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उर्दू दिवस: दो सिरे मिल कर भी थे जुदा, तू कहीं था मै कहीं था, इश्क था

डा. कलीम कैसर अपनी रचनाएं पढ़ी कि,‘ इस मकां में इक मकीं था, इश्क था/ जब यहां कोई नही था, इश्क था/ दो सिरे मिल कर भी थे, दोनो जुदा/ तू कहीं था मै कहीं था, इश्क...

उर्दू दिवस: दो सिरे मिल कर भी थे जुदा, तू कहीं था मै कहीं था, इश्क था
हिन्दुस्तान टीम,गोरखपुरFri, 09 Nov 2018 08:11 PM
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डा. कलीम कैसर अपनी रचनाएं पढ़ी कि,‘ इस मकां में इक मकीं था, इश्क था/ जब यहां कोई नही था, इश्क था/ दो सिरे मिल कर भी थे, दोनो जुदा/ तू कहीं था मै कहीं था, इश्क था।

डा. कलीम कैसर ‌उर्दू दिवस की पूर्व संध्या पर गुरुवार को 'जश्न-ए-उर्दू मुशायरा' के तत्वावधान में ‘एक शाम डा. अल्लमा इकबाल के नाम कार्यक्रम में अपनी रचनाएं पढ़ रहे थे। ‘जश्न महल निजामपुर में आयोजित इस कार्यक्रम में देर रात तक लोग मुशायरे में राष्ट्रीय व अन्तरराष्ट्रीय मेहमान शायरों के अलावा शहर के शायर एवं कवियों के कलाम सुनने जुटे रहे। कार्यक्रम की अध्यक्षता डा. अजीज अहमद ने डा. अल्लामा इकबाल की शायरी की चर्चा की। कहा कि उनकी शायरी बुलंदी के मुकाम पर पहुंच चुकी थी। उन्होंने अपनी बात को स्पष्ट करने के लिए डा. अल्लामा इकबाल के शेर भी पढ़े।

विशिष्ट अतिथि अरशद जमाल सामानी ने कहा कि डा. अल्लामा इकबाल की शायरी केवल की शायरी केवल गुल और बुलबुल या नाला-ओ-फरियाद तक सीमित नहीं है। उन्होंने इंसानियत को अपनी शायरी का मौजू बनाया। डा. रजनीकांत श्रीवास्तव उर्फ नवाब ने कहा कि डा. अल्लामा इकबाल ने आपसी मतभेद को भुला कर एक होने और साथ रहने का संदेश दिया है। उनका तराना ‘सारे जहां से अच्छा वाकई सारे जहां से अच्छा है।

संचालन आकाशवाणी के मोहम्मद फर्रूख जमाल ने किया। शायरों ने यह कलाम पढ़ कर दाद हासिल की। ‌‌बीआर विपलवी,‘ रगां बनाया गया इश्तेहार के काबिल/ तब एक झूठ बना ऐतबार के काबिल/ बसंत ला दिया है प्लास्टिक के फूलों ने/ कहां से लायें नजर, इस बहार के काबिल। मुकेश श्रीवास्तव,‘मस्जिद भी उन्हीं की है मंदिर भी उन्हीं का/ हमसे से बहुत अच्छे हैं, ये उड़ने वाले परिंदे।

नदीमुल्लाह अब्बासी नदीम, डा. सुभाष यादव की रचना को भी सराहना मिली। डा. चारू शीला सिंह ने अपनी रचना पढ़ी।‘भीड़ में उसकी नजर में उतरना अच्छा लगा/ छुप के सबकी नजरों से फिर संवरना अच्छा लगा। अब्दुल्लाह जामी की रचना ,‘हमेशा देता है छाव थके मुसाफिर को/ ये एक पेड़ जो बूढ़ा दिखाई देता है को दाद मिली। कमालुद्दीन कमाल ने पढ़ा कि कमाल अपनी फितरत में नफरत नहीं है,मेरा बस चले सारी दूरी मिटा दूं।

जालिब नोमानी ने पढ़ा कि,‘परिंदे कर गए हिजरत, दरख्तों की शाखें भी बेखबर है/यहां आना हुआ बेकार, कुछ बाकी नहीं। कार्यक्रम में सरदार जसपाल सिंह, एडवोकेट शमशाद आलम, हन्नान अंसारी, पूर्व मेयर डा सत्या पाण्डेय, अंचिता लाहिड़ी, प्रवीण श्रीवास्तव, सैयद इफ्राहीम, डा ताहिर अली सब्जपोश, काजी इब्राहीम, मौलाना वलीउल्लाह, डा दरख्शां, इम्तेयाज अब्बासी, इं. शम्स अनवर, मुनतसिर अब्बासी, नुसरत अब्बासी, इं. मिनातुल्लाह, अकरम खान, मो. जिकाउल्लाह, शाहीन शेख, सुधा मोदी समेत शहर के साहित्यप्रेमी उपस्थित रहे।

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