कन्नौज। हिन्दुस्तान संवाद
लॉकडाउन और कोरोना संक्रमण काल के शुरुआती दौर की अपेक्षा जिले में इन दिनों मनरेगा के श्रमिकों की संख्या जरूर कम है, लेकिन अब जिन ब्लॉक क्षेत्रों में संख्या बढ़ती है तो वहां अधिकारियों की नजर लग जाती है। क्रॉस होता है कि मजदूर किस काम में लगे हैं और अचानक किसी क्षेत्र में इतने श्रमिक कैसे बढ़ गए।
दरअसल, कुछ अधिकारियों का मानना कि जब लॉकडाउन में एक-एक ग्राम पंचायत में बाहर से आए जिन श्रमिकों ने अधिक काम नहीं किया तो इन दिनों का माहौल तो सामान्य है। ऐसे में मनरेगा के कामों में मजदूरों की संख्या बढ़ने से जिम्मेदार क्रॉस करने लगते हैं। हालांकि उन दिनों में मनरेगा मजदूरों की संख्या करीब 28 हजार रही है। मनरेगा सेल से बीते दिनों ब्लॉकों में फोन किए गए। साथ ही मजदूरों की संख्या बढ़ने के बारे में पता किया गया। जहां जायज संख्या बढ़ाई गई, वहां कम करने पर जोर नहीं दिया गया। बताया गया है कि आवास के लाभार्थी को भी मनरेगा के तहत काम दिया जाता है।
लेकिन शासन ने रोजगार देने की सख्ती कर दी
कुछ दिनों पहले ही मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने मनरेगा के तहत ग्रामीण अंचलों के लोगों को रोजगार देने पर जोर दिया है। कहा है कि जॉबकार्डधारकों को वर्ष में 100 दिन का रोजगार जरूर दिया जाए। इसके बाद अधिकारी चौकन्ने हो गए हैं।
क्या कहते हैं डीसी मनरेगा
डीसी मनरेगा रामसमुझ बताते हैं कि फिलहाल फर्जी श्रमिकों के काम करने की पुष्टि नहीं हुई है। लेकिन संख्या को लेकर जांच जरूर होती रहती है। डीएम को भी सूची दी गई है। शासन ने कहा है कि जिन मजदूरों ने 81 से 99 दिनों तक काम किया है, उनको 100 दिन का रोजगार दिया जाए। कच्चे आलू की खुदाई कम होने से श्रमिकों की संख्या भी बढ़ गई है। करीब 10-15 दिन पहले जहां मनरेगा में करीब 11000 श्रमिक काम कर रहे थे, अब 17000 का आंकड़ा पहुंच गया है।