
43 साल बाद मिला न्याय: भूत भगाने के बहाने पत्नी की हत्या में दोषी पति को उम्रकैद की सजा
संक्षेप: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 1982 में भूत भगाने के बहाने अपनी पत्नी की गला घोंटकर हत्या करने के जुर्म में एक व्यक्ति और उसके साथी को दोषी ठहराया है। उम्रकैद की सजा सुनाई है।
43 साल की कानूनी लड़ाई के बाद इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 1982 में अपनी पत्नी की गला घोंटकर हत्या करने के जुर्म में पति और उसके साथी को दोषी ठहराया। 1984 के बरी होने के फैसले को पलटते हुए अवधेश कुमार और माता प्रसाद को भूत भगाने के बहाने हत्या के जुर्म में आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई। कोर्ट ने सबूत नष्ट करने के लिए जुर्माना और तीन साल की सजा भी सुनाई।

यह मामला 6 अगस्त, 1982 का है, जब उस समय 28 वर्षीय अवधेश कुमार पर अपनी 23 वर्षीय पत्नी कुसुमा देवी की गला घोंटकर हत्या करने का आरोप लगा था। अभियोजन पक्ष के अनुसार, कुमार को अपने छोटे भाई की पत्नी के साथ अवैध संबंध में पकड़े जाने के बाद कुसुमा ने विरोध किया। इसके बाद अवधेश, माता प्रसाद और दो अन्य साथियों ने मिलकर कुसुमा को पकड़ लिया और उसका गला घोंट दिया। घटना को छिपाने के लिए आरोपियों ने इसे भूत भगाने बताकर पेश किया और उसी रात जल्दबाजी में शव का अंतिम संस्कार कर दिया।
गवाहों के बयानों और सबूतों के आधार पर मामला अदालत तक पहुंचा। हालांकि, 1984 में निचली अदालत ने सभी आरोपियों को बरी कर दिया था। इस फैसले के खिलाफ दायर अपील हाईकोर्ट में लंबित रही। अपील की सुनवाई के दौरान दो अन्य आरोपियों की मृत्यु हो गई, लेकिन अवधेश कुमार और माता प्रसाद पर मुकदमा जारी रहा।
न्यायमूर्ति राजीव गुप्ता और न्यायमूर्ति हरवीर सिंह की खंडपीठ ने 43 साल बाद इस मामले में अंतिम फैसला सुनाते हुए दोनों आरोपियों को उम्रकैद की सज़ा दी। साथ ही, सबूत नष्ट करने के अपराध में तीन साल की अतिरिक्त सज़ा और जुर्माना भी लगाया।
अदालत ने अपने निर्णय में कहा कि यह मामला अंधविश्वास और सामाजिक अज्ञानता का गंभीर उदाहरण है, जहां एक निर्दोष महिला की बलि चढ़ा दी गई। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि अंधविश्वास के नाम पर की गई किसी भी हिंसा या हत्या को किसी भी रूप में बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।





