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बहुमंजिला इमारतों में कचरे से बन रही खाद, पानी का दोबारा इस्‍तेमाल

एनजीटी के मानकों की भले ही जीडीए से लेकर नगर निगम तक धज्जियां उड़ा रहे हों लेकिन बहुमंजिली इमारतों में रहने वाले न सिर्फ सिवेज का ट्रीटमेंट कर रहे हैं, बल्कि हजारों लीटर पानी का री-यूज भी कर रहे हैं।...

बहुमंजिला इमारतों में कचरे से बन रही खाद, पानी का दोबारा इस्‍तेमाल
अजय श्रीवास्‍तव,गोरखपुर Mon, 10 Jun 2019 11:25 AM
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एनजीटी के मानकों की भले ही जीडीए से लेकर नगर निगम तक धज्जियां उड़ा रहे हों लेकिन बहुमंजिली इमारतों में रहने वाले न सिर्फ सिवेज का ट्रीटमेंट कर रहे हैं, बल्कि हजारों लीटर पानी का री-यूज भी कर रहे हैं। पिछले चार वर्षों में बनीं करीब डेढ़ दर्जन बहुमंजिली इमारतों में एसटीपी (सिवेज ट्रीटमेंट प्लांट) की अनिवार्यता का असर कचरा प्रबंधन के रूप में दिख रहा है। 

जीडीए की मानकों के मुताबिक 2000 वर्ग मीटर से अधिक एरिया में विकसित होने वाले ग्रुप हाउसिंग और कामर्शियल काम्प्लेक्स में एसटीपी लगाना अनिवार्य है। तारामंडल क्षेत्र, मोहद्दीपुर, मेडिकल रोड और गोरखनाथ रोड पर बने बहुमंजिली इमारतों में एसटीपी काम कर रहे हैं। फ्लैट में भवनों और सिवेज की मात्रा को देखते हुए एसटीपी लगाया जा रहा है। मोहद्दीपुर में 12 मंजिली एक इमारत में 80 फ्लैट हैं। फ्लैट से निकलने वाले सिवेज के निस्तारण के लिए एसटीपी लगाई गई है। एसटीपी से सिवेज को ट्रीट कर न सिर्फ खाद बन रही है बल्कि निकलने वाले हजारों लीटर पानी को शौचालय, बागवानी और धुलाई आदि में प्रयोग किया जा रहा है। मोहद्दीपुर से गुरुंग तिराहे तक बनीं आवासीय और व्यवसायिक भवनों में एसटीपी लगाई गई है। 

14 से 20 लाख रुपये आ रही लागत
80 से 150 फ्लैट वाले बहुमंजिली भवनों में एसटीपी लगाने में 14 से 20 लाख रुपये का खर्च आ रहा है। इसे संचालित करने के लिए बिजली की खपत काफी अधिक हो रही है। मोहद्दीपुर में एक बहुमंजिली भवन के सोसाइटी के सदस्य बताते हैं कि बिजली पर प्रति महीने 10 से 12 हजार रुपये खर्च होते हैं। इसकी देखरेख के लिए एक व्यक्ति को जिम्मेदारी दी गई है। 

जीडीए से लेकर एयरफोर्स की निगरानी
बहुमंजिली इमारत में एसटीपी होने के बाद ही जीडीए द्वारा पूर्णता प्रमाण पत्र जारी किया जाता है तो वहीं एयरफोर्स कूड़ा निस्तारण और सिवेज के ट्रीटमेंट का प्लान देखने के बाद ही अनापत्ति देता है। शहर के प्रमुख आर्किटेक्ट आशीष श्रीवास्तव बताते हैं कि 2 हजार वर्ग मीटर से अधिक क्षेत्रफल में बनने वाले बहुमंजिली इमारतों को ही ग्रुप हाउसिंग का दर्जा मिलता है। वहीं 2 हजार वर्ग मीटर से अधिक एरिया में बनने वाले ग्रुप हाउसिंग को एयरफोर्स तभी अनपत्ति देता है जब कूड़ा और सिवेज निस्तारण का पूरा प्लान बिल्डर द्वारा दिया जाता है। 

एसटीपी से निकलने वाले खाद-पानी का होता है इस्तेमाल
घरों से निकलने वाला सिवेज एसटीपी में भेजा जाता है। जहां सिवेज के ट्रीटमेंट के बाद शौचालय, बागवानी और धुलाई लायक पानी मिलता है, तो वहीं खाद की निकलता है। बिल्डर ज्ञान तिवारी कहते हैं कि एसटीपी में ट्रीट होने वाले पानी को दोबारा टंकी में भेजकर शौचालय में प्रयोग किया जाता है। वहीं रोज एक से डेढ़ कुंतल खाद भी निकलती है। 

2000 वर्ग मीटर एरिया और 12.50 मीटर से अधिक ऊंचाई वाली इमारतों में एसटीपी लगाना अनिवार्य है। एसटीपी लगने के बाद ही पूर्णता प्रमाण पत्र जारी किया जाता है। एसटीपी का सार्थक परिणाम दिख रहा है। बहुमंजिली इमारतों में एसटीपी बराबर संचालित हो इसके लिए जांच भी सुनिश्चित की जाएगी। 
संजय कुमार सिंह, मुख्य अभियंता, जीडीए

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