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रिसर्च : पालतू जानवरों से हो सकता है इंसेफेलाइटिस जैसा रोग

Gorakhpur News - - आईसीएमआर-आरएमआरसी के वैज्ञानिकों ने की रिसर्च - गाय, भैंस, बकरी और कुत्ता

Newswrap हिन्दुस्तान, गोरखपुरTue, 18 Feb 2025 04:01 AM
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रिसर्च : पालतू जानवरों से हो सकता है इंसेफेलाइटिस जैसा रोग

गोरखपुर। मनीष मिश्र घरों में पाले जाने वाले गाय, भैंस, बकरी और कुत्ते से भी इंसेफेलाइटिस जैसी बीमारी होने का खतरा है। इनके शरीर पर पाई जाने वाली किलनी (अठई) के खून में घातक बैक्टीरिया पाए जाते हैं। इन बैक्टीरिया से इंसेफेलाइटिस जैसे ही एक्यूट फेब्राइल इलनेस (एएफआई) रोग हो सकता है। यह सामने आया है आईसीएमआर के रीजनल मेडिकल रिसर्च सेंटर (आरएमआरसी) की रिसर्च में। यह शोध, जर्नल ऑफ अमेरिकन सोसायटी ऑफ मेडिकल एंटोमोलॉजी में प्रकाशित हुआ है।

इस रिसर्च में वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. बृजरंजन मिश्रा के साथ डॉ. रजनीकांत, डॉ. नीरज कुमार, डॉ. अशोक पांडेय, डॉ. हीरावती देवल और डॉ.  राजीव  सिंह शामिल रहे। रिसर्च के लिए चरगांवा ब्लॉक के जंगल डुमरी व जंगल अयोध्या और भटहट ब्लॉक के करमहां और बरगदही गांवों के करीब 700 पालतू पशुओं के शरीर पर मिली किलनी का नमूना लिया गया। रिसर्च के दौरान 200 गाय, 200 भैंस, 200 बकरी और 40 कुत्तों के शरीर पर मिले 1778 किलनी ली गईं जिन्हें 17 पूल में रखा गया।

किलनी के खून और लार की हुई जांच

डॉ. मिश्रा ने बताया कि इनमें चार तरह की किलनी मिली। जिनमें 83.8 फीसदी रैपिसिफैलस माइक्रोप्लस, 7.1 फीसदी फहायलोमा कुमारी, 6.4 फीसदी रैपिसिफैलस सैंग्वीनियस और 2.4 फीसदी डर्मासेंटर आरोटस मिले हैं। इनके खून और लार में मिलने वाले बैक्टीरिया की डीएनए जांच की गई। करीब 3.3 फीसदी में एनाप्लाज्मा बैक्टीरिया मिला। यह बेहद खतरनाक हैं। इस बैक्टीरिया के शरीर में पहुंचने से बुखार के साथ झटके आने शुरू हो जाते हैं। जबकि रैपिसिफैलस माइक्रोप्लस में 1.6 फीसदी रिकेट्सिया बैक्टीरिया मिला। जिसके कारण बुखार व झटका आने के साथ ही मल्टी आर्गन फेल्योर होने लगता है। इससे एईएस (एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम) होने की आशंका 90 प्रतिशत तक हो जाती है। खास बात यह है कि रैपिसिफैलस माइक्रोप्लस किलनी सिर्फ गाय के शरीर पर ही मिली।

अंगों को पहुंचाते हैं नुकसान

रिकेट्सिया बैक्टीरिया शरीर के कई अंगों को नुकसान पहुंचाता है। इस बैक्टीरिया के शरीर में पहुंचने से पहले बुखार होता है। इसके बाद जोड़ों में दर्द। अगर समय से इलाज नहीं हुआ तो यह लिवर, मस्तिष्क, किडनी को प्रभावित करता है।

कड़ी त्वचा के किलनी होते ज्यादा खतरनाक

शोध में पता चला कि जिन किलनी के शरीर की बाहरी त्वचा कड़ी होती है, वे बेहद खतरनाक बैक्टीरिया की वाहक हैं। इन्हें हार्ड टिक या इक्सोडिडी कहते हैं। इस रिसर्च में 99 फीसदी हार्ड टिक (कड़ी त्वचा वाली किलनी) में ही खतरनाक बैक्टीरिया मिले।

सुझाव

डॉ. बृजरंजन ने बताया कि घरेलू पालतू ‌पशुओं की नियमित सफाई करते रहे। क्योंकि उनके शरीर में अक्सर किलनी मिलती हैं, जो बेहद खतरनाक हैं।

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