Hindi Divas Special: हाईस्कूल से परास्नातक तक तीन से पांच फीसदी छात्र होते हैं हिन्दी में फेल
पूर्वी यूपी जहां हिन्दी बोलचाल की भी भाषा है, वहां हाई स्कूल से पीजी तक हर साल औसनत तीन से पांच फीसदी विद्यार्थी हिन्दी में फेल होते हैं। अंक सुधार व बैकपेपर में बैठने वालों की संख्या औसनत दस फीसदी...
पूर्वी यूपी जहां हिन्दी बोलचाल की भी भाषा है, वहां हाई स्कूल से पीजी तक हर साल औसनत तीन से पांच फीसदी विद्यार्थी हिन्दी में फेल होते हैं। अंक सुधार व बैकपेपर में बैठने वालों की संख्या औसनत दस फीसदी से अधिक है। कई बार मूल्यांकन पर इसे लेकर सवाल उठते हैं मगर शिक्षक इसे भी अन्य विषयों की ही तरह लेते हैं। भले ही लोग इसे थोड़े दुख व आश्चर्य से पूछते हैं मगर शिक्षकों का मानना है कि हिन्दी पढ़ने का मतलब चाय की दुकान पर पड़ा हुआ अखबार बांच लेना या वाट्सएप, फेसबुक पर कमेंट लिख लेना या हिन्दी फिल्म देखकर मनोरंजन कर लेना भर नहीं है।
डीडीयू में हिन्दी विभागाध्यक्ष प्रो. अनिल राय कहते हैं कि हिन्दी में फेल हो जाने की वजह का प्रश्न थोड़े दुख और आश्चर्य के साथ पूछा जाता है। ग्लानि और लज्जा का भी भाव इसके पीछे होता है। कारण शायद यह होता है कि हिन्दी क्षेत्र के होने और मातृभाषा हिन्दी होने के बावजूद आज हालत यह है कि छात्र हिन्दी में फेल हो जा रहे हैं। मेरे लिए यह सवाल हिकारत और विस्मय का नहीं है। हिन्दी के छात्र को व्याकरण, भाषा विज्ञान, भारतीय और पाश्चात्य साहित्य-शास्त्र के जटिल सिद्धांतों में भी प्रवेश करना होता है। आलोचना से लेकर साहित्य-इतिहास की विभिन्न अवधारणाओं और मान्यताओं से गहरी घनिष्ठता अर्जित करनी होती है। अनेक विवादों और विमर्शों के तथ्यों - तर्कों से संवाद बनाना पड़ता है। हिन्दी पढ़ने वाले विद्यार्थी को भाषा और साहित्य के ज्ञान के दोहरे मोर्चे पर संघर्ष करना होता है। इसलिए न तो हिन्दी के अध्ययन को आसान समझा जाना चाहिए और न ही इसमें फेल हो जाने को आश्चर्य का विषय माना जाना चाहिए।
डीडीयू के प्रो. विमलेश मिश्र कहते हैं कि हिन्दी विषय भी अन्य विषयों की ही तरह है। अन्य विषयों की तरह इसमें भी लोग पास या फेल होते हैं। राजभाषा हिन्दी होने के चलते इसे लेकर थोड़ा आश्चर्य जरूर होता है मगर केवल अखबार पढ़ लेना या सोशल मीडिया पर लिख पढ़ लेना मात्र हिन्दी पढ़ने का उद्देश्य नहीं होता।