चारा खरपतवार बिगाड़ रहा है किसानों का खेती किसानी बजट
दो बार दवा छिड़काव के बाद भी नहीं मरा आफत बना हरा चारा सेंपलिंग परिणाम माह मेंं, तब तक किसानों की हो जाती जेब ढीलीझांसी,संवाददाताकिसानों की फसलें पौध ब
झांसी,संवाददाता किसानों की फसलें पौध बन चुकी है। पर खेतों में खरपतवार का बोलबाला हो रहा है। महंगी दवाओं के छिड़काव बाद भी चारा सीना ताने खड़ा हुआ है। इधर तर्क भी अलग अलग दिए जा रहे है। कृषि जानकारों का कहना है कि सही दवा सही समय छिड़कें तो चारा नष्ट होगा तो वहीं किसानों का तर्क है कि दवा खेत में छिड़कने के बाद असर ही नहीं कर रही है। इसमें किसानों का खेती किसानी करने का बजट जरूर गड़बड़ा रहा है।
खेती किसानी महंगी साबित होती है इसमें कोई दो राय नहीं है। हाल ही में जुलाई माह में किसानों ने अपने अपने खेतों में खरीफ फसल की बुआइ्र की थी। इसमें उरद तिल मूंग और मूंगफली आदि की फसलें बोई थी। बुआई समय दीमक की दवा छिड़क दी थी। इसके बाद दूसरी दवा भी छिड़की। पर चारा अब भी जस का तस खड़ा हुआ है। ऐसे में किसान परेशान हो चुका है। दवा छिड़काव में तर्क अलग अलग है।
जिला कृषि रक्षा अधिकारी की मानें तो किसानों को सही दवा का चयन करके सही विधि अनुसार ही छिड़कना चाहिए। बताया कि दवाओं के डिब्बों पर लिखा होता है और उसी के अनुसार छिड़काव करना होता है। उन्होंने बताया कि जो किसानों की भाषा बांस चारा खरपतवार नहीं मरती है तो इसके लिए किसान इमेजेथाइपर दवा लें और 1 लीटर प्रति हेक्टेयर के हिसाब से 400 से 500 लीटर में मिला दें। फिर इसका छिड़काव कर दें तो चारा खत्म हो जाएगा।
हालांकि किसानों का कहना है कि दवा का छिड़काव करने के बाद कोई असर नहीं हो रहा है। इधर जिला कृषि अधिकारी कुलदीप कुमार मिश्रा ने कहा कि दवाओं और खाद आदि की सेंपलिंग की जाती है और नमूने लैब भेजे जाते है। जिसकी रिपोर्ट करीब 1 माह बाद आती है। ऐसे में यदि नमूने फेल होते तो दुकानदार पर कार्रवाई होती है। हालांकि किसान नेता शिवनारायण सिंह परिहार कहते है कि जब तक नमूने का रिजल्ट आता है तब तक हजारों किसान दवा को छिड़क चुके होते है और उस नुकसान की भरपाई कोई नहीं करता है।
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