जरा याद करो कुर्बानी : प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में अंग्रेजों ने मिटा दिया था इस गांव का अस्तित्व
आजादी की लड़ाई में देश के अन्य क्षेत्र की तरह ही जिले के तप्पा उजियार की धरती के लोगों ने भी बढ़-चढ़कर भाग लिया था। तिलजा के जमींदारों की अगुवाई में आम लोगों ने विद्रोह किया था। विरोध में अंग्रेजों ने...
आजादी की लड़ाई में देश के अन्य क्षेत्र की तरह ही जिले के तप्पा उजियार की धरती के लोगों ने भी बढ़-चढ़कर भाग लिया था। तिलजा के जमींदारों की अगुवाई में आम लोगों ने विद्रोह किया था। विरोध में अंग्रेजों ने विद्रोह को दबाने के लिए तिलजा गांव को जलाकर उसका अस्तित्व ही मिटा दिया था। पांच लोगों को पकड़कर फांसी दे दी थी पर आज उनका न कोई स्मारक है न उनकी याद में कोई कार्यक्रम होता है।
तिलजा गांव के ग्राम प्रधान के प्रतिनिधि इनामुल्लाह ने बताया कि प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के समय उनके तीन परदादा शेख वली मोहम्मद, शेख सुलतान, शेख तालिब इस क्षेत्र के जमींदार थे। तब यह क्षेत्र गोरखपुर जिले के तहत आता था। तिलजा बस्ती तहसील के अंतर्गत था। प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में अमोढ़ा की रानी तलाश कुंवरि, नगर के राजा उदय प्रताप, अठदमा के शिवगुलाम सिंह के साथ कंधा से कंधा मिलाकर अंग्रेजों का जमकर विरोध किया। जगह-जगह लोगों का नेतृत्व कर अंग्रेजों का विरोध करते थे।
इस विद्रोह को दबाने के लिए तत्कालीन बस्ती का तहसीलदार आगे आया। उसने कहा विरोध नहीं थमा तो उनकी सारी जमीन जब्त कर ली जाएगी। इस पर शेख वली मोहम्मद ने तत्कालीन तहसीलदार की हत्या कर दी थी। इसका बदला लेने के लिए अंग्रेजों व नेपाल की सेना ने मिलकर जमकर कहर ढाया।
अंग्रेजों ने पूरे गांव को जला कर नक्शे से ही मिटा दिया। जो मिला उसे मारा। गांव के सभी सामान लूट कर उठा ले गए। अंग्रेजों से लड़ने के लिए जो हथियार रखा था वह गांव के उत्तर फुटहिया कुएं में डाल दिया था।
ग्रामीणों ने खेतों में छिपकर अपनी जान बचाई। विद्रोह की अगुवाई कर रहे शेख वली मोहम्मद, शेख सुलतान, शेख तालिब व उनके तीन पहरेदार को अंग्रेजों नेगिरफ्तार कर लिया। उनकी पूरी जमीन अंग्रेजों ने हड़प ली थी।
वली बाग में दी थी फांसी
इनामुल्लाह ने बताया कि 1857 के गदर के इन राष्ट्रभक्तों को बस्ती की वली बाग में फांसी पर लटका दिया था। आम जनता के सामने बेरहमी से फांसी पर लटकने वालों में शेख वली मोहम्मद, शेख सुलतान, शेख तालिब व इनके दो पहरेदार अब्दुल वहाब व बुझारत शामिल थे। इनकी जमीनों को हड़पकर अंग्रेजों के खिदमतगारों को बांट दिया गया। यहां पर बाहर से लाकर सिखों को बसा दिया गया।
गांव में नहीं है कोई स्मारक
इनामुल्लाह ने बताया कि उन राष्ट्रभक्तों की याद में गांव में कोई स्मारक नहीं है। न तो उनकी याद में कोई कार्यक्रम होता है। इस गांव को इस रूप में भी विकसित नहीं किया गया कि लगे आजादी के लिए दीवानों का यह गांव है। खस्ताहाल एनएनएम सेण्टर, टूटी सड़के, जाम नालियां इस गांव की पहचान बनी हुई है। अंग्रेजों की ज्यादती का खामियाजा भुगतने वाले तत्कालीन लोगों के वंशज आज भी छप्परों में निवास करते हैं।