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धरती को बचाने के लिए संसाधनों का कम से कम करना होगा उपयोग

ग्लोबल वार्मिंग के इस दौर में बढ़ती जानलेवा बीमारियों से हर कोई चिंतित है। पर क्या सरकार और जिम्मेदार पदों पर बैठे लोग इस ग्लोबल वार्मिंग के दुष्प्रभावों को कम करने के लिए कोई ठोस कदम उठा रहे है? क्या...

धरती को बचाने के लिए संसाधनों का कम से कम करना होगा उपयोग
हिन्दुस्तान टीम,हरदोईWed, 14 Nov 2018 09:28 PM
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ग्लोबल वार्मिंग के इस दौर में बढ़ती जानलेवा बीमारियों से हर कोई चिंतित है। पर क्या सरकार और जिम्मेदार पदों पर बैठे लोग इस ग्लोबल वार्मिंग के दुष्प्रभावों को कम करने के लिए कोई ठोस कदम उठा रहे है? क्या बढ़ने वाली बीमारियां ग्लोबल वार्मिंग का ही दुष्परिणाम है? तरक्की के इस दौर में भी देश में नई खोजे क्यों नहीं हो पा रही हैं ऐसे कई अनसुलझे सवालों के जवाब नेशनल बॉटेनिकल गार्डन रिसर्च इंस्टीटयूट के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. पीके सिंह ने दिए।

उन्होने बताया धरती और जीवन को बचाने के लिए हमें धरती पर उपलब्ध संसाधनों का कम से कम उपयोग करना चाहिए। उन्होने बताया वैज्ञानिक खोजों के साथ साथ सुविधाओं के बढ़ने से इंसान ऐसे ऐसे तत्वों को जमीन के भीतर से निकाल रहा है जो सतह पर नहीं पाए जाते। डीजल पेट्रोल जैसे फ्यूल, लैड, निकिल जैसे हानिकारक तत्वों का समुचित निस्तारण न होने के कारण वो लिक्विड और गैस के रूप में शरीर में पहुंच रहे हैं और गंभीर रोगों का कारण बन रहे हैं। बढ़ती आबादी और संसाधनों के दुरुपयोग को बीमारी का बड़ा कारण और निदान जनसंख्या नियंत्रण बताया।

वहीं ग्लोबल वॉर्मिंग की वजह से समुद्र का आकार बढ़ रहा है और ग्लेश्यिर कम हो रहे हैं। इसका असर फसलों की उत्पादन क्षमता पर पड़ रहा है, बताया संसाधनों के दुरुपयोग की यही रफ्तार रही तो आने वाले समय में ग्लोबल वार्मिंग के दुष्प्रभाव इतने हो जाएंगे कि उसका अंदाजा नहीं लगाया जा सकेगा।

तरक्की के इस दौर में भी आम जन के हित में होने वाली खोजों में देश के वैज्ञानिक पीछे क्यों है के सवाल पर डॉ. पीके सिंह ने साफ शब्दों में बताया इस क्षेत्र में न तो पर्याप्त पैसा है और न ही पॉवर इसके चलते लोग वैज्ञानिक बनने के लिए आगे नहीं आ रहे हैं। रिसर्च के लिए मनी, मैटेरियल, मैन और मशीन की आवश्यकता बताते हुए कहा भारत में इन चार चीजें की एक स्थान पर उपलब्धता नहीं है जिसके चलते रिसर्च नहीं हो पा रही हैं।

कपास और कसावा की खेती को मिला जीवनदान

पंजाब, हरियाणा, राजस्थान और समूचे पाकिस्तान में कपास की खेती को बहुत बड़ा नुकसान पहुंचाने के साथ ही अफ्रीका महाद्वीप में कसावा की खेती को व्हाइट फ्लाई ने खासा नुकसान पहुंचाया है। व्हाइट फ्लाई से होने वाले नुकसान का आकलन किया गया तो समूचे विश्व में हर साल तीन से दस बिलियन डालन का नुकसान होता है। इस कीट के विरुद्ध काटन और कसावा जिसकी खेती से लगभग 50 करोड़ लोग प्रत्यक्ष तरीके से जुड़े हुए हैं प्रतिरोधक क्षमता डेवलप करने और फसलों को बचाने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर पुरस्कृत किए जा चुके हैं। डॉ. पीके सिंह के शोध पत्र को यूनाइटेड किंगडम से प्रकाशित होने वाले नेचर बायो टैक्नॉलाजी में भारत से इकलौता जर्नल प्रकाशित करने का गौरव भी हासिल है।

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