भारतीय ज्ञान परंपरा ही हमारी असली धरोहर :प्रो. संजीव
Gorakhpur News - -गोरखनाथ मंदिर में चल रही संगोष्ठी में भारत की ज्ञान परंपरा विषय पर विद्वानों ने

गोरखपुर, निज संवाददाता। गोरखनाथ मंदिर में महंत दिग्विजयनाथ की 56वीं और महंत अवेद्यनाथ की 11वीं पुण्यतिथि पर आयोजित सप्तदिवसीय संगोष्ठी के दूसरे दिन शनिवार को भारत की ज्ञान परंपरा विषय पर गहन विमर्श हुआ। विद्वानों ने कहा कि भारत की हजारों वर्षों पुरानी ज्ञान परंपरा ही हमारी सभ्यता और संस्कृति की रीढ़ है, जिसे पुनर्जीवित करना आज की सबसे बड़ी आवश्यकता है। मुख्य वक्ता महात्मा गांधी केंद्रीय विश्वविद्यालय मोतिहारी (बिहार) के पूर्व कुलपति प्रो. संजीव कुमार शर्मा ने कहा कि ऋग्वेद से लेकर उपनिषदों तक भारतीय ज्ञान परंपरा में पूरे विश्व के कल्याण की भावना समाहित है। उन्होंने उदाहरण दिया कि कोरोना काल में भारत ने वैक्सीन उन देशों तक भी भेजी जिनसे राजनयिक संबंध तक नहीं थे।
यही हमारी परंपरा की विश्व बंधुत्व की सोच है। उन्होंने कहा कि विविध विचारों में सम्मान और असहमति को भी संवाद का हिस्सा मानना भारतीय संस्कृति की विशेषता है। शास्त्रार्थ और प्रश्नोत्तर की यह परंपरा आज भी प्रासंगिक है। मुख्य अतिथि गाजियाबाद के दुग्धेश्वरनाथ महादेव मठ के पीठाधीश्वर महंत नारायण गिरी ने कहा कि भारत की ज्ञान परंपरा वृक्ष, नदियों और पशु-पक्षियों तक को देवत्व का दर्जा देती है। गोरक्षपीठाधीश्वर व मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ द्वारा सनातन संस्कृति के उत्थान के लिए किए जा रहे कार्यों को उन्होंने सराहनीय बताया। विशिष्ट वक्ता जेएनयू के संस्कृत विभागाध्यक्ष प्रो. संतोष कुमार शुक्ल ने कहा कि नालंदा और तक्षशिला जैसे विश्वविद्यालयों ने भारत के ज्ञान को वैश्विक पहचान दिलाई। उन्होंने अफसोस जताया कि अंग्रेजी शासनकाल में थोपी गई विदेशी शिक्षा व्यवस्था ने हमारी परंपरा को कमजोर किया। राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 को उन्होंने भारतीय ज्ञान परंपरा की ओर लौटने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम बताया। काशी से पधारे संतोषाचार्य सतुआ बाबा ने कहा कि गोरक्षपीठ भारतीय ज्ञान परंपरा का जीवंत प्रतीक है। अयोध्या के महंत राजूदास ने कहा कि शिक्षा व्यवस्था के पिछड़ने का कारण हमारी जड़ों से दूरी रही है। आगरा से आए ब्रह्मचारी दासलाल ने कहा कि शिक्षा केवल रोज़गार का साधन न होकर जीवन उत्कर्ष का माध्यम होनी चाहिए। स्वागत भाषण में महाराणा प्रताप शिक्षा परिषद के सदस्य डॉ. रामजन्म सिंह ने कहा कि प्राचीन गुरुकुलों में 14 विद्याओं की शिक्षा दी जाती थी, जिनसे आर्यभट्ट, भास्कराचार्य, पाणिनि, सुश्रुत और चरक जैसे आचार्य निकले। उन्होंने दुनिया को गणित, व्याकरण और चिकित्सा के अमूल्य सिद्धांत दिए। कार्यक्रम में अयोध्या, चित्रकूट और देवीपाटन सहित अनेक पीठों के संत-महंत उपस्थित रहे। वैदिक मंगलाचरण डॉ. रंगनाथ त्रिपाठी, गोरक्षाष्टक पाठ आदित्य पांडेय तथा संचालन डॉ. श्रीभगवान सिंह ने किया।
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