आबोहवा बदली तो शहर के मेहमां बने जंगल के ये खूबसूरत परिंदे
लॉकडाउन ने शहरों की फिजां ही बदल दी। हवा में धूल-धुआं कम हुआ तो शोर-प्रदूषण भी घट गया है। लोग घरों से कम बाहर निकले, माहौल शांत रहा। इसी का नतीजा है कि जिन परिंदों को हम अक्सर जंगलों में...
लॉकडाउन ने शहरों की फिजां ही बदल दी। हवा में धूल-धुआं कम हुआ तो शोर-प्रदूषण भी घट गया है। लोग घरों से कम बाहर निकले, माहौल शांत रहा। इसी का नतीजा है कि जिन परिंदों को हम अक्सर जंगलों में फुदकते-चहचहाते देखा करते थे, वे इन दिनों शहर के मेहमान बने हुए हैं। कइयों ने तो शहर के पेड़ों पर घोंसले तक बना लिए हैं। हालांकि लॉकडाउन-04 के बाद आरेंज जोन में बंदिशें घटने से शोर-वायु प्रदूषण बढ़ने लगा है। पर गोरखपुर विश्वविद्यालय सर्किट हाउस और कई जगह पेड़ों के झुरमुट में इन परिंदों की अठखेलियां देख सकते है।
अच्छी खबर
विश्वविद्यालय परिसर, रामगढ़झील, कोनी गांव एवं शहर के पार्को दिखने लगे पक्षी
शहरी क्षेत्र के पेड़ों पर भी बना लिए घोसले, वाइल्ड लाइफ फोटोग्राफर ने कैमरे में कैंद किए पक्षी
25 से ज्यादा पक्षियों की प्रजातियों ने शहर में डाला डेरा
वाइल्ड लाइफ फोटोग्राफर धीरज कुमार सिंह कहते हैं कि प्रवासी पक्षी अब लौट चुके हैं। लेकिन रामगढ़ झील में स्थानीय पक्षी काफी संख्या में अब भी देखे जा सकते हैं। इन्हें चिड़ियाघर के वेटलैंड में भी देखा जा सकता है। तीतर, मोर, उल्लू, हॉर्नबिल, गोल्डन ओरियोल, नीलकंठ, कॉपर स्मिथ बारबेट, पर्पल सनबर्ड, कोयल, हरियाल, पाराकीट (तोते), कॉमन इंडियन बारबेट, बुलबुल, मैना, डव, स्पॉटेड डव, हेरॉन, ब्लू बी इटर(पतेना), सारस, ओरियेंटल व्हाइट आई, ब्लू बी ईटर, पर्पल सेम्फहेन, स्पॉटेड आउल, फिजेंट टेल्ट जकाना समेत काफी संख्या में पंक्षियों की प्रजातियां सहज ही दिखाई दे रही है।
नया गांव में सारस और कोनी ग्राम सभा में मोर आकर्षण का केंद्र बने हैं। शहर में अठखेलियां करते जंगल के इन खूबसूरत बाशिंदों को धीरज कुमार सिंह ने अपने कैमरे से कैद किया है।
शहीद अशफाक उल्लाह प्राणि उद्यान के पशु चिकित्सक डॉ योगेश सिंह कहते हैं कि लॉकडाउन के बीच प्रकृति के सौदर्य को न केवल आप निहार सकते हैं बल्कि महसूस कर सकते हैं। शहर की गलियां गलियां पक्षियों की चहचहाहट से गुलजार हैं। हेरिटेज फाऊंडेशन के नरेंद्र मिश्र इन क्षेत्रों में पक्षियों के लिए जब तब दाना डालते दिखते हैं। कहते हैं कि लॉकडाउन खुलने के बाद यह महौल याद आएगा।
और विश्वविद्यालय में रंग बीरंगे गुलमोहर के पेड़ों पर उल्लुओं का डेरा
दीप दयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय के पेड़ों पर 6 जोड़े उल्लुओं ने डेरा डाल रखा है। 7 दिन पहले ही धीरज कुमार सिंह ने उन्हें पहली बार कैमरे में कैद किया। तब के हर दिन एक बार कुछ दाने लेकर उनकी तलाश में कैम्पस में पहुंच जाते हैं। रंगबिरेंगे फूलों से लदी गुलमोहर की डालियों पर वे धीरज को ऐसे पोज देते हैं, मानो उन्हें कब से जानते हो।
‘‘गोरखपुर तराई बेल्ट का हिस्सा रहा है। यह प्राकृतिक संसाधनों एवं वन्य जीव संपदा से सदैव ही समृद्ध रहा है। लेकिन बढ़ते शहरीकरण एवं मानव हस्तक्षेप से दिक्कते बढ़ी हैं। लॉकडाउन में महौल बदला है तो तमाम पक्षी प्रजातियां दिख रहीं, उनके कलरव भी सुनाई दे रहे हैं।’’
अविनाश कुमार, डीएफओ गोरखपुर