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जेईई-नीट के बाद एमएमएमयूटी प्रवेश परीक्षा में जूते पर प्रतिबंध

संचार क्रांति के दौर में ब्लू टूथ छात्रों के जूते मोजे का दुश्मन बन गया है। इससे तैयार बग डिवाइस ऐसी नकल सामग्री के रूप में सामने आई है, जिसे बिना फ्रिक्वेंसी मीटर के पकड़ पाना एक्सपर्ट्स के लिए भी...

जेईई-नीट के बाद एमएमएमयूटी प्रवेश परीक्षा में जूते पर प्रतिबंध
मिथिलेश द्विवेदी,गोरखपुरTue, 08 May 2018 06:25 PM
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संचार क्रांति के दौर में ब्लू टूथ छात्रों के जूते मोजे का दुश्मन बन गया है। इससे तैयार बग डिवाइस ऐसी नकल सामग्री के रूप में सामने आई है, जिसे बिना फ्रिक्वेंसी मीटर के पकड़ पाना एक्सपर्ट्स के लिए भी संभव नहीं है। इसलिए जेईई व नीट के बाद अब एमएमएमयूटी ने भी अपनी प्रवेश परीक्षा में जूते मोजे पर प्रतिबंध लगा दिया है। परीक्षा देने वालों को चप्पल में ही आना होगा। 

वैज्ञानिकों ने ब्लू टूथ का इजाद इसलिए किया था क्यों कि लोग अत्यंत छोटे यंत्र से स्पष्ट आवाज में बातचीत कर सकें। शुरु में इसका इस्तेमाल जासूसी के लिए हुआ मगर बाद में कुछ शरारती तत्व इससे बग डिवाइस का इस्तेमाल बड़ी प्रतियोगी परीक्षाओं में नकल के लिए करने लगे। मशक्कत के बाद जांच एजेंसियों ने इस गोपनीय नकल सामग्री को पकड़ा तब से परीक्षाओं में इसकी निगरानी शुरू हुई।

यह पता चलने के बाद कि बग डिवाइस जूते के सोल या मोजे में छुपा कर परीक्षार्थी पहुंच जाते हैं, परीक्षा के आयोजकों ने जूते मोजे पर ही प्रतिबंध लगा दिया। इंजीनियरिंग की सबसे बड़ी प्रवेश परीक्षा और एक दिन पहले हुई मेडिकल प्रवेश परीक्षा में जूते मोजे प्रतिबंधित कर दिए गए थे। इस साल से एमएमएमयूटी ने भी अपनी प्रवेश परीक्षा में जूते मोजे पहन कर आने पर प्रतिबंध लगा दिया है। 

इसे सिवा कोई चारा नहीं-तकनीकी एक्सपर्ट
सेंसर, सीसी कैमरे आदि डिवाइसेज के तकनीकी एक्सपर्ट कुमार अजिताभ ने बताया कि जूते मोजे को प्रतिबंधित करने सिवा शुचितापूर्ण परीक्षा का कोई चारा नहीं है। नकल सामग्री के रूप में हाल ही में मशहूर हुए बग डिवाइस को पकड़ पाना आसान नहीं है। इस डिवाइस में बच्चे की अंगुली के आकार का एक ब्लू टूथ होता है। यह आपकी कान के रंग में उपलब्ध है, कान में डाल लें तो केवल एक्सपर्ट ही, बारीक जांच के बाद पकड़ पाएंगे।

इसका रिसीवर पेन के छोटे से टक्कन के बराबर होता है, जिसे जूते या मोजे में फिट कर दिया जाता है। परीक्षा कक्ष से दो सौ मीटर दूरी पर एक मोबाइल से साल्वर उत्तर बोलता जाता है, और परीक्षार्थी फ्रिक्वेंसी के आधार पर बोले गए उत्तर रिसीव कर लिखता जाता है। इसे पकड़ने के लिए एक्सपर्ट को भी फ्रिक्वेंसी मीटर की जरूरत होती है। बग डिवाइस को हाई फ्रिक्वेंसी पर सेट कर इसको धोखा दिए जाने की संभावना रहती है, इसलिए जूते मोजे को ही बाहर कर दिया गया।   

तीन घंटे की परीक्षा और इतनी ही देर सघन चेकिंग
नई तकनीकी के इजाद ने प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी करने वाले विद्यार्थियों की सांसत कर दी है। पहले जहां उन्हें परीक्षा से आधे घंटे पहले बुलाया जाता था, वहीं अब उन्हें परीक्षा दो तीन घंटे पहले ही बुला लिया जाता है। नीट की परीक्षा में तीन घंटे पहले ही परीक्षार्थियों को केन्द्र पर पहुंचने का आदेश था। कुल तीन घंटे की परीक्षा थी और इतनी ही देर की सघन चेकिंग की गई। यही हाल जेईई समेत अन्य बड़ी प्रतियोगी परीक्षाओं का भी रहा।
   
संवेदनशील विद्याथिर्यों पर बुरा प्रभाव पड़ेगा 
डीडीयू में मनोविज्ञान विभागाध्यक्ष प्रो. सुषमा पांडेय बताती हैं कि इंटर पास कर प्रतियोगी परीक्षा देने वाले बच्चे बेहद संवेदनशील होते हैं। मैं सघन चेकिंग या इस प्रक्रिया का विरोध नहीं करती मगर व्यक्तिगत तौर पर यह ध्यान देने के लिए जरूर कहूंगी कि बच्चों के कोमल मन पर इसका बुरा प्रभाव पड़ता है।

वैसे ही किशोर वय में परीक्षार्थी पहली प्रतियोगी परीक्षा को एंग्जाइटी का शिकार होता है। तिस पर दो से तीन घंटे की सघन जांच संवेदनशील बच्चों को और दबाव में डाल देती है। प्रतियोगी परीक्षाओं या इस तरह की सघन जांच का उद्देश्य क्वालिटी चुनना होता है। मुझे नहीं लगता कि परीक्षा से पहले प्रेशर में आया बच्चा अपना सर्वोत्कृष्ट दे पाएगा। नीति नियंताओं को इसके अन्य विकल्पों पर भी विचार करना चाहिए।

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