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20 साल से चल रहा था कोड देकर वसूली का धंधा

आरटीओ के नाम पर वसूली का धंधा पिछले 20 साल से फल फूल रहा था। पहले अफसरों की सरपरस्ती में ट्रकों से वसूली करने वाले दलाल पर्ची जारी करते थे तो अब भ्रष्टाचार को लेकर जीरो टॉलरेंस की नीति पर चल रही...

20 साल से चल रहा था कोड देकर वसूली का धंधा
हिन्दुस्तान टीम,गोरखपुरSun, 26 Jan 2020 02:13 AM
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आरटीओ के नाम पर वसूली का धंधा पिछले 20 साल से फल फूल रहा था। पहले अफसरों की सरपरस्ती में ट्रकों से वसूली करने वाले दलाल पर्ची जारी करते थे तो अब भ्रष्टाचार को लेकर जीरो टॉलरेंस की नीति पर चल रही भाजपा सरकार में गुप्त कोड चलने लगा। लोगों की नजर से बचने के लिए अफसर हर महीने अपने जिले का कोड बदल देते थे। एसटीएफ के खुलासे के बाद आरटीओ के अफसर व कर्मचारी सकते में हैं। गला बचाने को उपाय खोज रहे हैं।

आरटीओ के प्रवर्तन विभाग को नियम तोड़ने वालों पर बलपूर्वक कार्रवाई का अधिकार मिला हुआ है। हर जिले में एक एआरटीओ व एक पीटीओ तैनात हैं। इनकी कार्रवाई में लिखा-पढ़ी के लिए विभाग में बाबू की भी तैनाती है। सूत्रों का कहना है कि अफसर उन्हीं ट्रकों को चेक करते हैं जिनके बारे में दलाल बताता है कि उसने वसूली के पैसे देने से इनकार कर दिए हैं। यानी जो वसूली के पैसे नहीं दे, उसे यह टीम इतना परेशान कर देती है कि वह ट्रक चलवाने से ही तौबा कर लेता है। तीन साल पहले तक ओवरलोड वाहनों को एक पर्ची जारी की जाती थी। यह पर्ची दलाल जारी करते थे। सूत्रों की मानें तो जिले में ही पांच से छह दलाल इस रैकेट से जुड़े हैं। ये सभी कई सालों से अधिकारियों व बाबू के लिए वसूली कर रहे हैं। भाजपा की सरकार बनने के बाद पर्ची की जगह कोड ने ले ली। पर्ची कहीं भी पकड़े जाने पर सबूत हाथ लग जाता, इसलिए अफसरों ने कोड सिस्टम चालू कर दिया।

कमोबेश सभी ट्रक वाले यह जानते हैं कि उन्हें किस दलाल के यहां रकम जमा कर कोड लेना है। जिन्हें हर महीने माल ढोना है वे महीने की एक से 5 तारीख तक कोड हासिल कर लेते हैं। प्रतिदिन के हिसाब से ढाई से 4 हजार रुपये जमाकर कोड दिया जाता है। मसलन गोरखपुर में एक छोर से दूसरे छोर तक यदि आरटीओ का कोड 511 है तो वह कुशीनगर में शंख या कुछ और नाम हो सकता है। गोरखपुर का कोड दूसरे जिले में नहीं चलता है। वहां के लिए फिर कोड लेना पड़ता है। यानी वहां भी गाड़ी न पकड़ी जाए इसलिए रकम जमा करनी होगी। चक्कर के हिसाब से अलग कोड दिया जाता है।

अधिकारियों से आगे निकलते हैं प्रवर्तन के बाबू : सूत्रों का कहना है कि प्रवर्तन के बाबू फील्ड में नहीं जाते मगर जो गाड़ी अफसर पकड़ कर बंद करते हैं, उन्हें छुड़ाने के लिए बाबू की कृपा जरूरी होती है। यदि अधिकारियों ने जुर्माना 50 हजार रुपये का लगाया है तो बाबू उसे अपनी ताकत से कम कर देता है। कागज में कुछ ऐसी रिपोर्ट लगा देते हैं जिससे महज 10 हजार जुर्माने से ही गाड़ी छूट जाती है। ऐसे में वह सीधे 20 या 30 हजार रुपये अपनी जेब में डाल लेता है। अधिकारियों को भी इसमें कुछ हिस्सा मिल जाता है मगर यह बाबू की कृपा पर निर्भर है।

प्राइवेट सुरक्षाकर्मी लेकर चलते हैं प्रवर्तन के अधिकारी

आरटीओ के प्रवर्तन अधिकारियों को तीन-तीन सिपाही मिले हुए हैं। महज तीन सिपाहियों से बलपूर्वक कार्रवाई नहीं हो पाती। इसलिए अधिकारियों ने अपने पास से प्राइवेट असलहाधारियों को रख लिया है। यह कई दिन बाद बिना अधिकारी से भी गाड़ियां रोक कर बंद कर देते हैं और इसके बदले इन्हें भी कुछ रकम मिल जाती है। इनके वेतन का इंतजाम अधिकारी व दलाल वसूली के पैसे से करते हैं। एसटीएफ की कार्रवाई में वसूली करने वालों में इनका भी नाम सामने आया है।

प्रवर्तन के अधकारियों में हड़कंप

सभी जिलों में तैनात प्रवर्तन के अधिकारियों में एसटीएफ के खुलासे के बाद हड़कंप मच गया है। अफसर व बाबू यह प्रार्थना कर रहे हैं कि उनके नाम लिखापढ़ी में न आए। हालांकि एसटीएफ ने अपनी रिपोर्ट में अधिकारियों व दलालों के गठजोड़ का खुलासा कर दिया है मगर कुछ को अब भी उम्मीद है कि वह कार्रवाई की जद से बाहर आने के उपाय खोज लेंगे।

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