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संस्कृत और दर्शन पढ़ने को नहीं मिल रहे छात्र

-संस्कृत विभाग में एमए की 150 सीटें, प्रवेश के लिए कुल आवेदन 39 ही आए

संस्कृत और दर्शन पढ़ने को नहीं मिल रहे छात्र
हिन्दुस्तान टीम,गोरखपुरMon, 24 Jun 2019 02:22 AM
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गोरखपुर। वरिष्ठ संवाददाताएक ओर जहां संस्कृत और दर्शन शास्त्र जैसे पांरपरिक विषयों को लेकर सरकार बेहद गंभीर है, वहीं गोरखपुर विश्वविद्यालय में परास्नातक स्तर पर इन विषयों को पढ़ने वाले छात्रों का टोटा है। पिछले चार साल से दोनों विभागों में सीटों की अपेक्षा आधे ही कम आवेदन आ रहे हैं। इस बार भी इन विषयों के लिए आधे से कम आवेदन आए हैं। मजबूरन पीजी प्रवेश परीक्षाओं से ये विषय बाहर कर दिए गए हैं। विवि में एमए संस्कृत की 120 सीटें थीं। गरीब सवर्णों को आरक्षण देने के लिए प्रदेश सरकार के आदेशानुसार 25 फीसदी सीटें बढ़ा दी गई हैं। अब सीटों की संख्या बढ़कर 150 हो गई। लेकिन इनके लिए महज आवेदन 39 आवेदन ही आए हैं। डीडीयू में संस्कृत विभागाध्यक्ष प्रो. मुरली मनोहर पाठक बताते हैं कि दस साल पहले तक यहां पीजी की 120 सीटों के लिए एक हजार से अधिक आवेदन आते थे। बीच में शिक्षकों की कमी के चलते शोध छात्रों से कक्षाएं चलानी पड़ीं। पांच-छह साल से मात्र तीन शिक्षक रह गए। शिक्षक और शोधार्थी के पढ़ाने में अंतर होता है। इसका असर पड़ा और संख्या घटने लगी। अब शिक्षकों की संख्या पूरी हो चुकी है। नए और अच्छे शिक्षक मिल गए हैं। पाठ्यक्रम में सुधार किए गए हैं। कई अन्य सकरात्मक कदम उठाए गए हैं। उम्मीद है छात्रों की संख्या भी बढ़ेगी। दर्शन शास्त्र से भी मोहभंग : यही हाल दर्शनशास्त्र विषय का भी है। इस विभाग में पीजी की 60 सीटें थीं। गरीब सवर्णों के लिए आरक्षण लागू होने के बाद सीटों की संख्या अब 74 हो गई है। इस विषय में प्रवेश के लिए महज 27 आवेदन आए हैं। दर्शनशास्त्र विभागाध्यक्ष प्रो. द्वारकानाथ बताते हैं कि दर्शन शास्त्र पहले यूपीएससी में टॉप पर होता था। इस विषय के करीब 40 फीसदी विद्यार्थी अधिकांश राज्यों की पीसीएस परीक्षा की मेरिट में आते थे। पीसीएस परीक्षा में दस साल पहले स्केलिंग कर दी गई। सभी विषयों को समान रूप से प्रतिनिधत्व दिया गया तो इस कठिन माने जाने विषय के प्रति रुचि घट गई। इसी तरह बीएड के पाठ्यक्रम में पहले जहां यह विषय प्रमुख होता था, अब नहीं रहा। इसका भी असर मान सकते हैं। इसे लेकर यूपीएससी से पत्राचार किया गया है। पाठ्यक्रम को अपडेट किया गया है। शिक्षकों की संख्या भी अब पूरी हो चुकी है। संख्या बढ़ाने के लिए अलग से उपाय किए जाने पर विचार हो रहा है। एक दो साल में असर दिखना चाहिए। साल दर साल घटती गई संख्यावर्ष संस्कृत दर्शनशास्त्र2019 39 272018 55 442017 59 422016 58 46 ---------सांख्यिकी पढ़ने वालों का भी टोटाडीडीयू में सांख्यिकी विषय से पीजी करने के प्रति भी छात्रों में अरुचि है। इस विभाग में पिछले तीन साल से 15 से 16 प्रवेश हो पाते हैं, जबकि सीटों की संख्या 20 है। इस साल गरीब सवर्ण आरक्षण लागू किए जाने के बाद सीटों की संख्या बढ़ कर 24 हो गई है मगर आवेदन 16 ही आए हैं। यह हाल तब है जब कंप्यूटर के दौर में कंप्यूटिंग काफी महत्वपूर्ण हो गया है। विभाग के प्रो. विजय कुमार बताते हैं कि स्नातक से ही सीटों की संख्या काफी कम है। कैंपस में सांख्यिकी से स्नातक की सीटें महज 40 हैं। ये सीटें बढ़ाई जानी चाहिए तथा स्नातक में जो विषयों का कंबिनेशन हम देते हैं, उसमें कंप्यूटर साइंस के कंबिनेशन के साथ सांख्यिकी सीटें खास तौर से बढ़ानी चाहिए। ऐसा दिल्ली व अन्य विवि में है। वहां इस विषय में प्रवेश की मारा मारी रहती है।

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