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गर्भवती का अल्ट्रासाउंड बताएगा कि बच्चे का स्वभाव चंचल होगा या शांत

पौराणिक पुस्तक महाभारत में लिखा गया है कि अभिमन्यु मां के गर्भ से बातें सुन लेता था। इस दावे को अब विज्ञान भी धीरे-धीरे मानने लगा है। हाल में हुए रिसर्च में साबित हुआ है कि मां के गर्भ में जांच से...

गर्भवती का अल्ट्रासाउंड बताएगा कि बच्चे का स्वभाव चंचल होगा या शांत
हिन्दुस्तान टीम,गोरखपुरMon, 05 Aug 2019 02:45 AM
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पौराणिक पुस्तक महाभारत में लिखा गया है कि अभिमन्यु मां के गर्भ से बातें सुन लेता था। इस दावे को अब विज्ञान भी धीरे-धीरे मानने लगा है। हाल में हुए रिसर्च में साबित हुआ है कि मां के गर्भ में जांच से पता चल सकता है कि शिशु को आगे कौन सी बीमारी होगी। इतना ही नहीं, उसके व्यवहार का भी आभास हो सकेगा।

यह जानकारी उड़ीसा के कटक मेडिकल कालेज के डॉ. पीसी महापात्रा ने दी। वह 'सुरक्षित मातृत्व' विषय पर तीन दिवसीय अन्तरराष्ट्रीय सेमिनार में अंतिम दिन अपनी बात रख रहे थे। दक्षिण एशिया फाग्सी सेमिनार का आयोजन गोरखपुर ऑब्स एंड गायनी सोसायटी ने किया है। यह सेमिनार शहर के होटल रेडिसन ब्लू में चल रहा है।

इस मौके पर डॉ. महापात्रा ने बताया कि व्यस्क होने पर डायबिटीज, अस्थमा, हेपेटाइटिस, किडनी और दिल की बीमारी का पता मां के गर्भ में चल सकता है। इस पर अमेरिका और ब्रिटेन में रिसर्च पूरा हो चुका है। अब तो मां के गर्भ से ही भविष्य में बच्चों के व्यवहार का पता सकता है। बच्चा चंचल होगा, शांत होगा या फिर झगड़ालू, इसकी जानकारी सिर्फ अल्ट्रासाउंड से हो सकती है। गर्भावस्था के सातवें महीने में शिशु तेज आवाज पर रिएक्ट भी करने लगता है। उसकी जांच से मां की सेहत का भी पता चल सकता है।

तीन दिन में करीब 500 डॉक्टरों ने की शिरकत : दक्षिण एशिया फेडरेशन ऑफ आब्स एंड गायनी सोसायटी(सेफाग) द्वारा सूबे में पहली बार सेमिनार का आयोजन हुआ। इस संगठन में 10 देश के डॉक्टर शामिल हैं। इस सेमिनार के राष्ट्रीय संयोजक अहमदाबाद के डॉ. अल्पेश गांधी, दिल्ली की डॉ. प्रतिमा मित्तल, गोरखपुर की डॉ. साधना गुप्ता के साथ डॉ. सुरहिता करीम, डॉ. बबिता शुक्ला, डॉ. मधु गुलाटी, लखनऊ पीजीआई की डॉ.मन्दाकिनी प्रधान, डॉ. रीना श्रीवास्तव,डॉ. मीनाक्षी गुप्ता एवं डॉ. अमृता जयपुरियार रहीं।

15 फीसदी गर्भवतियों की जान खतरे में : प्रथम सत्र का उद्घाटन डॉ. अरुण कुमार और डॉ. साधना गुप्ता ने किया। डॉ. अरुण कुमार ने कहा कि प्रसव के दौरान 15 फीसदी गर्भवतियों की हालत नाजुक हो जाती है। वह बीपी, पीलिया, झटके आना, खून की कमी, बेहोशी, बुखार के कारण आईसीयू में चली जाती हैं। हैदराबाद की डॉ. शांता कुमारी ने गर्भावस्था में गंभीर बीमार महिलाओं की पहचान की जानकारी दी। उन्होंने कहा कि गर्भावस्था में महिलाओं के अन्दर खून की कमी बहुत ज्यादा पाई जाती है। डॉ.कृष्णा कुमारी और डॉ. अनिता दास ने बताया कि समय से पूर्व बच्चेदानी से खेड़ी(प्लेसेंटा) हट जाने की वजह से शिशु की गर्भ में मौत हो सकती है। इससे प्रसूता को बहुत अधिक रक्तस्राव हो सकता है। डिलीवरी से पहले नाल बाहर आ जाने से बच्चे की हालत बहुत गंभीर हो सकती है।

इन विशेषज्ञों ने अपनी बात रखी

प्रसव के दौरान 14 % महिलाओं को आते हैं झटके

पुणे के डॉ. संजय गुप्ते ने बताया कि प्रसव के दौरान हर आठवीं गर्भवती को झटके आने लगते हैं। यह जानलेवा होता है। इसे एक्लेम्पसिया कहते हैं। प्रसव के बाद होने वाली मातृ मृत्यु में एक्लेम्पसिया मरीजों की संख्या करीब 30 फीसदी होती है। यह गर्भस्थ की जान को भी खतरे में डाल देता है। गर्भवती को झटका आने से शिशु के जान को खतरा करीब 60 फीसदी बढ़ जाता है। देश में हर साल करीब तीन करोड़ महिलाएं गर्भवती होती है। इनमें से 14 फीसदी महिलाओं में झटका आने लगता है। इसका सटीक कारण आज तक पता नहीं है। मरीज के उम्र, वजन, डायबिटीज, बीपी और थायराइड की जांच कर कुछ हद तक इसका पता लगा सकते हैं।

बदल गई हो किडनी फिर भी बन सकेंगी मां

फाग्सी के पश्चिमी क्षेत्र के उपाध्यक्ष डॉ. बिपिन पंडित ने बताया कि फास्ट-फूड के बढ़ते चलन के कारण अब युवतियों की किडनी खराब हो रही है। किडनी प्रत्यारोपण के बाद वह गर्भवती नहीं हो पा रही थी। किडनी प्रत्यारोपण से शरीर में इम्यूनिटी कमजोर होती है। इससे उनके जीवन को खतरा पड़ जाता। चिकित्सा विज्ञान ने इसमें काफी प्रगति की है। अब किडनी बदलवाने वाली महिलाएं भी मां बन सकेंगी। इसके लिए उन्हें किडनी प्रत्यारोपण के बाद दो साल इंतजार करना होगा। देश में अब तक 2000 से अधिक महिलाएं किडनी प्रत्यारोपण के बाद मां बनी हैं।

खून की कमी से जूझ रहीं हैं 68 % किशोरियां

फाग्सी के पूर्व राष्ट्रीय उपाध्यक्ष डॉ. तुषार कर ने बताया कि देश में आधी आबादी की सेहत चिंताजनक हैं। सबसे खराब हाल किशोरियों की है। देश में 68 फीसदी किशोरियां खून की कमी से जूझ रही हैं। यहीं आगे चल कर गर्भवती होती है। यही वजह है कि 60 फीसदी गर्भवतियों में खून की कमी मिलती है। ऐसे में किशोरियों पर ध्यान देने की जरूरत है। यूपी और बिहार जैसे पिछड़े राज्यों में किशोरियों की सेहत और खराब है। कमजोर सेहत के कारण किशोरियां मानसिक तनाव में रहती है। किशोरावस्था में मासिक चक्र शुरू होता है।

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