आईटी एक्ट में केस दर्ज करने से बच रहे हैं थानेदार
आईटी एक्ट से जुड़े मामले में भी आईटी एक्ट की धारा में केस दर्ज करने से थानेदार बच रहे हैं। आईटी एक्ट की धारा न लगाने से ज्यादातर मामलों में केस एनसीआर तक ही रह जाता है जिस पर कोई जवाबदेही नहीं होती...
आईटी एक्ट से जुड़े मामले में भी आईटी एक्ट की धारा में केस दर्ज करने से थानेदार बच रहे हैं। आईटी एक्ट की धारा न लगाने से ज्यादातर मामलों में केस एनसीआर तक ही रह जाता है जिस पर कोई जवाबदेही नहीं होती और विवेचना करने से भी फुर्सत मिल जाती।
खोराबार के पूर्व थानेदार द्वारा की गई इसी तरह का मामला सामने आने से इसका खुलासा हुआ। पता चला कि पीड़ित ने फेसबुक पर पोस्ट डाली थी। उस पर आपत्तिजनक टिप्पणी की गई थी। पीड़ित ने शिकायत की तो आईटी एक्ट की धारा गायब कर उसमें सिर्फ एनसीआर दर्ज कर लिया गया और आरोपित पर आज तक कार्रवाई नहीं हो पाई। जबकि साइबर सेल की जांच कर मामला सही होने पर एसपी क्राइम अशोक वर्मा ने उचित धाराओं में कार्रवाई का निर्देश दिया था। पीड़ित ने कार्रवाई न होने पर जन सूचना अधिकार के तहत जवाब मांगा तो पुलिस का यह खेल सामने आया। पीड़ित ने राष्ट्रपति, पीएम, गृह मंत्री, सीएम, प्रमुख सचिव, डीजीपी, एडीजी सहित तमाम लोगों को मेल के जरिये पत्र भेज शिकायत की है। आरोपिति के साथ ही लापरवाही बरतने वाले पुलिस कर्मियों पर कार्रवाई की मांग की है।
सीएम व अन्य अधिकारियों को भेजे गए पत्र में खोराबार थाना क्षेत्र के कुसम्ही निवासी शेषनाथ जायसवाल ने बताया कि 9 अप्रैल 2020 को उन्होंने अपने फेसबुक पर हनुमान चालीसा का वीडियो पोस्ट किया था। मित्र लिस्ट के हसन मॉडल ने उस पर अपशब्द पोस्ट कर दिया था। उन्होंने इसकी तहरीर खोराबार थाने पर दी। थाने से कुछ नहीं हुआ तो इसकी शिकायत अधिकारियों से की। साइबर सेल व क्राइम ब्रांच को जांच सौंपी गई। साइबर टीम ने जांच कर मामले को सही पाते हुए 21 मई को आख्या प्रस्तुत की।
इसके बाद एसपी क्राइम अशोक वर्मा ने 22 मई को खोराबार पुलिस को विधिसम्मत कार्रवाई का निर्देश दिया। खोराबार पुलिस ने 2 जून को मुकदमा नम्बर 41/20 के तहत धारा 504 में एनसीआर दर्ज कर लिया। वादी को जानकारी हुई तो उसने 4 जून को जन सूचना अधिकार के तहत पूरी कार्रवाई का ब्योरा मांगा। कुछ दिन पहले ही गोरखपुर पुलिस के जन सूचना अधिकारी ने सभी कार्रवाई का ब्योरा वादी को दिया।
विवेचना के बोझ और जवाबदेही से बचने का खेल
दरअसल आईटी एक्ट की धारा से जुड़े केस में मुकदमा दर्ज होते ही इंस्पेक्टर को विवेचना दी जाती है। जिस थाने में इंस्पेक्टर पोस्ट नहीं है वहां से विवेचना उस थाने में चली जाती हैं जहां इंस्पेक्टर होते हैं। आईटी एक्ट के केस के विवेचना की जवाबदेही भी तय होती है। यही वजह है कि आईटी एक्ट से जुड़े मामले में भी थानेदारों की पहली कोशिश यही होती है कि आईटी एक्ट की धारा न लगे। वहीं जैसे ही आईटी एक्ट की धारा हटती है वैसे ही केस कमजोर हो जाता है और फिर अन्य धारा सपोर्ट में न लगी हो तो आरोपित की गिरफ्तारी भी नहीं हो पाती है। पीड़ित शेषनाथ के मामले में भी यही हुआ है।
बोले एसएसपी
मामले को संज्ञान में लेते हुए कार्रवाई की जाएगी। यह भी देखा जाएगा कि किसी भी केस में धाराओं का अल्पीकरण न हो। ऐसा करने से न सिर्फ मुकदमा कमजोर होता है बल्कि आरोपित को भी लाभ मिलता है।
- जोगिंदर कुमार, एसएसपी