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लड़खड़ाते पांवों और मूक आवाजों को ‘पहल का सहारा

लड़खड़ाते पांवों और बोल-सुन न पाने वाले दिव्यांग बच्चों को ‘पहल ने ममता भरी छावं दी है। मेडिकल कॉलेज के कम्यूनिटी सेंटर में मंगलवार को शिविर के समापन अवसर पर 248 दिव्यांग बच्चों की जांच कराई...

लड़खड़ाते पांवों और बोल-सुन न पाने वाले दिव्यांग बच्चों को ‘पहल ने ममता भरी छावं दी है। मेडिकल कॉलेज के कम्यूनिटी सेंटर में मंगलवार को शिविर के समापन अवसर पर 248 दिव्यांग बच्चों की जांच कराई...
1/ 2लड़खड़ाते पांवों और बोल-सुन न पाने वाले दिव्यांग बच्चों को ‘पहल ने ममता भरी छावं दी है। मेडिकल कॉलेज के कम्यूनिटी सेंटर में मंगलवार को शिविर के समापन अवसर पर 248 दिव्यांग बच्चों की जांच कराई...
लड़खड़ाते पांवों और बोल-सुन न पाने वाले दिव्यांग बच्चों को ‘पहल ने ममता भरी छावं दी है। मेडिकल कॉलेज के कम्यूनिटी सेंटर में मंगलवार को शिविर के समापन अवसर पर 248 दिव्यांग बच्चों की जांच कराई...
2/ 2लड़खड़ाते पांवों और बोल-सुन न पाने वाले दिव्यांग बच्चों को ‘पहल ने ममता भरी छावं दी है। मेडिकल कॉलेज के कम्यूनिटी सेंटर में मंगलवार को शिविर के समापन अवसर पर 248 दिव्यांग बच्चों की जांच कराई...
हिन्दुस्तान टीम,गोरखपुरWed, 04 Dec 2019 02:38 AM
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लड़खड़ाते पांवों और बोल-सुन न पाने वाले दिव्यांग बच्चों को ‘पहल ने ममता भरी छावं दी है। मेडिकल कॉलेज के कम्यूनिटी सेंटर में मंगलवार को शिविर के समापन अवसर पर 248 दिव्यांग बच्चों की जांच कराई गई।

दो दिवसीय शिविर के सफल आयोजन पर शिविर के संचालक डॉ. वीके श्रीवास्तव ने बताया कि इन्सेफेलाईटिस से प्रभावित दिव्यांग बच्चों की उच्च स्तरीय चिकित्सा और पुनर्वास के लिए आयोजित इस शिविर में दो दिन में देवरिया, कुशीनगर, गोरखपुर और महाराजगंज जिले से आए 459 दिव्यांग बच्चों के स्वास्थ्य और उनके पुनर्वास की व्यवस्था की गई। महराजगंज से 130 और कुशीनगर से 118 बच्चों का शिविर में परीक्षण किया गया। आने वाले दिव्यांगों में 68 प्रतिशत मानसिक रोग से ग्रसित मिले तो 32 फीसदी शारीरिक रूप से अस्वस्थ पाए गए। बताया कि यह आयोजन सरकारी तंत्र और समाज के सामंजस्य का अनुपम उदहारण है। इसमें दिव्यांग बच्चों और उनके परिजनों के आवागमन की नि:शुल्क व्यवस्था, चिकित्सीय और पुनर्वास सम्बन्धी कार्य सरकारी स्तर पर किया गया।

एक ही पंडाल के नीचे सरकार की विभिन्न चिकित्सीय योजनाओं और पुनर्वास कार्यक्रमों के लिए गठित विभागों, गोरखपुर मेडिकल कॉलेज के बाल रोग विभाग/ मेडिसिन, मानसिक रोग, न्यूरो, आँख, नाक कान गला, हड्डी रोग के विशेष चिकित्सकों तथा अपर निदेशक गोरखपुर स्तर के विशेष चिकित्सकों द्वारा गहन जांच की गई। शिविर के सफल आयोजन के लिए संयोजक डॉ. बीके श्रीवास्तव ने सभी संस्थाओं और सहयोगीजनों का आभार व्यक्त किया। इस अवसर पर बीआरडी मेडिकल कालेज के प्राचार्य डॉ. गणेश कुमार, नेहरू चिकित्सालय के प्रमुख चिकित्सा अधीक्षक डॉ. जीसी श्रीवास्तव और डॉ. आरएस शुक्ला भी मौजूद रहें।

प्राइवेट इलाज में 80 हजार खर्च हो गए, इस शिविर से कई उम्मीदें

कुशीनगर का रहने वाला अंकुश गुप्ता महज छह वर्ष की उम्र में इंसेफेलाइटिस की चपेट में आ गया था। बीआरडी में काफी इलाज हुआ। वह ठीक तो हो गया लेकिन मानसिक रूप से दिव्यांग हो गया। प्राइवेट अस्पतालों में काफी इलाज कराया। उम्मीद थी कि स्थिति कुछ हद तक ठीक हो जाएगी लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। अंकुश के पिता को जब शिविर की जानकारी हुई तो वह यहां पहुंचे और काफी खुश हुए। उन्होंने बताया कि यहां उनके बच्चे की बारीकी से जांच की गई और आश्वासन दिया गया है कि जल्द ही और भी जांच की जाएगी। साथ ही दवाइयां भी दी जाएंगी।

लड़खड़ाते हुए चलता है समीर, अब उम्मीद बंधी

कुशीनगर के रहने वाला छह वर्षीय समीर दो साल पहले इंसेफेलाइटिस की चपेट में आ गया था। इस बीमारी से समीर तो बच गया लेकिन शीरीरिक रूप से दिव्यांग हो गया। अब वह लड़खड़ाते हुए चलता है। उसकी मां का कहना उनका बेटा बहुत मुश्किल से अपना काम कर पाता है। बताया कि जब शिविर की जानकारी हुई तो वह बेटे को लेकर यहां चली आईं। यहां काफी मदद मिली। कई डॉक्टरों ने बेटे का इलाज किया और दवाइयां भी दीं। उम्मीद है कि बेटे को इससे काफी लाभ होगा।

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