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सरकारी गौ आश्रय स्थलों को आइना दिखा रहा अंजली का गौधाम

बिना किसी सरकारी सहायता के ग्राम रैंगाई में अंजली सिंह इन दिनों गोबर और गोमूत्र से जीवामृत बनाकर भूमि को बंजर होने से बचा रही हैं। एक ओर जहां सरकारी गौआश्रय स्थल बद-इंतजामी और दुर्दशा के शिकार हो रहे...

सरकारी गौ आश्रय स्थलों को आइना दिखा रहा अंजली का गौधाम
हिन्दुस्तान टीम,हरदोईMon, 19 Oct 2020 11:04 PM
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बिना किसी सरकारी सहायता के ग्राम रैंगाई में अंजली सिंह इन दिनों गोबर और गोमूत्र से जीवामृत बनाकर भूमि को बंजर होने से बचा रही हैं। एक ओर जहां सरकारी गौआश्रय स्थल बद-इंतजामी और दुर्दशा के शिकार हो रहे हैं तो दूसरी ओर एक छोटा सा गौधाम एक मिसाल बन गया है।

अंजली सिंह बताती हैं कि इस जीवामृत को बनाने के लिए 10 किलो गोबर, 10 लीटर गोमूत्र, एक किलो गुड़, एक किलो किसी भी दाल का आटा व बरगद या पीपल के पेड़ के नीचे मिट्टी का घोल बनाया जाता है। सात दिन तक यह घोल रख दिया जाता है। इसका रंग बदल जाता है। इसके बाद इस घोल के छिड़काव से खेती की उर्वरता बढ़ती है और भूमि बंजर होने से बचती है। इसके अलावा गौधाम में ही अंजली ने वर्मी कंपोस्ट बनाने का काम भी शुरू किया है। इसको देखने के लिए अनेक गन्ना मिलों के अधिकारी अक्सर रैंगाई गांव आते हैं व अन्य कृषकों को भी इसी तरीके से गौपालन के लिए प्रेरित करते हैं। अंजली ने बताया कि इस गौधाम में दुधारू पशु नाम मात्र के ही हैं और जब यहां गायें दूध देती है तो अंजली इस दूध को बेंचती नहीं बल्कि अस्पतालों में मरीजों को नि:शुल्क रूप से बांटती है। अंजली का दावा है कि यदि सही ढंग से गो-पालन किया जाए तो एक गाय के गोबर और गोमूत्र से एक बीघा जमीन को बंजर होने से बचाया जा सकता है।

अंजली का कहना है कि यदि किसान गोवंश को एक परिवार की तरह मानकर पालन पोषण करें तो उन्हें गौमाता का प्यार भी मिलेगा और बछड़ों का दुलार भी। वे कभी गाय से लिपट कर खुश होती हैं तो कभी बछड़े को गोद में उठाकर उसको पुचकारती हैं। अंजली का मानना है कि आज गोवंश की जो हालत है और अन्ना पशुओं की जो समस्या है, उसके लिए बहुत कुछ किसान भी जिम्मेदार हैं। यह धारणा बिल्कुल गलत है कि केवल दुधारू पशु ही पाले जाना लाभ देतें हैं। दूध न देने वाले गोवंश के गोबर व गोमूत्र से भी काफी कमाई कर सकते हैं।

अंजलि का दावा है कि उन्होंने गाय के गोबर से धूपबत्ती बनाई तथा साबुन बनाया और इसको लोगों ने पसंद भी किया है। आगे उनकी योजना है कि गाय के गोबर से गणेश-लक्ष्मी की मूर्तियां, उनमें बीज डालकर बनाएगी। साथ ही अंतिम संस्कार के लिए लकड़ी के स्थान पर गोबर की समिधायें बनाने की योजना है। इनका उपयोग यज्ञ व अंतिम संस्कार में किया जा सकेगा। साधनों की कमी के कारण वे अभी इन योजनाओं को शुरू नहीं कर सकीं हैं। अंजली का कहना है कि जिला मुख्यालय पर वह जगह तलाश कर रही हैं। उचित जगह मिलने के बाद वे अपनी इन योजनाओं को भी कार्य रूप में परिणित करेंगीं।

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