गोरखपुर में राहत अली को दी गई संगीतमय श्रद्धांजलि, कलाकारों ने बांधा समा
प्रसिद्ध ग़ज़ल सम्राट और आकाशवाणी गोरखपुर में बतौर संगीत संयोजक अपनी सेवा दे चुके राहत अली की याद में शहर के संगीत जगत से जुड़े 16 नामचीन हस्तियों ने अपनी प्रस्तुतियां दी। बुधवार को स्थानीय गोकुल अतिथि...
प्रसिद्ध ग़ज़ल सम्राट और आकाशवाणी गोरखपुर में बतौर संगीत संयोजक अपनी सेवा दे चुके राहत अली की याद में शहर के संगीत जगत से जुड़े 16 नामचीन हस्तियों ने अपनी प्रस्तुतियां दी। बुधवार को स्थानीय गोकुल अतिथि भवन में आयोजित इस कार्यक्रम में राहत अली की जुड़ी स्मृतियों को साझा करते हुए कलाकारों ने उनके नगमें सुना कर श्रोताओं को मंत्रमुग्ध शाम-ए-गजल को लम्बे समय तक स्मरणीय बनाए रखने वाली शाम बना दिया।
राहत अली को स्मरण करते हुए डॉ. शरद मणि त्रिपाठी ने कहा कि राहत अली अत्यंत कुशल संगीतकार थे। ठुमरी, दादरा, नात, क़व्वाली, भजन, गीत आदि अनेक विधाओं में सिद्धहस्त थे। दलेर मेहंदी, उषा टण्डन, दिलराज कौर, मालिनी अवस्थी जैसे अज़ीम कलाकार उनके शिष्य रहे। कार्यक्रम के सूत्रधार महानगर की प्रतिष्ठित सांस्कृतिक संस्थाओं सरसरंग संगीत संकुल एवं कुटुंब के डॉ. शरदमणि त्रिपाठी एवं डॉ. रजनीकांत श्रीवास्तव रहे। कार्यक्रम का कुशल संचालन नवीन पाण्डेय ने किया। उन्होंने कलाकारों को परिचय कराने के साथ ही राहत अली से जुड़ी अपनी स्मृतियां और संस्मरण कर साझा कर कार्यक्रम को विषय वस्तु से जोड़ा रखा। कार्यक्रम में प्रोफेसर हर्ष सिन्हा, डा. राजेश विक्रमी, भगवान सिंह, डॉ. आरकेसी मिश्रा, रत्ना बैनर्जी, डॉ. सुरेश, शैलेश त्रिपाठी, कलीमूल हक़, शैवाल शंकर समेत शहर के अनेक संगीत प्रेमी श्रोता उपस्थित रहे।
कार्यक्रम की शुरुआत सुश्री चन्दना मुखर्जी एवं मधुमाला चक्रवर्ती द्वारा राहत अली की प्रसिद्ध ग़ज़ल ‘बैद्यनाथ, विश्वनाथ, सोमनाथ स्वामी.... की युगल प्रस्तुति से हुई। इसके पश्चात इसके बाद रविराज ने ‘ नैन अपने पिया से मिलाई रे... का गायन सूफियाना रंग घोला। अजय शर्मा ने ‘इशरते कतरा है दरिया में फना हो जाना....शायर ग़ालिब का एहतेराम किया।
सुश्री अजीमा वारसी ने ‘प्रीत की लत मोहे ऐसी लागी... और चेता सिंह ने ‘प्रेम करो नारायण से... भजन गाकर भक्ति रस की वर्षा की। उन्होंने भी राहत अली से जुड़ी अपनी स्मृतियां सांझा की। पूर्णिमा शर्मा, जलज उपाध्याय की गजलों ने भी श्रोताओं को ध्यान खींचा। शशांक मणि त्रिपाठी ने ‘मोरा सैंया मोसे बोलत नाहि... को भी खासा पंसद किया गया। कार्यक्रम में मच्छेन्द्र नाथ, राकेश श्रीवास्तव, प्रतिमा श्रीवास्तव, अखिलेश सिंह, कुमार वार्षिकेय की प्रस्तुतियों ने बीते ज़माने की ग़ज़लों की याद दिलाई।
संगतकारों ने भी बांधा समा
इस याद-ए-राहत अली की इस संगीतमय शाम को शहर के लोकप्रिय संगतर्कताओं ने जीवंत बनाया। आर्गन पर कृष्ण कुमार सिंह, बांसुरी पर रानू जानसन, हॉरमोनियम पर कन्हैय्या श्रीवास्तव, जलज उपाध्याय, मार्कण्डेय, गौरव मिश्र तबला पर, बेचन गौड़ नॉल पर, सुबोध श्रीवास्तव गिटार पर और दिलीप कुमार पैड पर अपने कौशल पर प्रदर्शन कर संगत किया।