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GLF:अपने चमकते सितारों से रू-ब-रू हुआ शहर

किसी भी छोटे शहर से निकलकर कोई बड़ा काम करता है तो वह अपने शहर के लिए प्रेरणा बन जाता है। गोरखपुर से बाहर निकल कर कई लोगों ने राष्ट्रीय फलक पर पहचान बनाई है। शहर के ऐसे ही सितारों को गोरखपुर लिटरेरी...

GLF:अपने चमकते सितारों से रू-ब-रू हुआ शहर
कार्यालय संवाददाता,गोरखपुर Mon, 08 Oct 2018 02:00 PM
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किसी भी छोटे शहर से निकलकर कोई बड़ा काम करता है तो वह अपने शहर के लिए प्रेरणा बन जाता है। गोरखपुर से बाहर निकल कर कई लोगों ने राष्ट्रीय फलक पर पहचान बनाई है। शहर के ऐसे ही सितारों को गोरखपुर लिटरेरी फेस्ट में सलाम किया गया। इनमें न्यूज एंकर चित्रा त्रिपाठी, अमृता चौरसिया, पत्रकार संजय सिंह एवं फिल्म निर्देशक सुशील राजपाल शामिल रहे।
 रामनाथ गोएनका अवार्ड पा चुकीं चित्रा त्रिपाठी ने अपने अनुभवों को साझा करते  हुए कहा कि उन्होंने स्क्रीन पर आने का शौक था। सबसे पहले उन दिनों गोरखपुर में चलने वाले एक स्थानीय केबल चैनल सत्या टीवी से 100 रुपये प्रति बुलेटिन से कॅरियर की शुरुआत की। बाद में प्रतिभा को पहचानते हुए दूरदर्शन ने छह सौ रुपये प्रति बुलेटिन का ब्रेक दिया। सफर धीमे धीमे चल ही रहा था कि एक दोपहर हर्ष सर का फोन आया। उन्होंने कहा कि ईटीवी में एंकर की वैकेंसी निकली है। उनके निर्देश पर उन्होंने आवेदन किया और चयन हुआ। यहीं से कॅरियर में छलांग लगनी शुरू हुई और फिलहाल आज नेशनल चैनल का प्राइम टाइम एंकर हूं। चित्रा ने यह भी बताया कि संघर्ष के दिनों में आप लोगों की टिप्पड़ियां भी सुननीं पड़ सकती है लेकिन उन आलोचनाओं से घबराने की जगह अपनी धुन में लगे रहना है। अमृता ने गोरखपुर के युवाओं से कहा कि यदि वे सूरज की तरह चमकना चाहते हैं तो उन्हें सूरज की तरह जलना भी होगा। आपको अपने लक्ष्य पर टिके रहना होगा। पूरी शिद्दत से उसके लिए जुटे रहना होगा। 
अमृता चौरसिया ने बताया कि उनकी जिंदगी में एक बड़ी ख्वाहिश थी कि लोग उन्हें उनके नाम से जानें।  आज जो मुकाम हासिल है वह एक दिन में नहीं आया। इसके पीछे संघर्ष की एक लंबी दास्तां हैं। उन्होंने युवाओं से अपील की कि बस घबराना नहीं। जो ठानो उसके पीछे लगे रहो। अमृता ने युवाओं से कहा कि वे असफलता से सींखें। फेल स्पेलिंग को उन्होंने वर्णन किया कि यह फस्र्ट अटेम्प्ट इन लर्निंग हैं।  
लोग हतोत्साहित करेंगे लेकिन टूटना नहीं
अपनी सफलता के सफर की कहानी बयां करते हुए फिल्म निर्देशक सुशील राजपाल ने कहा कि गोरखपुर से दिल्ली का सफर बेहद कठिन था। तमाम बार ऐसे मौके आए जब लोग प्रोत्साहित करने की जगह आपको हतोत्साहित करते है। राजपाल ने बताया कि उन्हें पढ़ाई के दिनों से ही फिल्में बनाने का सपना आया करता था। फिल्म निर्माता बनने का सपना लेकर वह दिल्ली गये तो उन्हें वह सपोर्ट नहीं मिला जिसकी उम्मीद किया करते थे। यहां तक कि उनके हॉस्टल के लोग उन्हें यह तक नहीं बताते थे कि एफटीआई ज्वाइन करना ठीक रहेगा। लेकिन उनकी लगन और कुछ करने की इच्छा से वह लगे रहे। उन्होने बताया कि युवावस्था में आप पर आपके खुद के सपनों के साथ साथ लोगों की उम्मीदों का भी बोझ होता है। उनको अपनी ताकत बनाना है और वह करना है जो आपके दिल से निकलता है। संजय सिंह ने कहा कि जनसरोकारों के प्रति पीड़ा ने उनको पत्रकार बनने पर मजबूर किया। मां बाप की दुलार में युवावस्था में वह मस्तमौला प्रकृति के थे और उनकी इस प्रकृति ने उन्हें बेहतर पत्रकार बनने में मदद की। उन्होंने कहा कि कोई लक्ष्य बहुत बड़ा नहीं होता है। यदि आप दिल से उसे पाना चाहेंगे तो सारी दुनिया उससे मिलाने की साजिश करने में जुट जाएगी। युवाओं को उन्होंने संदेश दिया कि धैर्य रखें हड़बड़ी में न रहें। कोई भी सफल व्यक्ति एक दिन में सफल नहीं हो जाता है। इसके पीछे संघर्ष और परिश्रम की एक लंबी यात्रा होती है।   

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