ओपीडी बंद, अब इमर्जेंसी सेवा के ही भरोसे ही बीमारों का इलाज
ओपीडी बंद, अब इमर्जेंसी सेवा के ही भरोसे ही बीमारों का इलाज*कोरोना संक्रमण को थामने के लिए सरकारी अस्पतालों में ओपीडी बंद*ओपीडी बंद होने से ग्रामीण...
कन्नौज निज संवाददाता
कोरोना के बढ़ते संक्रमण के मकसद से सरकार ने सरकारी अस्पतालों में ओपीडी की सेवा को बंद कर रखा है। मकसद है कि यहां भीड़ नहीं जुटेगी, जिससे संक्रमण के प्रसार पर लगाम लगेगी। उसके उलट इस फैसले से लोगों को जरूरी इलाज के लिए भी परेशान होना पड़ रहा है। इमर्जेंसी वार्ड में बड़ी संख्या में लोग पहुंच रहे हैं।
इन दिनों सरकारी अस्पतालों का नजारा काफी बदला हुआ है। ओपीडी के बंद होने से उस हिस्से में पूरे-पूरे दिन सन्नाटा पसरा रहता है। डॉक्टरों के न होने से कोई दूसरा स्टाफ भी उधर नहीं जाता है। ऐसे में दूर-दराज से अगर कोई मरीज आ भी जाता है तो उसे मायूसी होती है। ओपीडी में डॉक्टर न होने से उन्हें बिना इलाज के ही वापस होना पड़ रहा है। उसके उलट इमर्जेंसी वार्ड का नजारा बिल्कुल अलग है। यहां पूरे-पूरे दिन मरीजों और उनके तीमारदारों का मजमा लगा रहता है। हादसे में जख्मी हो या मौसमी बीमारी की गिरफ्त में आए लोग, इमर्जेंसी वार्ड में हर समय ऐसे लोगों का हुजूम दिख रहा है। ओपीडी बंद होने से कई लोग सीधे इमर्जेंसी वार्ड पहुंच जाते हैं। डयूटी पर मौजूद डॉक्टर या फार्मासिस्ट को उन्हें देखना पड़ता है।
दिखावे की है मोबाइल सेवा
कहने को तो ओपीडी बंद होने से स्वास्थ्य महकमे ने डॉक्टरों का मोबाइल नम्बर जारी कर दिया है। मकसद है कि अगर किसी को किसी तरह की कोई परेशानी है तो वह दिए गए नम्बरों को डायल करके डॉक्टरों से बात कर सकता है। लेकिन यह सेवा सिर्फ लकीर पीटने जैसी ही साबित हो रही है। एक तो यहां स्वास्थ्य महकमे ने इस सेवा को करीब हफ्ते भर बाद शुरू की, उसमें भी लिस्ट में कई ऐसे डॉक्टरों का नाम और नम्बर शामिल कर लिया जिनका तबादला काफी पहले यहां से दूसरे जिले के लिए हो चुका है। जब लोगों ने उन नम्बरों पर बात की तो पूरी बात सामने आई। हालांकि इस भूल को चूक मानते हुए स्वास्थ्य महकमे ने संशोधित लिस्ट जारी की। लेकिन लोगों का कहना है कि यह सिर्फ लकीर पीटने जैसा है। गांव के लोगों को मोबाइल की सेवा से आराम नहीं मिल रहा है।
