उद्योग की राख का सुरक्षित इस्तेमाल बताएगा युगांडा का छात्र
कोयले से चलने वाली थर्मल पॉवर प्लांटों के निकलने वाली राख के सुरक्षित निस्तारण का तरीका व अभी इससे होने वाली जल व मिट्टी में हो रहे प्रदूषण का आकलन एमएमएमयूटी का पर्यावरण इंजीनियरिंग विभाग करेगा।...
कोयले से चलने वाली थर्मल पॉवर प्लांटों के निकलने वाली राख के सुरक्षित निस्तारण का तरीका व अभी इससे होने वाली जल व मिट्टी में हो रहे प्रदूषण का आकलन एमएमएमयूटी का पर्यावरण इंजीनियरिंग विभाग करेगा। केन्द्रीय मृदा एवं सामग्री अनुसंधानशाला नई दिल्ली की ओर से यह जिम्मेदारी पार्यावरण इंजीनियरिंग विभाग के प्रोफेसर गोविंद पांडेय के निर्देशन में युगांडा के छात्र एग्वे माइकल टॉबी को मिली है। उन्हें अप्रैल तक यह प्रोजेक्ट पूरा कर रिपोर्ट जमा कर देना है।
देश भर के थर्मल पॉवर प्लांटों से निकलने वाली राख का अभी केवल करीब 60 फीसदी ही निस्तारित हो पाता है। शेष 40 फीसदी को जमीन समतल करने या जमीन आरक्षित कर डंप करना पड़ता है। इस राख को डंप करने के लिए हर वर्ष 20 हजार हेक्टेअर क्षेत्रफल वाली जमीन आरक्षित करनी पड़ती है। राख में मौजूद लेड, कैडमियम, मरकरी, आरसेनिक, निकिल आदि मिट्टी में मिल कर हमारी फसलों से होते हुए इंसान तक पहुंचते हैं और बीमारियों के कारण बनते हैं। यह जल में भी मिलकर जल प्रदूषण करते हैं।
ऐसे में इनके सुरक्षित निस्तारण के लिए केन्द्रीय मृदा एवं सामग्री अनुसंधानशाला ने प्लान तैयार किया है और राख में मौजूद विषैले रसायन की मात्रा, प्रभाव व उनकी रोकथाम के उपाय सुझाने के लिए एमएमएमयूटी के पर्यावरण इंजीनियरिंग विभगा को रिसर्च प्रोजेक्ट सौंपा है। केन्द्रीय मृदा एवं सामग्री अनुसंधानशाला के वैज्ञानिक डॉ. एसएन शर्मा ने बताया कि यह परियोजना अनुसंधानशाला व एमएमएमयूटी के ज्वाइंट कोलैबोरेशन में अप्रैल तक पूरी की जानी है। थर्मल पावर की राख का सुरक्षित निस्तारण देश के लिए बड़ी समस्या है। राख का उपयोग लोग ईंट व भूमि समतलीकरण के लिए कर रहे हैं मगर इसके तमाम दुष्प्रभाव भी सामने आ रहे हैं। इसलिए इस विषय को चुना गया है।