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यूरिया की खुराक भी जरूरत के अनुसार ही पूरी करें किसान

Jhansi News - किसान गेहूं में नाइट्रोजन में दूसरी खुराक का करें प्रयोग खेत में पानी अधिक भराव हो गया हो तो पानी निकासी करें झांसी,संवाददाताजनपद के अधिकांश किसानों न

Newswrap हिन्दुस्तान, झांसीMon, 30 Dec 2024 10:14 PM
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यूरिया की खुराक भी जरूरत के अनुसार ही पूरी करें किसान

झांसी,संवाददाता जनपद के अधिकांश किसानों ने गेहूं की बुआई की है जिसके लिए वैज्ञानिकों ने अपनी रायशुमारी दी है। उन्होंने कहा कि किसान नाइट्रोजन की दूसरी खुरा का प्रयोग करें। यूरिया के लिए कहा कि जरूरत के अनुसार मात्रा में दें। वहीं हाल ही में बारिश को लेकर कहा कि यदि खेतो में पानी भरा हो तो उसे खाली कर दें।

रानी लक्ष्मी बाई केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने गेहूं में नाइट्रोजन की दूसरी खुराक का प्रयोग करने की सलाह दी है। कृषि वैज्ञानिक डॉ. अनिल कुमार राय और डॉ योगेश्वर सिंह ने बताया कि उर्वरकों का प्रयोग मृदा परीक्षण के आधार पर करना उचित होता है। जिन किसानों ने गेहूं की बुवाई समय पर करली है तो फसल की अच्छी बढ़वार के लिए नाइट्रोजन की दूसरी खुराक को दो बराबर भागों में विभाजित कर प्रयोग करें।

प्रथम खुराक पहली सिंचाई के बाद या क्राउन रूट अवस्था में नत्रजन की पूर्ति हेतु यूरिया को 65 से 70 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर की दर से प्रयोग करें। क्राउन रूट अवस्था गेहूं फसल की प्रारंभिक विकास अवस्था का एक महत्वपूर्ण चरण है। यह समय गेहूं की बुआई के बाद लगभग 18 से 25 दिनों के बीच का होता है जब पौधे से छोटी-छोटी नई जड़े निकलती हैं। इस अवस्था में पौधे की मुख्य जड़ प्रणाली विकसित होती है, जिससे फसल की आगे की वृद्धि और विकास होता है।

शेष बची हुई नत्रजन की पूर्ति हेतु यूरिया के माध्यम से 65 से 70 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर की दर से दूसरी सिंचाई के बाद कल्ले निकलते समय प्रयोग करें। अत: फसल में समय पर नाइट्रोजन की दूसरी खुराक देने से अच्छी बढ़वार होगी और उत्पादन में वृद्धि होगी। उच्च गेहूँ की पैदावार बनाए रखने के लिए नाइट्रोजन आवश्यक पोषक तत्व है। यूरिया में पाई जाने वाली नाइट्रोजन पौधों को हरा- भरा करती है और इसके प्रभाव से तेजी के साथ कल्ले निकलने लगते हैं।

हाल ही में जिले के कई इलाकों में बारिश हुई। इसके लिए वैज्ञानिकों ने कहा कि यदि खेत में अत्यधिक पानी जमाव हो तो पानी को उचित समय पर ही निकाल दें। जिससे पौधे की जड़ें मजबूत होंगी और फसल पीली नहीं पड़ेगी। किसानों का नुकसान बचेगा।

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