओमप्रकाश शुक्ल अज्ञात ने बताया कि उन्होंने इस बोली के प्रचार- प्रसार के साथ मजबूती देने में बड़ा योगदान दिया था। इसके शब्द कोष में अंइचत, भउजाई, उंघियात जैसे शब्दों को गढ़ा था। कनउजी बोली के बारे में एक कहावत ‘ कोस- कोस पर पानी बदले दुइ- दुई कोस पे वानी आज भी चरितार्थ हो रही है। जिले के हर कोने पर अलग-अलग बोलियां बोली जा रही हैं।

हिन्दी के बहुअर्थी शब्दों को मंच से उठाते रहे

हिन्दी साहित्य के वरिष्ठ साहित्यकार रमेश तिवारी ‘ विराम हिन्दी दिवस पर होने वाले आयोजनों में हिन्दी के शब्द कोष में बहुअर्थी शब्दों के मुद्दे को वह हमेशा उठाते रहे। हिन्दी के वह पक्षधर होने के नाते बच्चों को हिन्दी की खामियों से वह रूबरू करते रहे।

फोन पर अब नहीं सुनाई देगा सांईराम

मोबाइल पर पाश्चात्य सभ्यता के हैलो के वह मुखर विरोधी थे। वह मोबाइल पर बात करने से पहले हैलो की जगह सांईराम शब्द का उच्चारण करते हुए कुशलक्षेम से शुरूआत करते थे। उनके पंचतत्व में विलीन होने से तो फिर अब मोबाइल पर सांईराम की आवाज सुनाई नहीं देगी।

बेटे के निधन के बाद साहसी पिता के रूप में देखे गए‘ विराम

सितम्बर 2010 में यशस्वी पत्रकार बेटे अनुभव तिवारी के निधन से पत्रकारिता क्षेत्र की अपूरर्णीय क्षति हुई थी। बेटे के निधन के बाद उन्हें सारी दुनिया ने एक अति साहसी पिता एवं गंभीर इंसान के तौर पर देखा था। इतने बडे़ आघात के बाद भी वह सामाजिक सक्रियता व सजगता कभी कमी नहीं आई।

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