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कभी मगहर गांधी आश्रम से हजारों लोगों को मिला था रोजगार

कभी प्रदेश भर में शान समझा जाता रहा संतकबीरनगर के मगहर का श्री गांधी आश्रम बदहाली के दौर से गुजर रहा है। यह किसी चुनाव में नेताओं का मुद्दा नहीं बना। यही कारण है कि यहां की बदहाली दिन प्रतिदिन बढ़ती...

कभी मगहर गांधी आश्रम से हजारों लोगों को मिला था रोजगार
राहुल राय ,संतकबीरनगर Sun, 05 May 2019 01:00 PM
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कभी प्रदेश भर में शान समझा जाता रहा संतकबीरनगर के मगहर का श्री गांधी आश्रम बदहाली के दौर से गुजर रहा है। यह किसी चुनाव में नेताओं का मुद्दा नहीं बना। यही कारण है कि यहां की बदहाली दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। आश्रम के कर्मचारी लगातार सरकार और उसके जिम्मेदारों से मांग करते रहे लेकिन इनकी ओर किसी ने ध्यान नहीं दिया। आज आश्रम पर 12 करोड़ का कर्ज है। यहां पर काम करने वाले कर्मचारी बिना वेतन अपने दायित्वों का निर्वहन कर रहे हैं। मगहर के विकास की नींव पड़ने के साथ ही आश्रम की तस्वीर बदलेगी इसकी भी उम्मीद लोगों के अंदर जगी थी लेकिन किसी ने इस ओर ध्यान नहीं दिया। 
     27 एकड़ में फैला गांधी आश्रम कभी सोने की चिड़िया कहा जाता था। क्षेत्र के लोगों की आर्थिक विकास का भी कभी भागीदार रहा। लेकिन आज अपनी बदहाल स्थिति पर आंसू बहा रहा है। संतकबीर की निर्वाण स्थली मगहर के बगल 1955 में 27 एकड़ भूमि पर गांधी आश्रम की स्थापना हुई थी। उस समय इस आश्रम में दो से तीन हजार कर्मचारी कार्य करते थे। स्थिति यह थी कि जब गांधी आश्रम में काम करने वालों की शिफ्ट बदलती थी तो मगहर में मेला सा लग जाता था। इस क्षेत्र के लोग सूत कातने से लेकर अन्य काम करते थे और वाजिब मजदूरी पाकर खुशहाली का जीवन जीते थे। आश्रम में हर तरफ कोई न कोई काम होता रहता था। आश्रम में एक इंच भी जमीन खाली नहीं रहती थी। हर जगह तैयार माल से लेकर कच्चे माल के लाट पड़े रहते थे। कामगारों को काम करने से फुर्सत नहीं थी। मगहर में रोजगार के अवसर बढ़ गए थे। स्थानीय कामगारों के साथ ही बाहरी कामगारों को भी रोजगार मिलता था। मगहर कस्बे के साथ ही आसपास के कस्बों के लोगों को दाल रोटी तो चलती ही थी, कपड़ा और मकान की जरूरतें भी पूरी होती थीं।  
समय बदला, शासन सत्ता बदली और इसी के साथ जिम्मेदारों की प्राथमिकताएं भी बदल गईं। जब विश्वनाथ प्रताप सिंह प्रधानमंत्री बने उस समय खादी बोर्ड के अध्यक्ष डाक्टर जसबीर सिंह ने विकेन्द्रीकरण की योजना बनाई। विकेंद्रीकरण की यह नीति खादी और ग्रामोद्योग विभाग के ताबूत में कील बन गई। मगहर गांधी आश्रम टूटा तो बिखरता ही चला गया। जिस गांधी आश्रम में एक शिफ्ट में हजारों आदमी काम करते थे। वहां अब दहाई की संख्या में भी मजदूर नहीं हैं। स्थिति तो यह है कि कि गांधी आश्रम से जुड़ी हर इकाई में दो से लेकर आठ तक मजदूर काम कर रहे हैं। 
कई जिले थे आश्रम के तहत 
गांधी आश्रम मगहर की स्थापना पंडित विचित्र नारायण ने इसका उद्धाटन किया था। इस गांधी आश्रम में उस समय छह जिले थे। इसमें गोरखपुर, देवरिया, बस्ती, बहराइच, गोंडा और लखनऊ जिले शामिल थे। इन सारे जिलों में सूत कताई से लेकर माल सप्लाई करने का जिम्मा इसी के पास था। लेकिन अब हर इकाई अलग हो गई है। 
गांधी आश्रम में होते थे ये कार्य : 
गांधी आश्रम मगहर में सूत की कताई, धुलाई, रंगाई, छपाई, साबुन निर्माण, फर्नीचर, लकड़ी के कार्य, सरसों का तेल बनाना, आटा पिसाई, मसलंद, चद्दर, तकिया, गद्दा, चरखा निर्माण के अलावा रुई धुनाई भी होती थी।

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